डिजिटल युग में पुस्तकों से बढ़कर नहीं है कोई दोस्त

विश्व पुस्तक मेला-2025 पर विशेष 

पुस्तकें हमेशा से ज्ञान और शिक्षा का मुख्य स्रोत रही हैं। मानव सभ्यता के विकास में पुस्तकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है क्योंकि इन्हीं के माध्यम से इतिहास, संस्कृति और परंपराओं को संजोकर अगली पीड़ियों तक पहुंचाया जाता है। चाहे प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपियां हों या आधुनिक मुद्रित पुस्तकें, सभी ने किसी न किसी रूप में समाज को समृद्ध किया है। तकनीकी विकास के इस दौर में जब डिजिटल माध्यम तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं, तब भी पुस्तकों का महत्व कम नहीं हुआ है बल्कि इसके विपरीत पुस्तकों की प्रासंगिकता और अधिक बढ़ गई है। आज जब इंटरनेट के माध्यम से सूचनाओं की भरमार है, तब भी पाठ्य पुस्तकों और संदर्भ ग्रंथों का स्थान कोई अन्य माध्यम नहीं ले सका है। पुस्तकों की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वे किसी भी विषय को गहराई से समझने और आत्मसात करने में सहायक होती हैं। तकनीकी विकास के बावजूद पुस्तकें छात्रों, शोधकर्ताओं और सामान्य पाठकों के लिए विश्वसनीय संसाधन बनी हुई हैं। ऑनलाइन संसाधनों की उपलब्धता के बावजूद पाठ्य पुस्तकों और संदर्भ ग्रंथों की महत्ता आज भी बरकरार है। पुस्तकें न केवल शिक्षा का माध्यम हैं बल्कि वे हमारी सभ्यता और संस्कृति को भी संरक्षित रखती हैं। प्राचीन ग्रंथों से लेकर आधुनिक साहित्य तक, पुस्तकें मानव सभ्यता की यात्रा की साक्षी रही हैं। पुस्तकें केवल ज्ञान का भंडार ही नहीं होती बल्कि वे मनोरंजन, मानसिक शांति और आत्मविकास का भी स्रोत होती हैं। साहित्यिक रचनाएं, आत्मकथाएं, उपन्यास, विज्ञान, इतिहास, कला, संस्कृति और दर्शन से संबंधित पुस्तकें पाठकों को नई सोच और दृष्टिकोण प्रदान करती हैं।
इसी पठन संस्कृति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ही शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत 1 अगस्त 1957 को राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (एनबीटी) की स्थापना की गई थी, जिसका मुख्य उद्देश्य समाज के सभी वर्गों के लिए पुस्तकों के प्रकाशन और प्रचार-प्रसार को सुनिश्चित करना था। पिछले करीब सात दशकों से राष्ट्रीय पुस्तक न्यास समाज के सभी आयु वर्ग के लिए सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में पुस्तकों के प्रचार और प्रकाशन में सक्रिय रहा है। एनबीटी द्वारा ही 1972 में नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला की शुरुआत की गई थी जो आज एशिया का सबसे बड़ा और विश्व के प्रमुख पुस्तक मेलों में से एक है। यह मेला न केवल भारत बल्कि वैश्विक स्तर पर लेखकों, प्रकाशकों और पाठकों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करता है। इस वर्ष यह पुस्तक मेला 1 से 9 फरवरी के बीच ‘रिपब्लिकञ्च75’ (हम भारत के लोग) थीम के साथ नई दिल्ली में आयोजित हुआ है, जिसका उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा किया गया था।
विश्व पुस्तक मेला केवल एक व्यापारिक आयोजन ही नहीं है बल्कि यह साहित्य और संस्कृति के संगम का एक भव्य मंच भी है, जहां विभिन्न भाषाओं, विधाओं और विषयों की पुस्तकों का विशाल संग्रह उपलब्ध रहता है। इस आयोजन में न केवल प्रतिष्ठित लेखकों और प्रकाशकों को अपनी रचनाएं प्रस्तुत करने का अवसर मिलता है बल्कि उभरते हुए नए लेखकों को भी अपनी पहचान बनाने का मंच मिलता है। पुस्तक मेले में विभिन्न संगोष्ठियों, परिचर्चाओं, पुस्तक विमोचन समारोहों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जो साहित्य और बौद्धिक विमर्श को बढ़ावा देने में सहायक होते हैं और इससे नई पीढ़ी के लेखकों को प्रेरणा मिलती है। नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले का उद्देश्य पुस्तकों को बढ़ावा देना, पाठकों को नई सामग्री से परिचित कराना और लेखकों तथा प्रकाशकों के बीच एक संवाद स्थापित करना है। यह मेला विभिन्न भाषाओं, विषयों और विधाओं की पुस्तकों का एक विशाल संग्रह प्रस्तुत करता है। इस मेले में इस वर्ष जर्मनी, फ्रांस, इटली, श्रीलंका, यूएई, ईरान, तुर्किये, स्पेन सहित दुनियाभर से करीब 50 देश हिस्सा ले रहे हैं और रूस को पुस्तक मेले में अतिथि देश के रूप में आमंत्रित किया गया है। यह मेला भारतीय और विदेशी लेखकों, प्रकाशकों तथा पाठकों के बीच संवाद का महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।
साहित्य प्रेमियों और शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला हर साल एक नई प्रेरणा लेकर आता है और डिजिटल दुनिया में भी पुस्तकों का आकर्षण बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पुस्तक प्रेमियों के लिए यह मेला किसी स्वर्ग से कम नहीं है क्योंकि यहां साहित्य, विज्ञान, कला, इतिहास, बाल साहित्य, धार्मिक ग्रंथ, तकनीकी आदि हर प्रकार की पुस्तकें उपलब्ध होती हैं। विश्व पुस्तक मेले के आयोजन में इस बार बच्चों को विशेष रूप से केंद्र में रखा गया है ताकि उनका जुड़ाव अच्छी पुस्तकों से ज्यादा से ज्यादा हो और वे अपने जीवन में मित्र के रूप में पुस्तक पढ़ने को स्वीकारें। इस वर्ष विशेष रूप से बच्चों को ध्यान में रखते हुए पुस्तक मेले में विशेष पवेलियन बनाए गए हैं और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। बाल साहित्य और ज्ञानवर्द्धक पुस्तकों के माध्यम से बच्चों के मानसिक विकास को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया है। हर साल आयोजित होने वाले इस पुस्तक मेले में साहित्यिक चर्चा, संवाद सत्र और पुस्तक विमोचन जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिससे नई प्रतिभाओं को आगे आने का अवसर मिलता है। यह मेला भारत की सांस्कृतिक समृद्धि और भाषायी विविधता को परिलक्षित करता है तथा इसे महत्वाकांक्षी भारत के क्षितिज और उसके उज्ज्वल भविष्य को आकार देने वाले मेले की उपमा दी गई है। एनबीटी के अनुसार, नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला प्रकाशन जगत का एक प्रमुख कैलेंडर कार्यक्रम है जो पिछले पांच दशकों से आयोजित किया जा रहा है। विश्व पुस्तक मेला वास्तव में पुस्तकों और साहित्य का सबसे बड़ा ऐसा उत्सव है, जिसका इंतजार केवल राजधानी दिल्ली ही नहीं बल्कि देशभर के साहित्यकार और शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोग करते हैं। शुरुआत में पुस्तक मेले में 4.5 देश ही शामिल होते थे, जिनकी संख्या बढ़कर अब 50 से ज्यादा हो गई है।
बहरहाल, तेजी से बदलते डिजिटल दौर में भी पुस्तकों का महत्व किसी भी रूप में कम नहीं हुआ है। चाहे डिजिटल युग हो या पारंपरिक प्रिंट माध्यम, पुस्तकों की महत्ता सदैव बनी रहेगी। नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला न केवल साहित्य प्रेमियों के लिए बल्कि लेखकों और प्रकाशकों के लिए तो एक सुनहरा अवसर प्रदान करता ही है, यह पुस्तकों के प्रचार-प्रसार का भी एक महत्वपूर्ण साधन बन चुका है और भारत में साहित्यिक और बौद्धिक गतिविधियों को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस पुस्तक मेले का महत्व केवल व्यापारिक दृष्टिकोण तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह भारतीय बौद्धिक और साहित्यिक गतिविधियों को भी नया आयाम प्रदान करता है। लेखकों और पाठकों के बीच संवाद स्थापित करने का यह एक अनूठा मंच है, जहां विचारों का आदान-प्रदान होता है और साहित्यिक प्रवृत्तियों को नई दिशा मिलती है। डिजिटल दौर में भी पुस्तकों की प्रासंगिकता को बनाए रखना न केवल आवश्यक है बल्कि यह समाज के बौद्धिक और सांस्कृतिक विकास के लिए भी अनिवार्य है। विश्व पुस्तक मेला इस उद्देश्य की पूर्ति में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है और आने वाले वर्षों में भी यह साहित्य प्रेमियों, लेखकों और प्रकाशकों के लिए प्रेरणादायक मंच बना रहेगा।

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