पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बना भारत-पाक सीमा पर पीपल का पेड़
‘भारत-पाक की सीमा पर एक पीपल का पेड़ है, जिसने एक खम्बे को सटक लिया है। यह पेड़ अब पर्यटकों के लिए आकर्षण का विशेष केंद्र बन गया है। जम्मू कश्मीर की राज्य सरकार भी इसे पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने की योजना बना रही है।’ यह बात मेरे एक दोस्त ने मुझसे कही थी। मैं उसकी बात को कोरी गप्प मानकर अनदेखा कर देता, अगर इस पीपल के पेड़ को मैंने स्वयं देखा न होता। जम्मू शहर से भारत-पाक सीमा की तरफ लगभग 28 किमी का सफर तय करके मैं एक छोटे से गांव सुचेतगढ़ पहुंचा। यहां सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का एक चेकपोस्ट है, जोकि होना भी चाहिए था क्योंकि जैसा कि आपको मालूम है कि भारत-पाकिस्तान के बीच जो अंतर्राष्ट्रीय सीमा है उसका प्रबंधन बीएसएफ करती है। इस चेकपोस्ट को ओक्ट्रोई बॉर्डर आउटपोस्ट कहते हैं। यह नाम इसे इसलिए मिला क्योंकि गांव में चुंगी एकत्र करने का केंद्र है।
चेकिंग कराने के बाद उच्च-सुरक्षा प्रवेशद्वार को पार करने के बाद मैं और जो अन्य पर्यटक वहां आये हुए थे, जिनकी संख्या उस दिन ज्यादा न थी, सीधे अंतर्राष्ट्रीय सीमा की तरफ बढ़ने लगे, जिसकी निशानदेही 1947 में की गई थी। इस तथाकथित रेडक्लिफ लाइन का नाम इसके आर्किटेक्ट सर सायरिल रेडक्लिफ के नाम पर रखा गया है। इस लाइन को पहचानने के लिए छोटे, सफेद, पिरामिड के आकार जैसे पिलर या खम्बे बनाये गये हैं, जिन पर काले रंग से उनके सीरियल नंबर लिखे हुए हैं। ऐसा ही एक पिलर, जिसका सीरियल नंबर 918 है, चेकपोस्ट के अंदर ‘जीरो लाइन’ पर है। एक अन्य पिलर जिसका सीरियल नंबर 919 है, को पास में ही देखा जा सकता है। पिलर 918 के करीब में ही एक पीपल का पेड़ खड़ा है। हर साल मौसमी विकास के कारण इस पीपल के पेड़ का तना फैलता गया और वह पिलर नंबर 918 पर दबाव बनाता रहा। आहिस्ता आहिस्ता पेड़ पिलर को घेरता रहा और फिर समय के साथ उसने पिलर को पूरी तरह से हज़म कर लिया। पेड़ के तने को गौर से देखने के बाद एक झिर्री में से पिलर का कुछ हिस्सा अब भी दिखायी देता है, लेकिन वह भी जल्द ही गायब हो जायेगा।
यह अच्छी बात रही कि भारतीय बीएसएफ और पाकिस्तान रेंजर्स जो अपनी अपनी सीमाओं की रक्षा कर रहे हैं, ने पेड़ को काटा नहीं बल्कि उन्होंने पेड़ के तने पर ही सीरियल नंबर 918 पेंट कर दिया और इसे नये सीमा पिलर के तौर पर स्वीकार कर लिया। इन दोनों देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर, संभवत:, यह एक मात्र जीवित सीमा पिलर है, जिससे यह पेड़ पर्यटकों के लिए अधिक आकर्षक हो गया है, जो यहां घूमने के लिए आते हैं।
यह पीपल सीधा व प्रभावी है, लेकिन अभी इसमें वैसा वैभव नहीं है जैसा प्राचीन पेड़ों में हुआ करता है, हालांकि यह लगभग 100 वर्ष पुराना है। इस पेड़ की तीन मुख्य शाखाएं भारत की ओर झुकती हैं और दो अन्य शाखाएं पाकिस्तान की ओर झुकती हैं। इसकी विशेषता इसकी गहरी हरे रंग की पत्तियां हैं, जिन्हें देखकर आंखों में ताज़गी आ जाती है। पेड़ के दोनों तरफ सैनिकों ने कंक्रीट के आयातकार चबूतरे बना रखे हैं। जम्मू-कश्मीर सरकार इस सीमावर्ती चेकपोस्ट को पर्यटक हब के रूप में विकसित करना चाहती है, लेकिन प्रगति बहुत धीमे हो रही है। राज्य के पर्यटन विभाग ने 41वें विश्व पर्यटक दिवस पर ओपन-रूफ लक्ज़री बस सेवा जम्मू शहर और सुचेतगढ़ के बीच शुरू की थी। 27 सितम्बर, 2020 से शुरू हुई इस बस सेवा से ही मैं सुचेतगढ़ पहुंचा था।
पीपल के इस पेड़ के लिए जीवन उतना ही कठिन व अनिश्चित है जितना कि सुचेतगढ़ के ग्रामीणों के लिए है। हालांकि दशकों से भारत पाकिस्तान के बीच आल आउट वॉर नहीं हुई है, लेकिन तनाव हमेशा बना रहता है। ग्रामीणों को अचानक गोलीबारी की आवाजें सुनने या मोर्टार शेल्स के फटने की आदत पड़ी हुई है जो रास्ते में आने वाले घरों, वाहनो और मवेशियों को चीरती हुई निकल जाती हैं। 1971 ऐसी ही एक गनफायर घटना में चेकपोस्ट के पास 1837 में बना रघुनाथ मंदिर आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हो गया था। अभी के लिए पीपल का पेड़ ठीक ठाक है, सुरक्षित है। फरवरी 2021 के शांति समझौते के बाद से बंदूकें खामोश पड़ी हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि शांति व भाईचारा कायम रहेगा ताकि पर्यटन यहां जड़ पकड़ सके और इस विशिष्ट पेड़, जो एक पूरा पिलर खा गया, को लोग देख सकें और इसका जश्न मना सकें।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर