काजी का न्याय और बादशाह
गयासुद्दीन एक नेक बादशाह था। उसके राज्य में सबको न्याय मिलता था। उसने काजी को कह दिया था कि इंसाफ के मामले में छोटे-बड़े सबको बराबर समझा जाए।
एक बार गयासुद्दीन तीरंदाजी का अभ्यास कर रहा था। गलती से उसका तीर एक धोबन के पति को लग गया। धोबी घायल हो गया। धोबन ने काजी के पास मुकदमा कर दिया बादशाह के खिलाफ। लोग हंसने लगे और बोले-‘यह धोबन जीवन भर जेल में सड़ेगी।’
काजी ने अभियोग सुना। उसने गंभीर होकर चौकीदार से कहा- दरबार में जाओ और चिल्लाकर कहो कि काजी ने गयासुद्दीन को जाहिर होने का हुक्म दिया है।
चौकीदार डरते-डरते गया। उसने चिल्लाकर कहा-गयासुद्दीन ने एक निरपराध को तीर मारा है। उसे हुक्म दिया गया है कि काजी की अदालत में हाज़िर हो। दरबार में सन्नाटा छा गया। सिपहसालार ने कहा-काजी पागल हो गया है। उसे पकड़ कर यहां बुलाता हूं। बादशाह ने सिपहसालार को मना कर दिया और नंगे पांव काजी की अदालत में पहुंचा।
काजी ने पूछा-‘क्या अभियोग सही है?’
गयासुद्दीन ने ‘कहा-सही है। इसकी क्या सजा होगी?’
काजी ने कहा ‘अभियोग मान लेने पर अपराध कम हो जाता है। घायल धोबी की चिकित्सा करानी होगी और एक सौ मुहरें दंड में उसे देना होगा। न मानने पर पचास कोड़े लगाये जायेंगे।’
गयासुद्दीन ने कहा-हुजूर, मैं धोबी का पहले से ही इलाज करा रहा हूं। उसे एक सौ मुहरें दे दी गई हैं। ठीक होने पर उसे नौकरी भी दे दी जायेगी।
धोबन ने कहा-‘हां, ये सब बातें हो गयी हैं। मैंने मुकदमा कल किया था। रात को ही बादशाह के आदमी मुहरें दे गये और शाही हकीम इलाज कर रहे हैं।’ अब काजी अपनी जगह से नीचे आया और उसने बादशाह को सलाम किया। बेअदबी के लिए माफी मांगी।बादशाह ने कहा-मैं तुमसे खुश हूं। अगर तुम ठीक इंसाफ नहीं करते तो देखो, यह कटार लाया था। तुम्हारी हत्या कर देता। काजी ने अपने चोंगे से एक कोड़ा निकाला और बोला- ‘अगर आप दंड स्वीकार नहीं करते तो मैंने यह कोड़ा रखा था। स्वयं कोड़े लगाता।’ काजी ने फिर माफी मांगी।
बादशाह ने काजी को गले लगा लिया। बोले ‘न्याय के दरबार में सब बराबर हैं। मुझे आप जैसे काजी पर अभिमान है। आपको एक ऊंट और सौ मुहरें इनाम में दे रहा हूं।’
काजी ने फिर कोर्निश की। आज भी कुछ लोग न्यायालय में जाने पर छोटे-बड़े का भेद उठाते हैं। गयासुद्दीन की यह कथा आज भी राजनीतिज्ञों के लिए प्रेरक है। (उर्वशी)