जनता को गुमराह करना सबसे बड़ा अपराध
इस कहावत को परखा जाएकि जैसा राजा होगा, वैसा ही प्रजा का आचरण होगा तो यह किसी भी दलके शासन के बारे में पूरी तरह सत्य है। नागरिकों के मन में यह धारणा बनना कि ‘जब तक उंगली टेढ़ी नहीं करेंगे, तब तकघी नहीं निकलेगा’, अपना काम निकालने के लिए लोगयहसोचनेलगें कि बिना ज़ोर ज़बरदस्ती किए और रिश्वततथा बेईमानी कासहारा लिए कोईभी काम चाहे कितना ही सच्चाई पर आधारित हो, नहीं हो सकता तब सोचना होगा कि देशक्या वास्तव में प्रगति कर रहा है?
संबंधों में गिरावट
रिछले दिनों एक पुरानेमित्र ने अपनेएक रिश्तेदारके साथ हुई घटना सुनाई तोविश्वास नहींहुआ, लेकिन वह आजकी सच्चाई थी। घटना किसी फिल्म की तरहहै। उस सज्जनका कारोबार देश भर में फैला हुआ है, जिसे पूरा परिवार मिलजुल कर संभालता है। हुआ यह कि लगभग 10-12 वर्ष पहले एक महिला उनके कार्यकाल में अपनी युवा बेटी के साथ किसी जानकार को लेकर उनसे मिलवाने लाई और कहा कि मेरी बेटी जैसी है और काम सीखना चाहती है। उस समय कोई काम न होने पर कह दिया कि भविष्य में यदि ज़रूरत हुई तो सम्पर्क कर लिया जाएगा। कई वर्ष बीत गए। एक दिन अचानक वही लड़की पुरानी जान-पहचान का हवाला देकर उनसे मिली और काम देने की बात की। उनके दफ्तर में एक पद रिक्त था तो उन्होंने उसे रख लिया।
अब इसके बाद की कहानी विश्वासघात, मिलीभगत कर आर्थिक नुकसान पहुंचाने तथा उस सज्जन पर झूठे आरोप लगाकर बदनाम एवं अपमानित करने की कोशिश की है। उसने अपने एक साथी की सहायता से पहले पैसे का हेराफेरी की, पुराने कर्मचारियों को कम्पनी छोड़ने के लिए मजबूर किया और कारोबार पर कब्ज़ा करने की कोशिश की। यह बात पता चलने पर उन्होंने कोई कानूनी कार्रवाई तो नहीं की, परन्तु उसे बाहर निकाल दिया। बहुत बार माफी मांगने पर यह विश्वास दिलाने कि वह किसी दूसरे के कहने पर यह सब कर रही थी और वह बिल्कुल निर्दोष है। उस सज्जन ने यही गलती की कि उसे दोबारा काम पर रख लिया। अब उसने एक ही महीने में इस तरह की साज़िश रची कि व्यापार में भारी नुकसान हुआ और इज़्ज़त भी दांव पर लगने की स्थिति आ गई। उस सज्जन को अब पूरी बात समझ में आ गई और उन्होंने उसे पुन: निकाल दिया। अब उसने ब्लैकमेल करने, पैसा ठगने तथा बदनाम करने की धमकी देकर झूठी शिकायतें करने से लेकर मान-सम्मान तथा उनके परिवार एवं व्यापार से जुड़े लोगों को मुसीबत में डालने की योजना बनाई। अलग-अलग लोगों से धमकियां दिलाने की कोशिश की। इस बात से उस सज्जन को ज़बरदस्त मानसिक ठेस पहुंची और वह किसी प्रकार डाक्टरों के इलाज से ठीक हो गया।
यह घटना दर्शाती है कि आज के युग में किसी पर विश्वास करना कितना घातक हो सकता है। क्या ऐसे लोगों का हौसला इस बात से नहीं बढ़ता है, जब वे आस-पास देखते हैं कि कोई भी अपराध करके सच्चा बना रहा जा सकता है, फिर क्यों न मंज़िल को आसान राह पर चला लिया जाए?
रिश्तों में गिरावट
जीवन में थोड़ा-बहुत स्वार्थ होना एवं अपने ही हित की बात करने में कोई बुराई नहीं है, परन्तु यह सोच तब विनाशकारी हो जाती है, जब किसी को नुकसान पहुंचाने से यह हासिल किया जाए। समाज हो या देश, कभी इस प्रकार वास्तव में तरक्की नहीं कर सकता। सबसे बड़ी बात यह है कि जब तक राजनीति में पवित्रता नहीं होगी और शासक वर्ग हो विपक्ष, जनता के सामने ऐसे उदाहरण नहीं रखेंगे कि नैतिकता, ईमानदारी तथा सच्चाई से ही देश का विकास हो सकता है, तब तक समाज में इन बातों की उम्मीद रखना व्यर्थ है।
जल्दबाज़ी से विकास नहीं
अपराधियों को शह, उनके चुनाव लड़ने पर कोई रोक न लगाना, कानून का मज़ाक बना देना तथा इस तरह व्यवहार करना कि जैसे कानून तथा व्यवस्था से लेकर संविधान तक को, उनके इशारों पर बदला जा सकता है, तब आम नागरिक को भी भ्रष्टाचार एवं अनैतिक कार्य करने के लिए शह मिलती है।
इसका परिणाम है कि अपराधी चुनाव जीत जाते हैं। समाज की सेवा करने के लिए उत्सुक कोई व्यक्ति चुनाव लड़ने की बात सोचना तो दूर, मतदान करने तक नहीं जाता। राजनीतिक पार्टियां इसी बात का लाभ उठाती हैं और जो निष्पक्ष मतदाता हैं, उनके सामने ऐसी स्थिति पैदा कर देते हैं कि वे मतदान करने न जाएं तो अच्छा है, क्योंकि उनके एक वोट से इन पार्टियों को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। लगभग आधे से ज़्यादा मतदाता मतदान करने नहीं जाते, जिसके पीछे बड़ा कारण यही है कि राजनीतिक पार्टियां तथा उनके दागदार उम्मीदवार कभी नहीं चाहते कि वे मतदाता मतदान करने जाएं। यही कारण है कि चुनावों में असल मुद्दे नहीं उठाते, बनावटी एवं व्यर्थ बातें होती हैं और उनके ही दम पर उम्मीदवार जीत जाते हैं। जिस दिन यह समझ आने लगेगा कि नैतिकता का पतन समाज का अपमान है और देश के विकास के लिए हानिकारक है, तब भारत वास्तव में विश्व में उपलब्थि हासिल करेगा।