अर्थव्यवस्था के फिर पटरी पर लौटने के संकेत

नई दिल्ली, 29 जनवरी (वार्ता): सरकार ने अगामी वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर पेश करते हुए इसके मंदी से उबरकर फिर पटरी पर लौटने की उम्मीद जताई है और कहा कि भारत अगले वित्त वर्ष में दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन जाएगा। वित्त मंत्री अरुण जेतली द्वारा आज संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के अल्पकालिक प्रभाव अब लगभग समाप्त हो चुके हैं और वित्त वर्ष 2018-19 में आर्थिक विकास दर 7 से 7.5 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान है। चालू वित्त वर्ष में इसके 6.75 प्रतिशत रहने की संभावना जताई गई है। इसमें कहा गया है कि वित्तीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.2 प्रतिशत रह सकता है। अगले वित्त वर्ष में महंगाई, वित्तीय घाटा और चालू खाता घाटा बढ़ने की आशंका जताते हुए कहा गया है कि कच्चे तेल की कीमतों में हो रही बढोत्तरी इसका मुख्य कारण है। जीएसटी लागू किए जाने के बाद संसद में पेश पहले आर्थिक सर्वेक्षण में कृषि क्षेत्र के लिए अच्छी खबर नहीं है और खेती की विकास दर 2.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है और जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर किसानों की घटने की आशंका जताई गई है। हालांकि, वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कई उपायों पर ज़ोर दिया गया है। सरकार ने आगामी वित्त वर्ष से अर्थव्यवस्था में सुधार की उम्मीद जताते हुये निर्यात को सम्भावनाओं का प्रमुख स्रोत बताया है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि सरकार कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य और महिलाओं की स्थिति में सुधार पर विशेष ध्यान देगी। इसके अनुसार नोटबंदी बाद व्यक्तिगत करदाताओं की संख्या 18 लाख और जीएसटी के बाद अप्रत्यक्ष करदाताओं की संख्या 34 लाख बढ़ी है। जीएसटी से मिलने वाले राजस्व में बढ़ोतरी के पुख्ता संकेत मिल रहे हैं।  महंगाई को लेकर सरकार को कुछ राहत है और वित्त वर्ष 2017-18 में औसत खुदरा महंगाई 6 वर्ष के न्यूनतम स्तर पर रहने की उम्मीद जताई गई है, लेकिन अगले वित्त वर्ष से इसमें तेज़ी आने का अनुमान सरकार के लिए चिंता की बात है। आर्थिक सर्वेक्षण में वित्तीय घाटा, चालू खाते का घाटा और महंगाई तीनों के चालू वित्त वर्ष में उम्मीद से ज्यादा रहने की बात कही गई है, हालांकि यह भी कहा गया है कि ‘कोई डरने वाली’ स्थिति नहीं है। इन तीनों मानकों पर आशंका का प्रमुख कारण अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ी कीमतों को बताया गया है।  सर्वेक्षण में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन का असर भारत के कृषि क्षेत्र पर दिखने लगा है। पिछले चार साल से वास्तविक कृषि जीडीपी और कृषि राजस्व स्थिर रहा है। इसमें दो साल कमज़ोर मानसून इसकी वजह रही जबकि बाद के दो साल के लिए जलवायु परिवर्तन को मुख्य कारण बताया गया है। जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि से होने वाली आय में 20 से 25 प्रतिशत की गिरावट की आशंका व्यक्त की गई है और कहा गया है कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए सरकार को आगे काफी परिश्रम करना होगा। इसमें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को किसानों तक पहुंचाना, बिजली एवं उर्वरक पर अलक्षित सब्सिडी की जगह प्रत्यक्ष आय के रूप में समर्थन देना और सिंचाई सुविधा का तेज विस्तार शामिल है।

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