परीक्षाओं के बोझ से सीबीएसई की मुक्ति

डाक्टर, इंजीनियर, मैनेजमेंट एग्जीक्यूटिव, प्रोफेसर और फार्मासिस्ट बनने लिए आयोजित होने वाली परीक्षाओं का पैटर्न भले अब भी पहले जैसा ही बना रहे लेकिन इनके संचालन की  जिम्मेदारी अब सीबीएसई (केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड) की जगह नेशनल टेस्टिग एजेंसी (एनटीए) की होगी। वित्तमंत्री ने इस एजेंसी के गठन की घोषणा अपने बजट भाषण में थी, उस वायदे को केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय ने एनटीए के गठन के साथ ही पूरा कर दिया है। इस तरह अब सीबीएसई का बोझ हल्का हो गया है। हालांकि देश के उच्च शिक्षा से संबंधित तकनीकी और प्रोफेशनल कालेजों की विभिन्न फैकल्टीज  के नामांकन हेतु होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं की जिम्मेदारी एनटीए को देना एक चुनौती भरा कदम भी होगा। क्योंकि इनमें शामिल होने के मौके तो बढ़ गए हैं, लेकिन अब बदले  तौर-तरीके के मुताबिक सभी परीक्षाएं पूरी तरह से कंप्यूटर आधारित होंगी। वे ऑनलाइन नहीं होंगी, लेकिन लोकल नेटवर्किंग से जुड़ी होंगी। इसके लिए प्रतियोगियों को कंप्यूटर ज्ञान और इस संबंध में आवश्यक प्रशिक्षण जरूरी हो जाएगा। जो देशभर में चिन्हित होने वाले कंप्यूटर केंद्रों पर ही नि:शुल्क दिया जायेगा। अत: अब प्रतियोगियों को परीक्षाओं के लिए फिजिक्स, केमेस्ट्री, मैथेमेटिक्स, बायोलाजी आदि विषयों के साथ-साथ कंप्यूटर की भी आंशिक पढ़ाई करनी होगी। वैसे जेईई एडवांस की जिम्मेदारी अभी भी आईआईटी के पास ही रहेगी और यह परीक्षा सिर्फ  ऑनलाइन होगी। एनटीए द्वारा सम्पन्न  परीक्षाओं के फुल प्रूफ  रहने का दावा किया गया है। केंद्रीय शिक्षामंत्री प्रकाश जावेडकर के अनुसार यह व्यवस्था दुनिया के दूसरे देशों की तरह होगी यानी इसमें नकल या हेराफेरी की कोई गुंजाइश नहीं होगी। सवालों के किसी भी तरह के लीकेज होने की तमाम आशंकाएं खत्म कर ली गई हैं। दूसरी तरफ  इसमें अपनी सुविधानुसार शामिल होने का विकल्प भी प्रतियोगियों को मिल जाएगा। खासकर मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा जेईई (मेन) में शामिल होने के साल में दो मौके मिलेंगे। इस तरह से अब कोई भी प्रतियोगी इन परीक्षाओं में छह बार बैठ सकता है, जो अभी तक निर्धारित उम्र सीमा 25 वर्ष में सिर्फ  तीन बार बैठ पाता था। ऐसा होने से परीक्षार्थियों को बेहतर ढंग से अपनी तैयारी करना और परफ ार्मेंस का पता लगाना आसान हो जएगा। दोनों परीक्षाओं के बीच तीन-चार माह का वक्त मिल जाएगा, तो किसी एक में शामिल नहीं होने की स्थिति में पूरा साल खराब नहीं होगा, इससे मानसिक तनाव कम होगा। अब तक यह एक बड़ी समस्या थी। इसे लेकर अभिभावकों की लंबे समय से मांग बनी हुई थी। इसका सबसे बड़ा फायदा किन्हीं कारण परीक्षा में हुई गड़बड़ी या छूटने पर उसे सुधारने का मिलेगा। वैसे परीक्षाओं के पाठ्यक्रम उसके पैटर्न, फीस और भाषा में किसी तरह का बदलाव नहीं किया जाएगा।  वे पहले की तरह ही रहेंगी।  परीक्षार्थी को दो बार परीक्षा देने से जिसमें बेहतर स्कोर मिलेगा, वह उसी आधार पर आगे की मेन परीक्षाओं में शामिल हो सकता है। इन परीक्षाओं का आयोजन भी अब एक दिन के बजाय चार-पांच दिनों की अवधि में कुल आठ पालियों में संपन्न होगा। परीक्षार्थी अपनी सुविधा के अनुसार परीक्षा की तारीख भी चुन सकता है। उदाहरण के तौर पर 3 से 17 फरवरी 2019 को आयोजित होने वाली कुल आठ विभिन्न सत्रों में से किसी एक का चुनाव किया जा सकता है।  परीक्षाएं देशभर में बनाए जाने वाले कंप्यूटर केंद्रों पर ही होंगी। हालांकि अभी इन केन्द्रों की सूची जारी होनी है। लेकिन लगता है अब परीक्षाओं का एक निश्चित ठौर-ठिकाना हुआ करेगा। बहरहाल इस नई व्यवस्था के तहत आने वाली चुनौतियां भी कम नहीं होंगी, इसलिए जरूरी है कि उन पर भी एक नजर डाल ली जाये। नई प्रणाली से आने वाली दिक्कतों को देश के तमाम स्कूलों को समय रहते दूर करना होगा। सबसे बड़ी चुनौती कंप्यूटर बेस्ड परीक्षा केंद्रों की है, जिन्हें बड़े डेटाबेस के आधार संभालने होंगे। नीट और जेईई में सबसे अधिक छात्र-छात्राएं शामिल होते हैं। उनके एडमिट कार्ड तैयार करने से लेकर रिजल्ट देने तक में काफी सावधानी बरतनी होगी। उनके डेटा के लीक होने की आशंका बन सकती है। इसलिए उसके फुल प्रूफ  बनाने का भी इंतजाम उतना ही जरूरी होगा जितना प्रश्न पत्र को लीक होने से बचाना।  एक अन्य कंप्यूटर प्रशिक्षण की समस्या का समाधान इस परीक्षा में शामिल होने वाले वैसे परीक्षार्थियों के लिए निकालनी होगी जो सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं। अधिकतर सरकारी स्कूलों में इसकी सुविधा नहीं के बराबर है। नतीजा बेहतर पढ़ाई और तैयारी के बावजूद यह कमी उनके लिए आगे बढ़ने में बाधक बनेगी। इसे ‘क्रैश कोर्स’ की तरह सिखाना आसान नहीं होगा। इसके लिए अभ्यास की भी जरूरत होगी। इस बावत एनटीए के दिशा-निर्देश के तहत तैयारी स्कूल स्तर पर करवाना होगा। कहना चाहिए कि अब हाई स्कूलों के इन्फ्रास्ट्रक्चर और पठन-पाठन के तरीके को भी प्रतियोगी परीक्षाओं में किए जाने वाले बदलावों के संदर्भ में बनाना होगा। इसके लिए राज्य सरकार के स्कूलों को भी दिशा-निर्देश देना होगा। बहरहाल, एनटीए के गठन की घोषणा 2017-18 के बजट में केंद्रीय मंत्री अरुण जेतली द्वारा की गई थी, जिसकी मंजूरी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय कैबिनेट ने नवंबर 2017 में दे थी। तब उसे एकमुश्त 25 करोड़ रुपये भी दिए गए थे। इसके गठन के पीछे का तर्क सीबीएसई को परीक्षाएं आयोजित करवाने से मुक्त करना है ताकि वह शिक्षा पर ध्यान केंद्रित कर सके। यह मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत चलने वाली एक स्वायत्त एजेंसी है, जो खुद अपनी आय पर चलेगी। इसका मुख्य उद्देश्य स्टूडेंट को बेस्ट परफार्म करने का मौका देना है। इसके जरिए ग्रामीण छात्रों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए परीक्षा केंद्र उपजिला और जिला स्तर पर बनाए जाने हैं। ऐसे में यह भी जरूरी है जब प्रोफेशनल कोर्स के लिए परीक्षाओं की कमान केंद्र के हाथ में है, तो राज्य सरकारों को भी अपनी शिक्षा व्यवस्था उसी स्तर की बनानी होगी।  इन तमाम उम्मीदों के बीच देखना यह है कि एनटीए अपने कामकाज से छात्रों और अभिभावकों के बीच कितनी मज़बूत साख बना पाती है और अपने वादे के मुताबिक सिस्टम को फुल प्रूफ बना पाती है ? कारण देश की कई एजेंसियां जब अपनी गुणवत्ता और विवाद को लेकर कठघरे में खड़ी हैं। पेपर लीक से लेकर कई तरह की गड़बड़ियां वे नहीं रोक पायी  हैं। जबकि एनटीए तो यूजीसी नेट, सीमैट और जीपैट की परीक्षाओं को भी आयोजित करेगी। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर