शरीर को स्वस्थ बनाता है प्रात:कालीन भ्रमण

खेलना, तैरना, घुड़सवारी करना, साइकिल चलाना, जागिंग करना आम व्यायाम हैं। दण्ड पेलना, कुश्ती करना मुदगर पेलना कुछ कठिन व्यायाम हैं। सूखा-चना खा कर भी सेहत को चंगा रखा जा सकता है। मन चंगा तो कठौती में गंगा। मन से सभी रोग शुरू होते हैं। जो लोग बैठ कर कार्य करते हैं जैसे दुकानदार, क्लर्क, प्रोफेसर,अध्यापक, सभी के लिये व्यायाम करना अति आवश्यक है। घूमना, टहलना, जागिंग या साइकिलिंग भी अपनी जगह श्रेष्ठ हैं। व्यायाम से अतिरिक्त वसा जल कर कम हो जाती है अन्यथा वसा हमारी चमड़ी के नीचे बैठ कर हमारी तोंद बाहर निकाल देती है। गाल व बाजु थुलथुले हो जाते हैं। शरीर के अंदरूनी अंग जैसे गुर्दा, दिल व आंतड़ियों पर वसा जमने लगती है। रूधिर वाहिनियों की दीवारें तंग हो जाती हैं और रक्त का दबाव बढ़ जाता है। शरीर की सुंदरता बिगड़ जाती है। चाल भी प्रभावित होती है। स्फूर्ति कम हो जाती है। डकार, गैस व अपच आदि रोग घेरा डाल लेते हैं जो बाद में भयंकर रूप धारण कर लेते हैं। घास पर नंगे पांव चलने से नेत्र-ज्योति में वृद्धि होती है। चलते समय रीढ़ की हड्डी सीधी और सीना तना हुआ रहना चाहिए। प्रात: हवा में आक्सीजन की मात्रा ज्यादा रहती है। हरे रंग को देखने से मन को स्फूर्ति मिलती है।सुबह की सैर सभी रोगों की रामबाण संजीवनी है। प्रात: की सैर सायं की सैर से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि प्रात:काल धूल मिट्टी, वाहन नहीं होते। वायुमण्डल में आक्सीजन की मात्रा ज्यादा रहती है। रक्त शुद्ध होकर जीवन-चेतना में वृद्धि होती है। गर्भवती स्त्रियों, दमा के रोगियों गठिया या जोड़ों के दर्द वाले लोगों के लिए प्रात: भ्रमण रामबाण औषधि है जो न कड़वी है, न ही इसका कोई दाम है। शरीर से फालतू चर्बी घुल कर शरीर का काया-कल्प हो जाता है, शरीर निरोग व दीर्घायु को प्राप्त होता है।भ्रमण करते समय अपना मन व  दिमाग शांत व विचारशून्य  रखने की चेष्टा करें । अकेले हों तो अच्छा, यदि मनपसन्द साथी हो तो और भी अच्छा, यदि जीवन साथी साथ भ्रमण करे तो सर्वोत्तम है। स्वस्थ शरीर के लिए जितना जरूरी संतुलित भोजन है उतना ही जरूरी संतुलित व्यायाम है। चलते समय आरामदायक कैनवेस शूज़ और ढीले सफेद कपड़े हाें तो सात्विकता बढ़ जाती है। डिप्रेशन के मरीज़ों के लिए सैर प्रसन्नता प्रदान करती है। नियमित व्यायाम से शरीर की टूटी-फूटी कोशिकाएं मुरम्मत हो कर ठीक हो जाती हैं। शरीर हष्ट पुष्ट बनता है। शरीर को जिस प्रकार हवा पानी की आवश्यकता है उसी अनुपात में व्यायाम आवश्यक है। इससे शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है। जो रोग औषधि नहीं ठीक कर सकती, वे तेज चलने से ठीक हो जाते हैं। गठिया, मधुमेह, दिल के रोग , मोटापा, जोड़ों का दर्द, पीठ का दर्द , कमजोर हड्डियां, डिप्रेशन, चिन्ता आदि प्रात: भ्रमण से दूर भाग जाते हैं। (स्वास्थ्य दर्पण)

——बिजेन्द्र कोहली गुरदासपुरी