सम्पूर्ण व्यक्तित्व हैं भगवान श्री कृष्ण

भगवान श्री कृष्ण का जन्म द्वापर युग में गोकुल, ज़िला मथुरा, उत्तर प्रदेश में हुआ। गोकुल गांव में आज भी श्री कृष्ण के समय के चिन्ह मौजूद हैं। वह वृक्ष भी मौजूद है जिससे बाल कृष्ण को यशोदा माता ने बांधा था। भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव को ही जन्माष्टमी कहते हैं। मूसलाधार वर्षा, बिजली की कड़कड़ाहट, बादलों के झुरमुट, समस्त धरती जल-थल—ऐसे समय में श्री कृष्ण का जन्म हुआ। जब जीवन में अंधकार बढ़ता है, निराशा के बादल छाते हैं, आपत्ति की बाढ़ आती है, दुख-मुसीबतें सिर चढ़ कर बोलती हैं, तब भगवान श्री कृष्ण जन्म लेते हैं। भगवान श्री कृष्ण में मानवता के सभी गुण थे। श्री कृष्ण एक सच्चे मित्र (कृष्ण-सुदामा का प्रसंग), राजा जैसे, पिता और पुत्र, भक्तों को स्वयं भगवान लगते। उनके मस्तक की आभा में सूर्य जैसा आकर्षण था। शांत, निर्मल एवं सही फैसला लेने वाले, लोगों में प्यार बांटने वाले। उनके आकर्षण में, उनकी बाणी में एक ऐसी सुरभि थी जिसको पाकर सभी आनंद-विभोर हो जाते। वैसे ही जन्माष्टमी प्रत्येक वर्ष आती है। लोगों को परम आनंद देती है। कृष्ण का जीवन ही वैसा है। सभी दृष्टियों से कृष्ण पूर्णावतार थे। उनके जीवन में कहीं भी अंगुली उठाने, न्यूनता ढूंढने जैसा स्थान नहीं है। वह नैतिकतावादी, समाजोद्धारक, राजनीतिज्ञ, संस्कृति के स्वामी इत्यादि गुणों का गहरा समुद्र थे। वह यशस्वी, राजनयिक, विजयी योद्धा, धर्म साम्राज्य के निर्माता, मानव विकास करने वाले, धर्म के महान प्रवचनकार, भक्त-वत्सल, और ज्ञानियों तथा जिज्ञासुओं की जिज्ञासा पूरी करने वाले जगद्गुरु थे। भगवान श्री कृष्ण ने बुराई का नाश किया और अच्छाई की सुरभियां पैदा कीं। गो-पालों से मिल कर उन्होंने समाज बदल दिया। उन्होंने पाप और दम्भ को खत्म किया। नाग जाति के दुष्ट राजा का नाश किया। भगवान श्री कृष्ण कर्म को प्राथमिकता देते हैं। उन की मूर्ति को देखने से शांति मिलती है। होंठों पर मुरली का मधुर संगीत, मस्तिष्क पर मोर पंख, गले में माला, साथ में गाय ये सब चिन्ह शांति और सुखद प्रेम को दर्शाते हैं। भक्ति और ज्ञान जिसने जीवन में उतारा है, ऐसे निष्काम कर्मयोग की जानकारी श्री कृष्ण ने गीता में दी है। गीता के श्लोक स्वयं भगवान द्वारा गाए गए हैं। श्री कृष्ण भारत के प्रतीक युग पुरुष हैं। आज के दिन का यही एक बड़ा संदेश है कि भारतवासियों को भगवान श्री कृष्ण के संदेशों पर चल कर ही परम मोक्ष एवं पूर्णता हासिल हो सकती है। जाति-पाति, रंगरूप, वर्ण-भेद छोड़ कर भारत के सच्चे कर्मशील नागरिक बनना चाहिए। जन्माष्टमी मनाएं और भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं में लीन हो जाएं।