करतारपुर गलियारे की भावना

पिछले दिनों पाकिस्तान के रेल मंत्री शेख रशीद की ओर से करतारपुर साहिब गलियारा के संबंध में जो बयान दिया गया, उसे हम अत्यधिक दुर्भाग्यपूर्ण समझते हैं। 70 वर्ष के बाद श्री गुरु नानक देव जी के जीवन के अंतिम पड़ाव से संबद्ध गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब का पाकिस्तान के भीतर कुछ किलोमीटर का मार्ग बनाने एवं बिना वीज़ा उसे खोले जाने की घोषणा अतीव ऐतिहासिक है। चिरकाल से उत्पन्न हुई आशाओं एवं तड़पते हुए हृदयों को शान्त करने वाला है। हमनें दोनों देशों की सहमति से खुले इस गलियारे के लिए भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का धन्यवाद किया था तथा लिखा था कि सात दशकों से बिछुड़े इस गुरु-धाम के दर्शनों की इजाज़त देकर पाकिस्तान की सरकार ने एक बहुत बड़ा एहसान किया है। 
भारत की सरकार ने इससे सहमति व्यक्त करते हुए बहुत उत्तम पग उठाया है। चाहे दोनों देशों के बीच इस समय भी कई पक्षों से तनावपूर्ण संबंध बने रहे हैं। इतना ही नहीं, श्री नरेन्द्र मोदी ने डेरा बाबा नानक पहुंच कर भारतीय पक्ष की ओर गलियारे का उद्घाटन भी किया था। अत्यधिक बढ़िया एवं श्रेष्ठ भावनाओं की अभिव्यक्ति भी की थी तथा यह पग उठाने के लिए इमरान खान का धन्यवाद भी किया था, परन्तु दोनों देशों में बड़ी संख्या में कुछ ऐसे तत्व मौजूद हैं, जिन्हें यह बात पसन्द नहीं आई। ऐसे लोग पहले भी दोनों देशों के संबंध बेहतर बनने की सम्भावनाओं से ही नाखुश नज़र आते रहे हैं। इमरान खान अपने देश में चिरकाल से पैदा हुए हालात के कारण अवश्य अपनी सीमाओं में घिरे हुए दिखाई देते रहे हैं। आज भी ऐसा ही प्रभाव मिलता है। पाकिस्तान के समूचे ढांचे में उन्हें दरपेश कठिनाइयों की समझ आती है। बन गए ऐसे माहौल में बहुत कुछ उनके वश में भी नहीं प्रतीत होता, परन्तु इसके बावजूद पद संभालते ही इमरान खान ने भारत के साथ मैत्री का हाथ बढ़ाने का यत्न किया। निरन्तर इसी दिशा में बयान दिए तथा दोनों देशों के हालात सुखद बनाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता भी व्यक्त की। करतारपुर साहिब का गलियारा खोलना भी इसी भावना की अभिव्यक्ति करता है। भारत को भी इमरान खान की सीमाओं को समझने का यत्न करना चाहिए। गलियारा खुलने के बाद दोनों देशों के बीच पुन: सद्भावना का जो माहौल उत्पन्न हुआ है, इसे व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए। यदि भारतीय पक्ष की  बात करें तो हमें इस बात की भी समझ नहीं आई थी कि एक ओर गलियारा खुलने वाले दिन उत्साह एवं प्रसन्नता का माहौल था, दूसरी ओर हमारे ही कुछ बड़े राजनीतिज्ञ पाकिस्तान को चुनौतियां एवं धमकियां देते हुए दिखाई दिए थे, जिसने इस उत्साहपूर्ण माहौल को किरकिरा अवश्य कर दिया था, परन्तु इसके बावजूद उमंग की यह धारा निरन्तर बनी हुई दिखाई देती है। 
जहां तक पाकिस्तान के रेल मंत्री शेख रशीद का संबंध है, वह एक बड़बोले व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं। चाहे वह इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इन्साफ के एक बड़े नेता हैं, परन्तु पाकिस्तान में भी उन्हें कभी गम्भीरता के साथ नहीं लिया गया। पिछले दिनों रशीद ने यह बयान दिया कि गलियारा खोलने का कार्य प्रधानमंत्री इमरान खान ने नहीं, अपितु सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा ने किया है तथा इससे भारत का इतना बड़ा नुक्सान होगा, जिसे भारत सदैव स्मरण रखेगा। दूसरी ओर सरकारी तौर पर पाकिस्तान सरकार की ओर से यह बयान दिया गया कि गलियारा खोलने का कार्य प्रधानमंत्री इमरान खान के उद्यम से ही सम्भव हो सका है। 
पाकिस्तान में सेना का विशेष महत्व बना रहा है। इसलिए ऐसा सेना की सहमति से ही सम्भव हो सकता है, परन्तु भारत के कई राजनीतिज्ञों की ओर से इसे साज़िश कहना एवं इसे खालिस्तान के साथ जोड़ने का यत्न करना जहां सिख भावनाओं के साथ किया जा रहा खिलवाड़ कहा जा सकता है, वहीं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की ओर से प्रदर्शित उदारता का भी यह सरासर निरादर करने के तुल्य है। यह गलियारा खुलने से पहले दोनों देशों की सरकारों की ओर से समूचे तौर पर सुरक्षा संबंधी विस्तृत एवं पुख्ता प्रबंध किए गए थे। आज भी श्रद्धालु दोनों सरकारों की देख-रेख में अपने इष्ट की यादगार के दर्शन करने के लिए जाते हैं तथा अत्यधिक सूक्ष्म एवं उत्तम भावनाओं के साथ सराबोर होकर वहां से लौटते हैं। दोनों देशों की ओर से उठाये गए इस ऐतिहासिक पग को संकीर्ण एवं घृणित सोच की खड़ी की जा रही सलाखों से रोकना उचित नहीं होगा। दोनों देशों की सरकारों को इस संबंध में सचेत रहने की आवश्यकता होगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द