बद्दुओं का मोती

गांव के बाहर नहर बहती थी। नहर के पुल के पास बद्दुओं की झुग्गियां थीं। झुग्गियों के आगे ईंटों से बने चूल्हों से धुआं रोज हवा में उड़ता था। बद्दूओं की औरतें चूल्हों में सूखा बालन झोंक रही होती थीं। उनके काले कलूटे बच्चे सड़क पर ही घूमते रहते थे। एकाध ही कपड़ा होता था उनके तन पर। पांच सात लड़के तो रोज ही नहर के पुल पर बैठे होते थे। उनके नंगे काले बदन पर मिट्टी, धूप में दूर से ही चमकती थी। मोती बद्दुओं के बच्चों में शायद सबसे छोटा था।  सुबह जब स्कूल के बच्चों की बग्घी, नहर के पुल के ऊपर से गुजरती, मोती दूर तक उस बग्घी को देखता रहता था। फिर वह हवा में हाथ लहरा देता। बच्चों को ‘बाए’ कहता। स्कूल जाते बच्चों के सुंदर वर्दियां, टाईयां, बूट डाले होते। उनके चेहरे फूल की तरह खिले होते। ‘मैंने भी बग्घी में स्कूल जाना है’ मोती ने अपने बापू से कहा। ‘तेरा दादा, तेरा बापू, कभी ऐसी बेकार जगह पर गए हैं?, जो तू नया जन्मा है स्कूल जाने वाला।’ बापू ने मोती को घूरा।‘मैंने भी उन बच्चों जैसी वर्दी डालनी है, बूट डालने हैं, टाई लगानी है’ मोती बोला। ‘तुझे वर्दी और बूटों की लगी है यहां पेट भरने का कोई हीला नहीं बनता।’ बापू गुस्से में बोला, ‘चल जा के अपने भाइयों के साथ नहर में से मछलियां पकड़ कर ला।’ बापू ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा। आज दिन निकलते ही नहर पर कारें, स्कूटर आकर रुकने लगे। लोग नहर पर वस्तुएं विसर्जित करने के लिए आते थे। कोई नारियल जल प्रवाह कर जाता, कोई सिक्के, मांह, गेहूं, पता नहीं क्या-क्या जल प्रवाह करने आते थे लोग। बद्दुओं के लड़के झट से पुल से नहर में छलांग लगा देते। डुबकी लगाकर सिक्के निकाल लाते। तैरते हुए नारियल पकड़ लेते। बाहर लाकर नारियल का जड़ों जैसा छिलका उतारते, तोड़ कर गिरी खा जाते थे। कोई उनसे पूछ लेता, ‘लोग तो दुखों से छुटकारा पाने के लिए नारियल जल प्रवाह करके जाते हैं, और तुम निकाल कर गिरी खा जाते हो। तुम्हें कोई वहम नहीं होता? इस तरह तुम पापी नहीं बनते? ‘पाप और पुण्य का हमारे लिए कोई अर्थ नहीं। भूख में ऐसे अर्थ गुम हो जाते हैं।’ एक बद्दू लड़का बोला। सवाल करने वाला आगे से और सवाल न करता। ‘देखो! लोग खाने वाली चीज़ें फेंक कर जाते हैं, हम भूखे उन चीज़ों को उठा कर खा जाते हैं, इसमें पाप किस बात का? दूसरा बद्दू लड़का बोला। मैंने देखा कुछ लड़के लम्बी छड़ी के साथ प्लास्टिक का थैला बांध कर नहर के पुल से लटका कर पानी की तरफ नज़र जमा कर बैठे थे। ‘आज तो कोई नारियल भी नहीं तैर रहा, पानी में क्या देखते हो?’ मैंने पूछ लिया।
‘मछलियां पकड़ने के लिए कुण्डी लगाई है।’ एक लड़का बोला। ‘तभी, मैंने सोचा तुम नहर के किनारे झुग्गियां क्यों बनाते हो?’ मैंने कहा।
‘बस नहर ही हमारे लिए खाना-पीना बहा कर लाती है।’ लड़का बोला। दूर झुग्गियों के आगे बद्दू औरतें, चूल्हे जला कर बैठी थीं। शायद वो मछलियों का इंतजार कर रही थीं। मैं आज कई दिनों बाद नहर के पुल के ऊपर से गुजरा था। रात काफी बारिश हुई और आंधी भी चली थी। झुग्गियों के ऊपर से कपड़ा जगह से फटने के कारण बांस की कमानीदार छड़ें दिखाई दे रही थीं। रात पेड़ों की शाखाएं भी टूटी थीं। बद्दुओं के लड़कों की लगाई कुण्डी में कोई मछली नहीं फंसी थी। छड़ी से बांधा हुआ थैला खाली पड़ा था। आज नहर भी भर-भर कर उछल रही थी। लड़कों को एक समय ऐसा लगा कि एक मोटी मछली थैले में आन पड़ी थी। लड़कों की आंखों में चमक आ गई थी। लेकिन पल में ही पानी का बहाव छड़ी से प्लास्टिक का थैला अलग करके बहा कर ले गया। बद्दू लड़के झट से नहर में छलांग लगा  गये। थैला ऊपर नीचे डुबकियां लगा रहा था। लड़के उसके पीछे-पीछे तैर रहे थे। पानी के तेज बहाव में उनकी बाहें थक गई। आज तो छोटा मोती भी उनके साथ था। लड़कों ने नहर के अगले पुल तक थैले का पीछा किया था। दूसरी तरफ जाकर मोती न जाने कहां खो गया। नहर का तेज़ पानी और थैले में फंसी मोटी मछली मोती को अपने साथ ले गई थी। लड़कों ने मोती को बहुत ढूंढा, मगर वे कामयाब न हुए। रात भर बद्दुओं के बच्चे और बड़े मोती को ढूंढते रहे। उधर बद्दू औरतों के चूल्हे बुझ गए थे। चूल्हों की आग भूख बनकर उनके पेट में उठक-बैठक कर रही थी।
अगली सुबह हुई। नहर के पुल पर काफी लोग जमा थे। स्कूल को जाने वाली बग्घी जब पुल के पास से गुजरी तो बग्घी वाला, बग्घी रोक कर लोगों से पूछने लगा,‘क्या हुआ यहां पर भीड़ क्यों है?’ ‘मोती को रात नहर बहा कर ले गई।’ भीड़ में से कोई बोला। ‘कोई मोती नाम का लड़का, रात नहर में बह गया।’ बग्घी वाले ने बग्घी में बैठे बच्चों को बताया, बच्चे आपस में बातें करने लगे। ‘वही लड़का मोती होगा, जो हमारी बग्घी को रोज, प्यार से देखता था।’ एक बच्चा बोला। ‘वही जो हाथ हिला कर हमें रोज बाए बाए करता था।’ दूसरा बच्चा बोला। ‘ये झुग्गी वाले बच्चों को स्कूल क्यों नहीं भेजते?’ तीसरे बच्चे ने सवाल किया। ‘अगर इनके बच्चे पढ़ जाएं तो इनको झुग्गियों से महलों में न ले जाएं।’ एक और बच्चे ने ख्याल प्रकट किया। ‘मोती वे हमारी आंखों के आगे आकर खड़ा हो गया है, हटता ही नहीं।’ सभी बच्चे बोले, सबकी आंखें छलक गईं। ‘जिनको पढ़ने की उम्र में पेट की खातिर मां-बाप मछलियां पकड़ने के लिए भेज देते हों उनको पढ़ाई-लिखाई का तो बस भगवान ही रखवाला होता है।’ फिर वो सभी चुप हो गए। दो मिनट किसी बच्चे ने एक-दूसरे से बात न की। जैसे सभी मोती की बिछड़ी रूह की खातिर मौन हो गए हों। बग्घी अब स्कूल के गेट के आगे आकर रुक गई थी। **