बड़ी ज़िम्मेदारी

कोरोना वायरस की महामारी ने जहां विश्व भर के छोटे-बड़े देशों को अत्याधिक चिन्ता में डाल दिया है, वहीं भारत में भी इसके बढ़ते कदमों ने आने वाले समय के लिए गम्भीर संकेत देना शुरू कर दिया है। पिछले कुछ दिनों में इस नामुराद बीमारी के मरीज़ों की गिनती 6 सौ से अधिक तक पहुंच गई है तथा अब तक देश भर में 10 मौतें भी हो चुकी हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से देश में तालाबंदी के संबंध में की गई घोषणा भी इसी गम्भीर स्थिति का परिणाम है। इसे छूत की बीमारी माना गया है। एक रोगी व्यक्ति की दूसरे मनुष्य के साथ किसी भी प्रकार की छुअन से यह रोग फैलता है तथा फिर निरन्तर फैलता ही जाता है। इस संबंध में विश्व भर से अब तक एकत्रित की गई जानकारी एवं तथ्यों के आथार पर यह खुलासा हुआ है कि यह वायरस जंगल की आग की तरह फैलता है। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि पहले एक लाख लोगों को प्रभावित होने में 67 दिन लगे जबकि इसके 2 लाख के आंकड़े तक पहुंचने में सिर्फ 11 दिन लगे। इसके बाद 3 लाख तक पहुंचने में सिर्फ 4 दिन लगे। इससे यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि यदि इस बीमारी को प्रभावशाली ढंग से रोका न गया, तो इसके फैलने में देर नहीं लगेगी तथा फिर इसके नियन्त्रण में आने का भी अनुमान नहीं लगाया जा सकेगा। उनकी यह बात भी तथ्यों पर आधारित है कि इस बीमारी को सामाजिक रूप से आपसी दूरी रख कर ही रोका जा सकता है। अनियंत्रित भीड़ में इसके बढ़ने की सम्भावना अधिक रहती है, क्योंकि यह अपने परिवार के सदस्यों एवं निकटवर्तियों के बाद किसी न किसी प्रकार से सम्पर्क में आये अन्य लोगों में भी फैल जाती है। प्रधानमंत्री की ओर से 21 दिनों के लिए पूरे भारत की तालाबंदी करने की घोषणा भी इसी दिशा की ओर संकेत करती है। इसीलिए देश में सड़क, रेल एवं विमान सेवाएं भी बंद कर दी गई हैं। इसीलिए कुछ दिन पहले मोदी ने एक दिवसीय जनता कर्फ्यू  की घोषणा भी की थी तथा बाद में उनकी ओर से 21 दिनों की तालाबंदी की घोषणा ने तो एक प्रकार से पूरे देश में हड़कम्प मचा दिया है। इसमें इलाज के लिए एकांतवास अत्याधिक कड़वी दवा है परन्तु इसके साथ ही उन्होंने यह भी चेतावनी दी है कि यदि 21 दिनों में सही ढंग से सामाजिक दूरी की प्रक्रिया पूर्ण न की गई तो देश 21 वर्ष तक पिछड़ जाएगा। नि:सन्देह देशवासियों को इस कड़वी दवाई को पीना ही पड़ेगा, परन्तु इसके साथ-साथ केन्द्र, प्रांतीय सरकारों एवं संबंधित प्रशासन को भी इस बात के प्रति अत्याधिक सचेत होना पड़ेगा कि ऐसे समय में आम लोगों को अत्याधिक कठिन दौर से न गुज़रना पड़े। उनकी प्राथमिक आवश्यकताओं का उचित प्रबन्ध होना आवश्यक है। इनमें पैदा होने वाली इस प्रकार की बाधा लोगों के लिए बड़ी कठिनाइयां उत्पन्न कर सकती है। देश में उन लोगों की बड़ी संख्या है जो किसी न किसी प्रकार से मेहनत-मजदूरी करके अपना एवं अपने परिवार का पेट पालते हैं। अब जबकि समूची गतिविधियां एवं कारोबार ही एक प्रकार से ठप्प हो चुका है तो करोड़ों लोगों की आधारभूत आवश्यकताओं को कैसे पूरा किया जाना है, सरकार के लिए यह एक बहुत अहम ज़रूरी और भारी चुनौती है। इस संबंध में कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर निर्माण के क्षेत्र में लगे मजदूरों को आर्थिक मदद देने की अपील की है, ताकि वे संयम के साथ कोरोना जैसी महामारी का मुकाबला करने के समर्थ हो सकें। इस असंगठित क्षेत्र में 4 करोड़ से अधिक मजदूरों के हितों को ध्यान में रखते हुए एक निश्चित राशि के साथ इनकी मदद की जानी चाहिए। उन्होंने यह भी लिखा है कि सरकार की ओर से की गई नोटबंदी एवं फिर जी.एस.टी. को लागू किए जाने से पहले ही लोग आर्थिक शिकंजे में फंसे हुए हैं। इस महामारी को देखते हुए एवं इसे रोकने के यत्नों के अन्तर्गत प्रधानमंत्री की ओर से उठाया गया लम्बी तालाबंदी का पग सरकार के समक्ष भारी चुनौतियां एवं अधिक ज़िम्मेदारियां भी खड़ी करता है, जिन्हें उनको ही पूरा करना  है। ऐसी स्थिति ही लोगों के लिए भारी राहत बनने के समर्थ हो सकेगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द