मानवीय सोच का प्रतिमान बनें पुरुष

पुरुष वर्चस्व वाली दुनिया में महिलाआें को दूसरे दर्जे की नागरिक समझ कर व्यवहार करना आम प्रचलन में है। घर में, कार्य स्थल में, बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन पर। कहीं भी उनके लिये अपमानजनक शब्दों का प्रयोग होता ही है। दफ्तरों में ठहरे अर्थों वाली भाषा के इस्तेमाल से पब्लिक प्लेस में बुरी तरह घूर कर देखते रहने की अश्लील हरकत तक स्त्री समाज को असुविधा देता है और परेशान करता है।
हाल ही में देश के उच्चतम न्यायालय ने कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न के मौलिक अधिकारों का हनन माना है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ऑफिस में यौन उत्पीड़न महिलाआें के समानता, गरिमा के साथ जीने और किसी भी  पेशे के अपनाने को उनके मौलिक अधिकारों का हनन है। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया था। महिला ने अपने वरिष्ठ अधिकारी पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाये थे। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अजय रस्तोगी ने कि उनके सामने रखा गया मामला दिखाता है कि बैंक की इंदौर शाखा में अपनी तैनाती के दौरान अफसरों को कई बार पत्र लिखकर शराब के ठेकेदारों के खातों के प्रबंधन में गड़बड़ी की जानकारी की थी। शाखा में अनियमितता की उनकी रिपोर्ट पर बदला लिया गया है। पुरुष जिस घटिया नज़र से स्त्री को घूरता रहता है या आने-बहाने से छून की ख्वाहिश से कोई हरकत करता है उसका क्या भोक्ता महिला को पता नहीं चलता? वह अपनी हरकत अपनी मंशा को छुपा कर रखना चाहे तब भी जाहिर हो जाती है। जिस स्त्री को इस तरह परेशान किये जाने का इरादा हो, वह तो मनोभावों को ठीक से समझ रही होती है। इसका आभास उसे पहले ही हो जाता है। उसकी संवेदनशीलता पल-पल जगी रहती है। 
उत्पीड़न करने वाला कसूरवार ठहराये जाने पर बदल सकता है। इसका बाम्बे हाईकोर्ट में प्र्रस्तुत एक केस के साक्ष्य से भी मिलता है जोकि कुछ दिन पूर्व ही सामने आया है।
 दिल्ली से मुम्बई के लिये उड़ी एयर विस्तारा की फ्लाईट में बाम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि एक महिला को पता भले ही कम हो लेकिन उसे समझ सब आता है। यह एक प्राकृतिक उपहार है...छूना....देखना। पुरुष को यह समझ नहीं आता लेकिन महिला उसके पीछे की मंशा समझ जाती है। 
अफगानिस्तान की जेलाें में कैद कम से कम आधी महिलाएं ड्रग का इस्तेमाल करने, घर से भागने, प्रेम संबंधों जैसे तथाकथित नैतिक अपराधों में सज़ा काट रही हैं। पश्चिमी देशों की सरकारों के दबाव के बावजूद देश में इस सबसे संबंधित कानूनाें में बदलाव नहीं लाया गया। गम्भीर अपराध माना जाता था।
 माना जाता है उत्तर पश्चिम में स्थित हेरात शहर की जेल में 119 कैदी हैं। उनके 32 बच्चे साथ ही रह रहे हैं। 20 महिलाआें के पति की हत्या का दोषी पाया गया है। जिन्हें 10 साल की सज़ा दी गई है। बेमेल विवाह की समस्या पर प्रेम चंद ने ‘निर्मला’ उपन्यास में लिखा है। कम आयु में वहां भी उनका विवाह जबरन उनसे बहुत अधिक आयु के पुरुष से कर दिया गया। वे पुरुष अपराधी उग्रवादी और ड्रग की लत के शिकार थे जो लड़कियाें पर जम कर अत्याचार करते थे। इनकी मदद के लिये कोई आगे नहीं आता था। तलाक वे ले नहीं सकती थीं। अपने पर अत्याचारों से बचने के लिये अपने पति की हत्या कर दी।