रिश्तों की सृजक महिला

हर रिश्ते को सम्भालने की कला तो सिर्फ एक महिला ही जान सकती है, क्योंकि उसके बिना तो कोई भी रिश्ता जन्म ही नहीं ले सकता। सृष्टि की सृजनहार होने के कारण वह हर रिश्ते की आत्मा में बसती है एवं उसके बिना तो कोई रिश्ता सांस भी नहीं ले सकता। लेकिन आज की आधुनिकता एवं सोशल साइट्स के युग में रिश्ते मर रहे हैं। इनको ज़िन्दा रखने के लिए वह एक ढाल की तरह कार्य करती है और एक महान कलाकार होने के नाते वह रिश्तों के महत्त्व को अच्छी प्रकार जानती है कि फेसबुक और व्हाटएप पर बने हुए रिश्ते मुश्किल समय में काम नहीं आते। रिश्ते वे होते हैं जिनकी उपस्थिति में खुशियां कई गुणा बढ़ जाती हैं और दुख बांटे जाते हैं। इसीलिए हर रिश्ते को प्यार देना वह अपनी ज़िम्मेदारी समझती है। प्रत्येक महिला अपने पूरे जीवन में भिन्न-भिन्न रिश्तों को बाखूबी से सम्भाल कर परिवार और समाज की भलाई के लिए कार्य करती है। सबसे सच्चा और ऊंचा रिश्ता मां का होता है। इसीलिए उसकी तुलना भगवान के साथ की जाती है। बच्चे को जन्म देकर वह उसके साथ भगवान जैसा रिश्ता जोड़ लेती है एवं अंत तक अपनी ज़िम्मेदारियां निभाती रहती है, लेकिन बदले में उससे कोई आशा नहीं रखती। सिर्फ उसे खुश और बढ़ता-फुलता देखना चाहती है।
बेटी बन कर माता-पिता के घर की शोभा को बढ़ाती है एवं पिता की राजकुमारी कहलाती है। बड़ी होकर माता-पिता का सहारा बनती है। दुख-सुख में बिना किसी स्वार्थ के उनके साथ खड़ी होती है। मां और बेटी की तो सांझ ही अलग होती है। बहन के रूप में भी महिला अहम भूमिका निभाती है। राखी का त्यौहार उसके बिना अधूरा है। भाई की कलाई पर राखी सजा कर उसकी तंदरुस्ती और लम्बी आयु की कामना करती है। बहनें भी एक-दूसरे के साथ सहेलियों की तरह अपनी बातों को सांझा करती हैं एवं आवश्यकता पड़ने पर एक-दूसरे का साथ देती हैं। 
शादी के बाद महिला ससुराल परिवार का एक अहम हिस्सा बन कर अपने पति के घर को सजाती और संवारती है एवं उसके वंश को आगे बढ़ाती है। बहू बन कर सास-ससुर की सेवा करती है। भाभी बन कर नदद के चाव को पूरा करती है तथा कभी स्वयं ननद बन कर अपने भतीजे और भतीजियों जोकि उसके बाबुल के आंगन की रौनक होते हैं उन्हें देख-देख कर खुश होती है। दादी-नानी बन कर भी वह अपने स्वयं को भाग्यशाली समझती है। उन्हें अपने रीति-रिवाज़ों के साथ जोड़ती है और अपने अनुभव सांझे करती है। महिला को तो त्यौहारों की रानी भी कहा जाता है। क्योंकि बहुत-से त्यौहार उसके साथ जुड़े होते हैं और उसकी उपस्थिति में सम्पूर्ण होते हैं। कहने का भाव है कि प्रत्येक महिला जन्म से लेकर अंत तक रिश्तों को निभाने का प्रयास करती है। परिवार को ममता की मूर्त में बांध कर रखती है। इससे ही घर-परिवार, समाज और देश का निर्माण होता है। हर रिश्ते में महिला का योगदान अमूल्य और अमिट है इसलिए उसे रिश्तों की खान भी कहा जाता है।