बदलते रिश्तों में तलाश एक ज़िंदगी की ?

(क्रम मिलाने के लिए पिछवा रविवारीय अंक देखें)


यह बात भी मेनका के दिल की गहराईयों तक जाती। कई बार तो मेनका, विनोद को बोल भी देती, पैसा कमाने से कुछ नहीं होता, शेखर की तरह पॉवरफुल बन के दिखाओ। 
बस यही थी चाहत दोनों बहनों की? और दोनों ने ही आज आपस में यह फैसला भी कर लिया, कि, बदल लें एक-दूसरे की जिंदगी। चूंकि, मेनका और संगीता, दोनों के ही पिता इस दुनिया में नहीं है, वहीं दोनों, अपने-अपने घरों की बड़ी बहनें हैं तो घर और मायकेवालों के विरोध का असर भी कम ही रहा। जबकि, विनोद तो नहीं बल्कि, शेखर नें दोनों बहनों को समझाने का खूब प्रयास किया, लेकिन, वही हुआ जो दोनों बहनों नें चाहा। 
मेनका का विनोद से और शेखर का संगीता से कानूनी सहमति से तलाक हुआ। फिर कोर्ट में ही कुछ दिनों बाद शेखर का मेनका से और विनोद का संगीता से विवाह हो गया। 
मेनका संगीता के भावनाओं को समझती थी, वहीं बड़ी बहन भी थी, इसलिए अपने सारे गहने-जेवर विनोद के घर में ही छोड़कर शेखर के साथ आ गई। शायद बड़े परिवार की जिम्मेदारियां भी। 
समय बीता, मेनका की नर्स की नौकरी, उनके पढ़ाई के आधार पर उनकी प्रमोशन हो गई, जो उन्हें ऐसा लगा कि, शेखर के पास आने का उनको उपहार मिला। वहीं शेखर की पत्नी बनने से इनके कार्य क्षेत्र में इनका सम्मान भी बढ़ा। इनके बड़े अधिकारी भी अब और अधिक सम्मान देते पेश आने लगे। 
दूसरी ओर विनोद के घर-परिवार में संगीता को बहु के रूप में खूब सम्मान मिला जो शायद, कभी मेनका को भी नहीं मिला था। क्योंकि, संगीता के मायका और विनोद के परिवार के बीच, दोनों का गांव नज़दीक होने की वजह से पहले से ही काफी करीबी संबंध था। 
लेकिन, कुछ दिन बीते, नये घर में बढ़ती जिम्मेदारियों के साथ में संगीता की सारी इच्छाएं पूरी तो हुई। पर, बड़े घर की जिम्मेदारी अधिक होने लगी, मायके से, मां और भाईयों से उनकी दूरियां बढ़ती जा रही थी। जो शायद संगीता को गंवारा नहीं था। वहीं बार-बार संगीता का मायके जाना या उनके भाईयों का बार-बार घर आना विनोद को और उनके परिवार वालों को गंवारा नहीं था। यही था संगीता और विनोद के बीच बढ़ते पारिवारिक तनाव का नया कारण।
आज एक सुंदर स्त्री और एक सफल व्यवसायी के बीच उत्पन्न हुई आपसी प्रेम और आकर्षण के बीच, दरार उत्पन्न हो गया था। सारी चीजें आज दोनों को बेमानी लगने लगी थीं। पर अब क्या हो सकता है। इधर मेनका बहुत खुश थी कि, उनको एक प्यार करने वाला, प्रसिद्धि और सम्मान दिलाने वाला पति मिल गया। 
इन सबके बीच दोनों परिवारों ने क्या मेनका के दो बच्चे और संगीता के तीन बच्चों पर ध्यान दिया? जो अपने-अपने पुराने घर में ही हैं। जो कभी एक-दूसरे के सामने आते भी हैं तो, भाई-बहन पहले  से ही थे ,लेकिन, आज कितने सगे, कितने दूर और कितने करीब! यह समझ नहीं पाते थे?
और इन सबके बीच कहानी का अंत, पुन: संगीता और विनोद के तलाक के साथ होना था, और यही हुआ। संगीता को अपने भाईयों और मां से दूर रहना या इनके खिलाफ में ससुराल के लोगाें से या विनोद की बातें पसंद नहीं आई। और विनोद ने भी यही समझा कि, सुंदरता के प्रति मेरा आकर्षण क्षणिक था, जिससे मुक्त होकर ही शेष जिंदगी अच्छे से चलाया जा सकता है। 
इस बीच, विनोद ने संगीता के लिए कुछ धन या जमीन-जायदाद देने की बात भी कही, लेकिन, संगीता ने विनोद से कुछ भी लेने से इंकार कर दिया। अब वह सिर्फ अपने भाईयों और मां के बीच ही रहना पसंद किया। चाहे जिंदगी जैसे भी बीते।
अचानक सीढ़ी से नीचे उतरते संगीता के पैर फिसल गई। एक हाथ पीछे से सहारा दिया! शायद जाना-पहचाना एहसास? संगीता संभलकर पीछे पलटी तो देखा शेखर सहारा दे, खड़ा था। काश छ: महीने पहले फिसलते जिंदगी को रोकने यह हाथ इसी तरह आगे बढ़ता तो शायद यह हलाल नहीं होते? जो आज कोर्ट परिसर  में दूसरी बार संगीता के तलाक के रूप में हुआ था।
संगीता की आंखों से आंसू छलकते-छलकते रुक गई। शेखर खामोश खड़ा रहा, पीछे खड़ी मेनका, बहन को दु:खी देख क्या करे? अचानक, संगीता, मेनका की ओर बढ़ी और लिपट गई, और जोर से रो पड़ी।
आज दोनों बहनों के आंखों में आंसू! आखिर क्या थी ‘तलाश’? क्या जिस तरह से आज शेखर ने संगीता को संभाला! छह महीने पहले क्यों नहीं संभाल पाया? समझा पाया!