कल से आज तक तिरंगे का स़फर    

भारत में लोग जब अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों से तंग आ गए तो यत्र तत्र होने वाली विरोध सभाओं में आंदोलनकारियों को हमेशा इस बात की कमी खलती कि उनका अपना कोई राष्ट्रीय ध्वज नहीं है। उन्हीं दिनों 18 अगस्त 1902 को जर्मनी के बर्लिन शहर में एक सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में आंदोलनकारियों ने अपने-अपने विचार प्रकट किए। जब क्र ांतिकारी मैडम कामा की बारी आई तो विचार प्रकट करते हुए उन्होंने एक ध्वज निकाला व उसे फहरा कर उपस्थित जनों से कहा—यह हमारे देश भारत की आजादी का ध्वज है, इसे सम्मान दो। सभा में  उपस्थित सभी लोगों ने ध्वज को सलामी दी।भारतीयों की सभा में जब मैडम कामा अंग्रेजों के झण्डे यूनियन जैक को लहराते हुए देखती थी तो उनके दिल में ंठेस पहुंचती थी व दुख होता था। इसीलिए मैडम कामा ने यह ध्वज तैयार किया था।मैडम कामा द्वारा बनाए गए इस ध्वज में लाल, पीली तथा हरी तीन तिरछी धारियां थीं। सबसे ऊपर की लाल धारी में कमल का फूल तथा सात सितारे बने हुए थे। बीच की पीली धारी में गहरे नीले रंग से वन्दे मातरम लिखा हुआ था और नीचे की हरी धारी में सूरज, चांद व एक सितारा बना हुआ था। 1907 से लेकर सन् 1916 तक मैडम कामा द्वारा बनाए गए ध्वज को ही राष्ट्रीय ध्वज माना गया। इस अवधि में आयोजित की गई सभी सभाओं व बैठकों में इसी ध्वज को फहराया गया। सन् 1917 के होमरूल आंदोलन में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक व एनी बेसेंट ने एक नए ध्वज को पेश किया। इस नए ध्वज में पांच लाल व चार हरी तिरछी धारियां थीं। मध्य में लाल तारे बने हुए थे। बाएं कोने में इंग्लैंड का ध्वज यूनियन जैक व दाएं कोने में एक चांद व एक तारा बने हुए थे। इस नए ध्वज का बहुत सारे भारतीयों व नेताओं ने विरोध किया, क्योंकि इस के एक कोने में यूनियन जैक का भी चित्र था। विरोध तो होना ही था। फलस्वरूप जब विजयवाड़ा में कांग्रेस का अधिवेशन आयोजित किया गया तो महात्मा गांधी के कहने पर ध्वज को परिवर्तित कर दिया गया। नए ध्वज में लाल व हरे रंग की दो धारियां थीं। बाद में इस ध्वज में चरखे का चित्र भी शामिल कर लिया गया। इस ध्वज में लाल व हरे रंग को क्र मश: हिन्दुओं व मुसलमानों का प्रतीक माना गया। इस ध्वज को बने कुछ ही समय हुआ था कि इसमें एक और परिवर्तन कर दिया गया। नए परिवर्तन के अनुसार लाल व हरे रंग की धारी के बीच में सफेद रंग की धारी को भी जोड़ दिया गया। अब लाल, हरे व सफेद रंग को क्र मश: हिन्दुओं, मुसलमानों व अन्य जातियों का प्रतीक माना गया। कुछेक नेताओं का मत था कि ध्वज के रंगों को धर्म से न जोड़ा जाए। उन्होंने इस पर आपत्ति भी प्रकट की।ध्वज को सर्वमान्य बनाने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने सन् 1931 में सात सदस्यीय कमेटी का गठन किया। इस कमेटी ने सिफारिश की कि राष्ट्रीय ध्वज मात्र एक ही रंग का होना चाहिए। कमेटी ने भी एक ध्वज तैयार किया जो कि मात्र केसरिया रंग का था व इसके बाएं कोने में चरखे का चित्र था। कांग्रेस महासमिति ने काफी सोच विचार करके सात सदस्यीय कमेटी की सिफारिश व उसके द्वारा बनाए गए ध्वज को अमान्य कर दिया तथा इससे पूर्व बने तिरंगे ध्वज को ही जारी रखने को कहा। वैसे, ध्वज के रंगों के अर्थों को बदल दिया गया। रंगों के अर्थों को बदल दिए जाने के पश्चात केसरिया रंग को त्याग व बलिदान का, सफेद रंग को शान्ति व सत्य का और हरे रंग को विश्वास व वीरता का प्रतीक माना गया। मध्य की सफेद धारी में चरखा ज्यों का त्यों बना रहा। 22 जुलाई 1947 को इस ध्वज में एक और परिवर्तन कर इसे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार कर लिया गया। नए परिवर्तन के अनुसार सफेद धारी में चरखे की जगह अशोक का धर्मचक्र  होगा व ध्वज का कपड़ा खादी का होगा। अशोक का धर्मचक्र  सारनाथ की अशोक लाट से लिया गया था। फिलहाल हमारे राष्ट्रीय ध्वज में केसरिया, सफेद तथा हरे रंग की समान लंबाई व समान चौड़ाई की तीन आड़ी धारियां हैं। ध्वज की लम्बाई तथा चौड़ाई में 3 व 2 का अनुपात है। चक्र  का रंग नीला व गोलाई सफेद धारी की चौड़ाई के बराबर है। (युवराज)