बढ़ती गई है निरन्तर बेरोज़गारी की समस्या

जैसे-जैसे कोरोना का संकट नये सिरे से भयावह होता जा रहा है, बेरोज़गारी भी उसी रफ्तार से बढ़ती जा रही है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडिया इकोनॉमी (सीएमआईई) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक दिसम्बर 2021 में बेरोज़गारी पिछले एक साल के अधिकतम स्तर पर पहुंच गई है। नवम्बर 2021 में जहां यह 7 फीसदी थी, वहीं दिसम्बर 2021 में बढ़कर 7.9 फीसदी हो गई। शहरों में जहां कोविड-19 की रफ्तार गांवों के मुकाबले कई गुना ज्यादा है, उसका असर बेरोज़गारी में भी देखने को मिल रहा है। शहरों में जहां दिसम्बर 2021 में बेरोज़गारी बढ़कर 9.3 फीसदी हो गई, वहीं गांवों में अभी यह 7.28 यानी करीब साढ़े सात फीसदी के आसपास टिकी हुई है। जानकारों का मानना है कि अगर कोरोना की तीसरी लहर, दूसरी लहर जैसी भयानक हुई तो एक बार फिर बेरोज़गारी सारे रिकॉर्ड तोड़कर नये शिखर छुयेगी।गौरतलब है कि साल 2021 की दूसरी तिमाही में देश में बेरोज़गारी की दर बढ़कर 11.84 फीसदी तक पहुंच गई थी। सवाल है आखिर इस बेरोज़गारी के सिरदर्द से छुटकारा कैसे पाया जाए? साल 2016-17 में विभिन्न रिपोर्टों और विशेषज्ञों का निष्कर्ष था कि कौशल विकास के जरिये भारत बेरोज़गारी पर आसानी से काबू पा सकता है। ऐसा नहीं है कि यह निष्कर्ष पूरी तरह से गलत था। कौशल विकास से बेरोज़गारी की दर घटी भी है,लेकिन वैसी सफलता नहीं मिली, जैसी उम्मीद थी। आखिर इसकी वजह क्या रही? इसकी दो बड़ी वजहें तो साफ दिखती हैं। पहली है कोविड-19 की भयावह शिकंजेबंदी। शायद ही किसी अनुमान में यह कल्पना की गई हो कि कोरोना इस कदर समस्या बन जायेगा कि देश की ही नहीं दुनिया की समूची अर्थव्यवस्था चरमरा जायेगी। लेकिन जो कल्पना नहीं की गई थी, वही हुआ है। साल 2019 में जब मौजूदा मोदी सरकार दोबारा सत्ता में आयी तो इसने खास तौर पर कौशल विकास पर पहल की, लेकिन यह पहल अपने कोई नतीजे देती, इसके पहले ही देश की अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 का शिंकजा कस गया। चूंकि कोविड-19 के चलते हुए सम्पूर्ण लॉकडाउन में उत्पादन गतिविधियां पूरी तरह से ठप पड़ गईं इसलिए बेरोज़गारी की समस्या एक झटके में बहुत भयावह हो गई। औपचारिक रूप से करीब 3 करोड़ लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा लेकिन अनौपचारिक तथ्यों की मानें तो करीब 6 करोड़ से ज्यादा लोग कोरोना लॉकडाउन के कारण पूरी तरह से बेरोज़गार हो गये और करीब 2 से अढ़ाई करोड़ लोग आंशिक रूप से बेरोज़गार हो गये। इसलिए जब पिछले साल कोरोना की विदाई का माहौल बनने लगा था, तो उम्मीद थी कि अब अर्थव्यवस्था तेज़ी से उड़ान भरेगी और पिछली समस्याओं को भी किसी हद तक सुलझा लेगी। मगर ऐसा हो पाता, इससे पहले ही कोरोना की तीसरी लहर ने हमला बोल दिया है। जिस कारण एक बार फिर से बड़े पैमाने पर लॉकडाउन जैसी स्थितियां बन गई हैं। अगर तात्कालिक अनुमानों के आधार पर देखें तो पिछले तीन हफ्तों में करीब 1 करोड़ लोग बेरोज़गार हो चुके हैं और आंशिकबंदी या साप्ताहिक कर्फ्यू जैसी स्थितियों के चलते करीब हर सप्ताह 20 से 25 करोड़ श्रमदिवस ज़ाया हो रहे हैं। इसका साफ  मतलब है कि अर्थव्यवस्था पर फिर से भारी दबाव बढ़ रहा है। कोरोना के चलते एक बार फिर से अर्थव्यवस्था में सबसे ज्यादा मार उत्पादन सेक्टर को पड़ी है, जो वास्तव में सबसे ज्यादा रोज़गार देता है। इसलिए बेरोज़गारी का हाहाकारी आंकड़ा बेहद डरावना है। चूंकि सेवा क्षेत्र के काम आम तौर पर इंटरनेट के जरिये घरों से भी हो रहे हैं, इसलिए कोरोना का जितना संकट उत्पादन क्षेत्र को भुगतना पड़ रहा है, उतना न तो सेवा क्षेत्र को भुगतना पड़ा है और न ही कृषि क्षेत्र को। सेवा क्षेत्र में जहां घर से और एकांत में बैठकर काम करने की सहूलियत है,वहीं कृषि क्षेत्र में काम करते हुए लगातार सोशल डिस्टेंसिंग बरकरार रखने की गुंजाइश होती है। इस वजह से इन दोनों क्षेत्रों में कोरोना का उतना भयावह असर नहीं पड़ा, जितना असर उत्पादन सेक्टर में हुआ है। लेकिन अगर कोरोना या लॉकडाउन जैसी समस्या न होती तो भी बेरोज़गारी की सबसे बड़ी मार इसी क्षेत्र के लोगों को भुगतनी पड़ती। इसकी वजह यह है कि एक तरफ  जहां इस क्षेत्र में रोज़गारों की कमी है, वहीं दूसरी बड़ी समस्या यह भी है कि सभी उत्पादन यूनिटों को आज भी कुशल कामगार नहीं मिल रहे। शायद इस समस्या के पीछे हमारी नीतिगत असफलता भी है। दरअसल आज़ादी के बाद लम्बे समय तक भारत कृषि क्षेत्र के विकास पर ही ध्यान देता रहा है, क्योंकि खाद्यान्न ज़रूरतें लम्बे समय तक हमारी बड़ी समस्या रही है, लेकिन 90 के दशक तक आते आते हमने अपनी इस समस्या पर किसी हद तक काबू पा लिया और पिछली सदी के आखिरी दशक में जब हम खाद्यान्न के सरप्लस उत्पादन में आ गये, तब हमने अपनी अर्थव्यवस्था के दूसरे क्षेत्रों को मजबूत करने की तरफ  ध्यान दिया।लेकिन पिछली सदी के आखिरी दशक में जब नई आर्थिक नीतियों के चलते अर्थव्यवस्था को उदारवादी जामा पहनाया गया तो उत्पादन की बजाय सेवा क्षेत्र ने बहुत तेजी से विकास किया और कई गुना ज्यादा मुनाफा हासिल किया। इसे दोनों तरफ  से फायदा मिला। पूंजी उगाहने में भी निवेशकों ने इस पर ज्यादा भरोसा किया और काम के मामले में भी इसने अपने को बड़ी तेजी से ग्लोबलाइज किया। इसका नतीजा यह निकला कि जो पूंजी उत्पादन क्षेत्र में निवेश होनी थी, उसका बड़ा हिस्सा सेवा क्षेत्र में लग गया। इससे यह हुआ कि सेवा क्षेत्र की कम्पनियों का टर्नओवर तो बढ़ा, कम्पनियां मुनाफे से भी मालामाल हुईं, लेकिन बहुत ज्यादा लोगों को रोज़गार नहीं मिला क्योंकि सेवा क्षेत्र में लोगों से ज्यादा तकनीक अपनी भूमिका अदा करती है, जिससे मुनाफा बाकी क्षेत्रों के मुकाबले यहां तेजी से बढ़ता है। यह एक बड़ी समस्या है, जिससे पार पाना होगा और यह सिर्फ  सरकार नहीं कर सकती बल्कि हमें खुद भी अपनी ज़िम्मेदारी के प्रति गंभीर होना होगा। जिस कुशलता के हम अपने में होने का दावा करते हैं, उसमें हमें वाकई कुशल होना होगा।      

    
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर