मिनी इंडिया है म्यांमार सीमा पर बसा  मोरह टाउन

भारत-म्यांमार सीमा पर मोरह टाउन दक्षिणपूर्व एशिया का द्वार है। मणिपुर का यह टाउन इतना सुदूर है कि इसमें मणिपुरी लोगों के अतिरिक्त किसी अन्य के रहने की कल्पना करना भी कठिन है। लेकिन जब 5 जुलाई को इसके दो बाशिंदों की म्यांमार में बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी गई थी तो मोरह की सड़कों पर मिनी-इंडिया विलाप करता हुआ प्रतीत हुआ। पीड़ित तमिल पुरुष थे और विलाप करने वालों में शामिल थे मणिपुरी, सिख, मारवाड़ी, बंगाली, बिहारी आदि। मोरह टाउन का यह प्रोफाइल पहली बार आने वाले यात्री को आश्चर्य में डाल देता है, लेकिन मोरह में यह स्थिति दशकों से रही है।
मोरह टाउन में नौ वार्डस हैं, जिनमें से हर एक में एक विशिष्ट वर्ग के लोग रहते हैं। हालांकि ईसाइयों की संख्या इतनी अधिक है कि शेष धर्मों के लोगों की कुल तादाद की तुलना से भी वह ज्यादा हैं, फिर भी आपको मोरह में हिन्दू मंदिर, बौद्ध विहार, मुस्लिम मस्जिद, सिख गुरुद्वारा और मेइतेइ लोगों के सिल्वन (वन) देवी-देवताओं के पूजास्थल जगह जगह पर देखने को मिल जायेंगे। मोरह टाउन के प्रवेश द्वार  पर मेइतेइ वन देवी कोंथोक नगंबी का ‘मंडप’ है, और इसके अतिरिक्त अनेक गिरजाघर और एक मस्जिद है। इसके पास में जो गली है उसमें एक नेपाली मंदिर और एक बौद्ध मठ है। पुलिस स्टेशन तक जाने वाली मुख्य सड़क पर गुरुद्वारा है, जिसपर दूर से ही सबकी नज़र पड़ जाती है। टाउन के दक्षिणपूर्वी टिप पर पूजा का सबसे बड़ा स्थान हैं- तमिल मंदिर, जिसका दक्षिण द्वार आपको म्यांमार की कबाव घाटी में ले जाता है।
मोरह में लगभग 20,000 लोग कुकी-चिन-मिज़ो गुट के हैं, 4,500 मणिपुरी मुस्लिम हैं, 4,000 मेइतेइ हैं, 3,000 तमिल हैं, 2,000 बिहारी हैं, 500 नेपाली, 150 मारवाड़ी, 50-100 बंगाली और कुछ सिख व असमी हैं। प्रतिशत के हिसाब से देखें तो 56.7 प्रतिशत ईसाई, 26.1 प्रतिशत हिन्दू, 14 प्रतिशत मुस्लिम, 0.7 प्रतिशत बौद्ध, 0.4 प्रतिशत सिख, 0.1 प्रतिशत जैन, 1.9 प्रतिशत अन्य और 0.2 प्रतिशत नास्तिक हैं। हिंदी का थोड़ा सा ज्ञान भी घूमने के लिए पर्याप्त होगा, लेकिन 21 रूपये को आपको ट्वेंटी वन रूपये कहना पड़ेगा क्योंकि सारे नंबर अंग्रेजी में बोलने होंगे। मोरह टाउन में गैर-देशज लोगों का आना 1970 के दशक में आरंभ हुआ, जब वह यहां म्यांमार के साथ आवश्यक चीज़ों व इलेक्ट्रॉनिक गुड्स में व्यापार करने के लिए आये। शुरुआत से ही मोरह ने बाहरी व्यक्तियों को स्वीकार किया, हालांकि देशज लोगों ने मेनलैंड के बढ़ते प्रभाव के तहत अपनी विशिष्ट संस्कृति को सुरक्षित रखने का भरपूर ख्याल रखा है।
मेइतेइ काउंसिल के महासचिव लिशंगथेम ब्रोजेन का कहना है कि मेइतेइ व तमिलों के बीच गहरा संबंध स्थापित हो गया है। तमिल समुदाय के नेता मेइतेइ के सांस्कृतिक या परम्परागत उत्सवों जैसे कोंथोक नगंबी के लाई हराओबा पर चढ़ावा लेकर आते हैं और तमिल उत्सवों पर मेइतेइ ऐसा करते हैं। लेकिन सबसे बड़ी बात इस मिनी-इंडिया में यह है कि जाति या धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। 47 वर्षीय बाबू पिल्लई छोटे कारोबारी हैं। उनका जन्म मोरह टाउन में ही हुआ था और यहीं उनकी परवरिश भी हुई। उनके भांजे ने एक सिख लड़की से विवाह किया है। पिल्लई ने बताया, ‘मेरे पेरेंट्स यहां 1940 के दशक में आये थे। मुझे याद है कि सभी समुदाय आपस में मिलजुलकर शांतिपूर्वक रहते थे। वह हारमनी और अंतर-समुदाय समन्वय बहुत अच्छा था।’ मैंने मालूम किया कि उन्होंने अपने बयान में ‘था’ शब्द का प्रयोग क्यों किया है?
इस पर पिल्लई का कहना है कि अब स्थिति बदल रही है। उनके अनुसार, ‘कभीकभार हम असुरक्षित महसूस करते हैं और शक होता है कि 90 के दशक के हिंसक दौर का क्रूर चेहरा धीरे-धीरे फिर उभर रहा है म्यांमार में अशांति की वजह से। सीमा के उस पार से जो नये चेहरे आ रहे हैं उनपर शक होता है।’ पिल्लई म्यांमार में 8 अगस्त 1988 के ’8888 विद्रोह’ की बात कर रहे हैं, जिसको जब जबरन दबाया गया तो म्यांमार के शरणार्थी पड़ोस के अनेक भारतीय राज्यों में आ गये थे, जिससे डेमोग्राफिक संतुलन बिगड़ गया था और सुरक्षा चिंताएं बढ़ गई थीं। अब मोरह में म्यांमार उपस्थिति भी है, जिसे आसानी से देखा जा सकता है। म्यांमार के व्यापारियों की मौजूदगी मोरह के बाज़ार में भी है। तोलने का सारा काम किलोग्राम की बजाय यहां म्यांमार के अनौपचारिक ‘चोय’ यूनिट में किया जाता है। एक चोय 1.6 किलोग्राम का होता है।
लेकिन भारतीय अधिकारियों के लिए म्यांमार घुसपैठ को रोक पाना आसान नहीं है। कारण एकदम साधारण है-मोरह में कोई फसल नहीं होती और न ही पशुपालन होता है। रसोई की सभी ज़रूरी चीज़ें प्याज़ से गोश्त तक सीमा पार से ही आते हैं। मैं जब लंच के लिए एक स्थानीय होटल पर पहुंचा तो वहां के कुक इबोमचा खान, जोकि मणिपुरी मुस्लिम हैं, ने बताया, ‘सब्जी, गोश्त व मसाले सभी म्यांमार के नागरिक सप्लाई करते हैं। लेकिन अब हम भारतीय मसाले इस्तेमाल करते हैं, जो महंगे अवश्य हैं लेकिन बेहतर होते हैं।’
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर