कनाडा की धरती से पंजाबियों का रिश्ता
भारत और कनाडा के मध्य आजकल चल रहे खटास भरे संबंधों ने भारत से जाकर कनाडा में रह रहे और कनाडा जाने के लिए तैयार खड़े बच्चों और उनके अभिभावकों को चिंता में डाल दिया है। भारत और कनाडा द्वारा एक दूसरे पर लगातार लगाए जा रहे आरोपों के कारण आगामी दिनों में तनाव और बढ़ने की उम्मीद है। उक्त घटनाक्रम से जरा हटकर आओ कनाडा के साथ पंजाबियों के संबंधों के बारे में कुछ दिलचस्प तथ्यों से अवगत हों।
भारतीय पंजाब के लोग यह मानते हैं कि कनाडा एक खुशहाल देश है और यह देश वहां जाने वाले पंजाबियों के जीवन को खुशहाल और सुख से भरा बना सकता है। इस आशा या भ्रम में हर माह सैंकड़ों पंजाबी नौजवान पढ़ाई के नाम पर और कई अन्य पंजाबी किसान, कारोबारी, डाक्टर, इंजीनियर और अन्य प्रोफेशनल्ज़ अपनी जन्म भूमि छोड़कर कनाडा में प्रवास करने के रास्ते पर चल पड़ हैं लेकिन एक कड़वा सच यह भी है कि कनाडा भी अब कज़र् के बोझ तले दबा जा रहा है और वहां जाकर करने के लिए कोई अच्छा काम ढूंढना आसान नहीं रहा है। वर्तमान समय में कनाडा जा रहे पंजाब निवासियों को वहां जाकर कड़ी मेहनत के साथ कमाई करके अपना गुजारा आसान करने और पीछे पंजाब में रहते पारिवारिक सदस्यों को अलग-अलग कार्यों के लिए पैसे भेजने का सिलसिला अब काफी मुश्किल होता जा रहा है। कई नौजवान वहां जाकर प्रतिदिन मुश्किल भरे हालातों के कारण अपने सपनों को एक एक करके टुटता हुआ देख रहे हैं। कुछ प्रवासी तो आज कनाडा को ‘मिट्ठी जेल’ मानते हैं जहां न तो रहना आसान रह गया है न ही पीछे मुड़ा जा सकता है।
कनाडा का कुल क्षेत्रफल 99,84,670 वर्ग किलोमीटर है जिसमें से 90,93,507 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ज़मीनी क्षेत्र है और कुल क्षेत्र का लगभग 12 प्रतिशत हिस्सा जल क्षेत्र है। यह देश क्षेत्रफल के पक्ष से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। वर्ष 2021 की जनगणना के अनुसार कनाडा की कुल जनसंख्या 3,65,66,248 थी जबकि मार्च, 2023 तक यह जनसंख्या 3,95,66,248 के आंकड़े तक पहुंच चुकी थी। यहां आबादी की घनता 4.2 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर के करीब बनती है। यहां प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 60,177 डालर के करीब है और वर्ष 2023 के दौरान कुल अनुमानित जी.डी.पी. 2.385 ट्रिलियन डालर बताई जाती है। कनाडा में रह रहे पंजाबियों की जनसंख्या की बात की जाए तो वर्ष 2021 की जनगणना के अनुसार यह 9,42,170 बताई गई थी जिसमें से ओंटारियो में 3,97,865, ब्रिटिश कोलम्बिया में 3,15,000 और अलर्बटा इलाके में 1,26,385 पंजाबी लोग रहते थे। कनाडा के न्यूनावत क्षेत्र में रहने वाले पंजाबियों की कुछ संख्या 50 से भी कम है जबकि पंजाबियों की सबसे अधिक जनसंख्या ओंटारियो क्षेत्र में है। वर्ष 2021 की जनगणना के मुताबिक कनाडा में पंजाबी भाषा चौथी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है और वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार यहां रहने वाले पंजाबियों में से 86 प्रतिशत के करीब पंजाबियों का सिख धर्म में विश्वास था और बाकी 14 प्रतिशत पंजाबी लोग अन्य धर्मों के साथ संबंधित थे।
इतिहास के पन्ने पलटने से पता चलता है कि पंजबियों ने पहली बार वर्ष 1897 के करीब कनेडा की धरती पर ब्रिटिश कोलम्बिया इलाके में कदम रखा था और यहां आए पंजाबियों ने सबसे पहले जंगली लकड़ी के साथ संबंधित कारोबार में भाग लिया था। वास्तव में यहां पहुंचे ये पंजाबी लोग भारत से इंग्लैंड गये सैनिक थे, जिनको महारानी विक्टोरिया के डायमंड जुबली समागमों की खुशी में सैर के लिए कनाडा भेजा गया था। वास्तव में यह पंजाबी ही कनाडा में आकर रहने वाले दक्षिण-एशिया मूल के पहले व्यक्ति थे। यहां आए इन कुछ सैनिकों के बाद कुछ और पंजाबियों ने भी कनाडा का रूख कर लिया और वर्ष 1900 तक भाव तीन साल के अंदर-अंदर यहां पंजाबियों की संख्या 100 के करीब हो गई थी जो अगले छ: सालों में 15 गुणा बढ़कर वर्ष 1906 में 1500 हो गई थी। वर्ष 1902 में पंजाबियों ने कनाडा के ब्रिटिश कोलम्बिया क्षेत्र में पड़ते ‘गोल्डन’ शहर में स्थित ‘ कोलम्बिया रिवर लंबर कम्पनी’ में काम करने के लिए पहली बार आमद की थी। यहां आते ही अपनी सख्त मेहनत करने की आदत और दृढ़ स्वभाव की बदौलत पंजाबियों ने कृषि और जंगली लकड़ी के कारोबार के क्षेत्र में अपना बड़ा स्थान बना लिया था। यहां आकर रहने वाले पंजाबियों ने वर्ष 1905 में कनाडा और उत्तरी अमरीका के सबसे पहले गुरुद्वारा साहिब की स्थापना कर दी थी।
सबसे पहले और बड़ी सांस्कृतिक मुश्किल पंजाबियों को वर्ष 1907 में आई थी। जब एक पंजाबी सिख का देहांत हो गया था और कनाडा के पादरियों ने वहीं उस सिख का अंतिम संस्कार चिता जलाकर करने की आज्ञा देने से मना करने के अलावा उस सिख को वहां दफनाने की आज्ञा देने से भी मना कर दिया था। इस धर्म संकट के कारण पंजाबियों ने दूर किसी जंगल में जाकर उस सिख का अंतिम संस्कार किया था। इस घटना ने वहां रहते पंजाबियों को और खास तौर पर सिखों को यह सोचने के लिए मज़बूर किया था कि उनके जनसंख्या वाले इलाके में उनका कोई न कोई बड़ा धार्मिक स्थान बनाने की कवायद शुरू कर दी थी, जिसके तहत वर्ष 1908 में वैंकूवर के किटसीलानो क्षेत्र में पंजाबियों ने अपने दूसरे गुरुद्वारा साहिब की स्थापना कर दी थी, जिसको वर्ष 1970 में गिराकर रोष स्ट्रीट में तबदील कर दिया गया था। बहुत ही महत्वपूर्ण और दिलचस्प बात है कि वर्ष 1911 में ब्रिटिश कोलंबिया के एबट्सफोर्ड इलाके में बनाए गये गुरुद्वारा ‘गुरसिख टैंपल’ को वर्ष 2002 में ‘कनाडा के एतिहासिक महत्व वाले महत्वपूर्ण स्थानों की सूची’ में शामिल कर लिया गया था।
कनाडा में पंजाबियों के बारे में एक दिलचस्प तथ्य यह भी रहा है कि वर्ष 1906 में यहां पंजाबियों की संख्या 1500 थी जोकि वर्ष 1907 में 4700 हो गई लेकिन वर्ष 1914 में यह संख्या कम होकर केवल 2000 ही रह गई थी। इसका कारण यहां पंजाबियों के साथ नसली भेदभाव होने की घटनाओं में वृद्धि हो जाना था। वर्ष 1914 में ही कामागाटा मारू कांड भी इसी नसली भेदभाव के कारण ही हुआ था, जिसमें समुद्री जहाज़ पर सवार 374 यात्रियों में से केवल 24 यात्रियों को कनाडा में दाखिल होने की अनुमति दी गई थी और बाकी बचे 352 यात्रियों जिनमें 337 पंजाबी सिख, 27 पंजाबी मुस्लिम और 12 पंजाबी हिन्दू थे, को वापिस भारत जाने के लिए कह दिया गया था। वर्ष 1991 के आंकड़ों के अनुसार कनाडा में पंजाबियों की संख्या 1,67,930 थी जोकि वर्ष 1996 में बढ़कर 2,48,695, वर्ष 2016 में 6,68,240 और वर्ष 2021 में 9,42,170 हो गई थी कि उस समय कनाडा की कुल जनसंख्या का 2.6 प्रतिशत के करीब बनता था।
वर्ष 1925 में कनाडा गये स. निरंजन सिंह ग्रेवाल को 25 सालों की सख्त मेहनत के बाद वर्ष 1950 में सरकारी पद प्राप्त करने वाले पहले पंजाबी व्यक्ति होने का श्रेय प्राप्त हुआ था। अपनी काबलियत के दम पर उनको वर्ष 1952 में ‘बोर्ड ऑफ कमिश्नरज़’ में पुन: चुन लिया गया था और वर्ष 1954 में उनको ‘मिशन’ इलाके का मेयर नियुक्त कर दिया गया था जोकि सभी पंजाबियों के लिए सम्मान की बात थी। वर्ष 1956 में उनको जान से मारने की केवल धमकियां ही नहीं मिलीं बल्कि शरारती तत्वों द्वारा उनके घर सहित उनकी छ: मिलों को भी आग लगा दी गई थी। 17 जुलाई, 1957 को सियाटल के एक होटल में निरंजन सिंह ग्रेवाल की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। उनके सिर में गोली लगी थी। पुलिस द्वारा इस घटना को आत्महत्या का मामला बताकर केस बंद कर दिया गया था जबकि ग्रेवाल परिवार ने कत्ल का संदेह जताया था। स. निरंजन सिंह ग्रेवाल को श्रद्धांजलि के रूप में मिशन शहर में एक सड़क का नाम ‘ग्रेवाल स्ट्रीट’ रख दिया गया था और ब्रिटिश कोलम्बिया के पूर्व प्रधानमंत्री डेव बैटर ने कहा था-‘हरेक बच्चे को उन चुनौतियों के बारे में पढ़ना और जानना चाहिए, जिनका सामना ग्रेवाल ने किया था।’ याद रहे कि 20वीं शताब्दी के 6वें दशक में दक्षिण वैंकूवर इलाके में ‘पंजाबी मार्किट’ बन चुकी थी और ब्रिटिश कोलम्बिया के उत्तरी भाग में स्थित ‘प्रिंस जार्ज’ नामक आर्थिक गतिविधियों का केन्द्र पंजाबियों के आगमन से सरोबार हो चुका था।
वर्ष 1967 में कनाडा सरकार ने कुछ नियमों में विशेष फेरबदल किया था जिसके कारण यहां पंजाबियों के आगमन में कई गुणा वृद्धि हुई थी। वर्ष 1970 के बाद पंजाबियों का ़गलबा उत्तरी डैल्टा, पूर्वी रिचमंड और सरी आदि इलाकों में बढ़ना शुरू हो गया था। वर्ष 1986 में भारतीय मूल के स. मनमोहन सिंह सहोता को कनाडा की संसद का सदस्य चुना गया था। वर्ष 1955 में ब्रिटिश कोलम्बिया के डंकन शहर में जन्मे श्री सहोता पहले दक्षिण एशियाई कैनेडियन एम.पी. थे। 20वीं शताब्दी के आठवें दशक में कनाडा का ओंटारियो क्षेत्र पंजाबियों की जनसंख्या के साथ भरपूर होना शुरू हो गया था। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मैट्रो वैंकूवर में घरों में पंजाबी बोलने वालों की संख्या कुल जनसंख्या का 5.5 प्रतिशत थी जबकि सरी निवासियों में से 21.3 प्रतिशत लोग घरों में पंजाबी ही बोलते थे।
वर्ष 2021 में हुई जनगणना के आंकड़ों के अनुसार पंजाबी भाषा कनाडा में बोली जाने वाली अन्य भाषाओं के मुकाबले चौथे स्थान पर थी तथा पंजाबी बोलने वालों की संख्या में यह वृद्धि पिछली जनगणना में दर्ज पंजाबी बोलने वालों के मुकाबले 49 प्रतिशत अधिक थी। उस समय के आंकड़ों के अनुसार तीसरे स्थान पर चीनी भाषा 5.3 लाख लोगों द्वारा बोली जाती थी जबकि चौथे स्थान पर आई पंजाबी को बोलने वालों की संख्या 5.2 लाख थी अभिप्राय अन्तर बहुत ही कम था।
पंजाबियों की कनाडा में चढ़ता को इस बात से भी आंका जा सकता है कि वर्ष 2015 के संसदीय चुनावों में जीत प्राप्त करने वाले 19 भारतीय मूल के सांसदों में 18 पंजाबी थे जिनमें लिबरल पार्टी द्वारा खड़े किए गए 18 पंजाबी उम्मीदवारों में से 14 ने तथा कंज़रवेटिव पार्टी द्वारा खड़े किए 19 पंजाबी उम्मीदवारों में से केवल 4 ही जीत प्राप्त कर सके थे। वर्ष 2019 के चुनावों में जीत हासिल करने वाले भारतीय मूल के 20 उम्मीदवारों में 19 पंजाब से संबंधित थे। प्रधानमंत्री श्री जस्टिन ट्रूडो की सरकार में मंत्री के तौर पर सेवा निभाने का श्रेय स. हरजीत सिंह सज्जन, स. नवदीप बैंस, बारदिश चग्गर को हासिल हो चुका है तथा बारदिश चग्गर को तो कनाडा के इतिहास में ‘हाऊस ऑफ कामन्ज़ में पहली महिला नेता’ होने का श्रेय प्राप्त हुआ है। टिम उप्पल, अर्पण खन्ना तथा जसराज हेलां के बाद वह कंज़रवेटिव पार्टी से संबंधित तीसरे पंजाबी सांसद हैं। पंजाबियों के लिए गर्व की एक और बात यह भी है कि विगत 30 जून को पंजाबी मूल के स. बलतेज सिंह ढिल्लों को प्रतिष्ठित संस्था ‘वर्कस़ेफ बोर्ड ऑफ डायरैक्टज़र्’ का तीन वर्षों के लिए चेयरमैन नियुक्त किया गया था। वर्णनीय है कि स. बलतेज सिंह को जहां ‘रॉयल कनैनेडियन माऊंटड पुलिस’ के पहले दस्तारधारी सिख अधिकारी होना का श्रेय हासिल है वहीं इनकी शानदार सेवाओं के फलस्वरूप इन्हें महारानी ऐलिज़ाबेथ-2 द्वारा ‘गोल्डन तथा डायमंड जुबली मैडलों’ के साथ सम्मानित किया जा चुका है।
यहां यह दिलचस्प तथ्य भी बताना बनता है कि वर्तमान आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2022 में कनाडा गये, 2,26,450 भारतीय विद्यार्थियों में से 70 हज़ार विद्यार्थी पंजाब से हैं जोकि 20 प्रतिशत के लगभग बनता है। आर्थिक विशेषज्ञों द्वारा दिए गए एक अनुमान के अनुसार प्रत्येक वर्ष पंजाब का 27 हज़ार करोड़ रुपया कनाडा पहुंच रहा है तथा प्रत्येक गत वर्ष से इस राशि में वृद्धि होती जा रही है। ये आंकड़े भारत सरकार तथा खास तौर पर पंजाब सरकार के चिन्ता का विषय होने चाहिएं कि हम प्रवास के मार्ग द्वारा केवल अपने देश के प्रतिभावान युवाओं को ही बेगाने देशों में नहीं भेज रहे हैं, अपितु बड़ा वित्तीय कोष भी कनाडा की झोली में डाल रहे हैं जो हमारे देश या हमारे प्रदेश के विकास के लिए काम आ सकता था। पंजाबियों की कनाडा या अन्य विदेशी देशों में जाकर रहने की जो दौड़ लगी हुई है, वह पंजाब को आर्थिक तथा बौद्धिक मंदी के साथ-साथ बड़े विनाश की ओर भी धकेल रही है जिसके लिए पंजाब बचाने के लिए चिंतित समूह सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक तथा राजनीतिक संगठनों को एकजुट होकर योजनाबंदी करने तथा उचित योजनाओं को सही ढंग से लागू करने की ज़रूरत है। केवल सरकारी वायदों या दावों ने पंजाब या पंजाबियों का कुछ नहीं संवारना।
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