मां गंगा के धरती पर अवतरण का उत्सव है - गंगा दशहरा

माना जाता है कि पुण्य सलिला गंगा को धरती पर इक्ष्वाकुवंश के राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ लाये थे, जिसका उद्देश्य अपने पुरखों का तर्पण करना था। क्योंकि कपिल मुनि की श्राप से राजा सगर के 60 हजार पुत्र (जोकि भगीरथ के पुरखे थे) भस्म हो गये थे। उन्हें तब तक मुक्ति नहीं मिल सकती थी, जब तक कि उनकी भस्म गंगा में न प्रवाहित हो। इसलिए भगीरथ भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और फिर उन्हें अपनी जटाओं से मां गंगा को मुक्त करने का वरदान मांगा ताकि वे अपने पुरखों को प्रेत योनि से मुक्ति दिला सकें। जिस दिन भगीरथ, मां गंगा को धरती पर लाये थे, वह ज्येष्ठ शुक्ल की दशमी तिथि थी। इसलिए तब से इस तिथि को गंगा दशहरा के पर्व के रूप में मनाया जाता है। 
वैसे भारत जैसे कृषि प्रधान देश में गंगा दशहरा की महत्ता इस पुराण कथा से भी कहीं ज्यादा है। वास्तव में गंगा का महत्व किसी के पुरखों को उद्धार करने से कहीं ज्यादा भारत के आम लोगों को जीवनदान देने से है। गंगा के मीठे पानी की बदौलत ही पैदा होने वाले अन्न से करोड़ों लोग जीवित रहते हैं। गंगा जैसी सदानीरा नदी के कारण ही भारत सदियों से सुखी और सम्पन्न देश रहा है। लेकिन गंगा का जितना महत्व हमारी आर्थिकी से है, उससे कहीं ज्यादा महत्व हमारी सांस्कृतिकी से भी है। वास्तव में गंगा सिर्फ नदी नहीं है, यह हमारे आचार, विचार, जीवन और मूल्यों को स्वरूप देने वाली शक्ति है। यही वजह है कि गंगा हजारों सालों से भारत में आस्था और विश्वास के साथ सम्मान की प्रतीक है। गंगा के पानी को पानी नहीं अमृत माना जाता है और मां गंगा को साक्षात मोक्षदायनी कहा जाता है। 
गंगा दशहरा चूंकि भारतीय धर्म और संस्कृति दोनों में ही बहुत महत्व है। इसलिए इस दिन उत्तर भारत में करोड़ों लोग सुबह सूरज उगने के पहले ही गंगा में स्नान करना चाहते हैं। पवित्र प्रयागराज में इस दिन बहुत भीड़ होती है। यही हाल गंगा किनारे बसे दूसरे पवित्र शहरों का भी होता है। इस दिन लोग व्रत रखते हैं और गंगा में स्नान करके या आसपास गंगा न हुई तो पानी में पवित्र गंगाजल की बूंदे डालकर स्नान करने के बाद गरीबों को दान देते हैं, उन्हें भोजन कराते हैं और मां गंगा से अपने जीवन को सुखी व समृद्ध बनाने के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाने वाला गंगा दशहरा का पर्व इस साल 16 जून, 2024 को मनाया जायेगा। 16 जून, 2024 की रात 2 बजकर 38 मिनट पर वैदिक पंचांग के मुताबिक ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि शुरु हो जायेगी और 17 जून, 2024 को सुबह 4 बजकर 45 मिनट पर इसका समापन होगा। लेकिन उदया तिथि के मुताबिक गंगा दशहरा का पर्व 16 जून 2024 को मनाया जायेगा। 
इस साल इस दिन रवि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है, जो कि पूजा, पाठ, स्नान, ध्यान आदि के लिए बहुत उत्तम योग माने जाते हैं। माना जाता है कि जाने अंजाने मनुष्यों से जो पाप हो जाते हैं, उन पापों के मुक्ति के लिए गंगा दशहरा का व्रत ज़रूर रखना चाहिए। मां गंगा इस दिन व्रत रखने पर प्रसन्न होकर सभी तरह की बाधाओं से मुक्त कर देती हैं। गंगा दशहरा के दिन चूंकि मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था, इसलिए अब इस दिन को हरिद्वार, ऋषिकेष और काशी में सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। दिल्ली के पास स्थित गढ़ नामक स्थान पर गंगा दशहरा पर भव्य मेला लगता है, जहां स्नान करने और मेले में घूमने के लिए उत्तर भारत के लोग बहुत दूर-दूर से आते हैं। इस दिन लोग गंगा के रेत में उगाये जाने वाले फल, मिट्टी के सुराहीदार बर्तन, जिनमें पानी ठंडा होता, पंखा, छाते तथा अन्न का विशेष रूप से गरीब लोगों को दान करते हैं ताकि उनके लिए इस महीने में आग उगलती गर्मी के साथ जीवन जीना आसान हो जाए। 
गंगा दशहरा की मान्यता भारत के ग्रामीण समाज में काफी ज्यादा है। जो लोग गांव में संकट के समय किसी के पास अपनी खेती गिरवी रखते हैं, उन लोगों के लिए गंगा दशहरा वह अंतिम तिथि होती है, जब वे अपने खेतों को छुड़ा सकते हैं, अगर गंगा दशहरा तक ऐसा न हुआ, तो फिर एक साल और इंतजार करना पड़ता है। 
गंगा दशहरा का दिन बड़ा सात्विक और आध्यात्मिक दिन होता है, इस दिन गंगा में नहाते हुए लोग अपने पुरखों और परिजनों के लिए भी डुबकी लगाते हैं, ताकि अगर वे इस दिन गंगा में स्नान न कर सकें तो उन्हें भी इस दिन इसका पुण्य मिले। गंगा दशहरा का पर्व सदियों से मनाया जा रहा उत्तर भारत का एक प्रमुख धार्मिक व सांस्कृतिक पर्व है।
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