अरे दीवानो, हमें पहचानो.... सलीम-जावेद

फिर सलीम की भी पहली शादी सुशीला चर्क से हुई। इससे उनके चार बच्चे (सलमान खान, अलवीरा, अरबाज़ खान, सोहेल खान) पैदा हुए। एक बच्ची को इस परिवार ने गोद भी लिया हुआ है। लेकिन सलीम खान ने भी 1981 में हैलन के साथ दूसरी शादी भी की थी। इसके साथ उनके परिवार में कुछ दिनों तक लड़ाई-झगड़ा रहा, लेकिन बाद में सब कुछ ठीक हो गया था। सलीम-जावेद की पहली मुलाकात एम.एम. सागर की फिल्म ‘सरहदी लुटेरा’ के सैट पर हुई थी। यह एक छोटे बजट की फिल्म थी। जावेद इसमें क्लैपर ब्वॉय थे, जबकि सलीम इसके नायक थे। निर्माता सागर को कम मुआवज़े पर काम करने वाला कोई लेखक नहीं मिल रहा था, इसलिए जावेद ने इस फिल्म के संवाद लिखने की पेशकश की। इसके बाद ही सलीम-जावेद मिलकर कहानियां लिखने के बारे में योजनाएं बनाने लगे थे। सलीम कहानी का प्लाट रचते और जावेद उसकी पटकथा और संवाद लिखते थे। एक दिन अचानक इस टीम की मुलाकात जब राजेश खन्ना के साथ हुई तो उन्होंने उनको कहा, ‘मैं अपने बंगले की मुरम्मत करवा रहा हूं। मुझे पैसों की सख्त ज़रूरत है। मेरे पास मद्रास से देवर नामक एक व्यक्ति आया था। वह मुझे मुंह-मांगा मुआवज़ा देने के लिए तैयार है। लेकिन उसके पास जो कहानी है, वो बहुत तर्कहीन है। अगर आप उसकी पटकथा को शोध कर लिख दें तो मैं आपको अच्छे मुआवज़े के अलावा आपका सही क्रैडिट भी फिल्म में दिलाऊंगा। सलीम-जावेद ने राजेश खन्ना की सलाह को मान लिया। जिस कहानी को उन्होंने शोध कर लिखा था, उस पर ‘हाथी मेरे साथी’ नाम की फिल्म बनी थी, जिसने कि जानवरों से संबंधित फिल्म होने के अलावा बॉक्स आफिस पर भी धमाका करके दोहरी पहचान कायम की थी।
इस फिल्म की सफलता के बाद जी.पी. सिप्पी ने इस टीम को अपना स्थायी तौर पर रैजीडेंट लेखक ही बना लिया था। रैजीडेंट लेखक होने का मतलब यह है कि जहां भी और जब भी फिल्म की शूटिंग होती थी, इनको यूनिट के सदस्य के तौर पर साथ ही रहना पड़ता था। जी.पी. सिप्पी के लिए इन्होंने ‘अंदाज़’, ‘सीता और गीता’, ‘शोले’ और ‘शान’ जैसी महंगे बजट वाली फिल्में लिखी थीं। इनका काम बंटा होता था। सलीम फिल्म के सीन तैयार कर देते और जावेद उनके संवाद लिख देते थे। यह सारा काम उर्दू में करते थे। हां, संवादों का संक्षेप वह लाल स्याही से एक लाईन में साथ-साथ अंग्रेज़ी में भी दिया करते थे, ताकि जिस कलाकार निर्देशक को उर्दू नहीं आती थी, वह भी संवादों का सार आसानी से समझ ले। यह दोनों स्वाभाविक किस्म के पटकथा लेखक थे, इसलिए इनके काम में और रोचकता होती थी। बहुत से यादगार दृश्य इन्होंने स्वै-चलित तरीके से ही लिखे लगते थे। ‘शोले’ का टैंकी वाला दृश्य जावेद ने बंग्लौर के हवाई अड्डे पर कार में बैठकर लिखा था, क्योंकि उन्होंने फ्लाइट समय पर पकड़नी थी। लेकिन यह दृश्य कॉमेडी के क्षेत्र में मिसाल ही कायम कर गया था।