आखिरी मुलाकात
(क्रम मिलाने के लिए पिछला रविवारीय अंक देखें)
इसलिए इस बार जितने रिश्तेदार है मिल लेता तो बेहतर होता। यह ज़रूरी नहीं कि हर जगह रात गुजारना ही पड़े। ऐसी बात नहीं। क्योंकि सबको पता नौकरी वाले पूत को गिनकर छुट्टियां मिलती है। पिताजी के इतना कहते ही मेरा मन विचलित हो गया। पुरानी स्मृतियां यकायक भरभराकर मेरे जेहन में उतरकर उथल पुथल मचाने लगी। विगत की सारी बातें स्पष्ट प्रकट हो गई थी। जब से नाना-नानी स्वर्ग सिधारे तब से एक बार भी नहीं जा पाया। मामा-मामी से मुलाकात तो होगी। ढेरों सारे मित्रों से भी मिल लूंगा।
साथ-साथ अपने बचपन के दोस्तों से जिसकी नौकरी नहीं लगी और गांव में रहकर जीविका चला रहे हैं उनसे तो मिलूंगा।
इसलिए नाशिक से टाटा वापस आते समय मैं सपरिवार आया था। नाना गांव धनगाई पहुंचते ही कुछ अजीब विचित्र तरह के अपरिचित माहौल से मेरा सामना हुआ।
सड़क किनारे बहुत सारे छोटे-छोटे शोरूम के आकार में बड़ी-बड़ी दुकान खुल गई थी। और आर्थिक मज़बूती प्रदान करने की कहानी कह रहा था। सड़क के किनारे जो धनखेती जमीन थी वहां छोटे-बड़े दुकान दीखने लगे थे। नाना गांव धनगाई से विक्रमगंज जो एक छोटे-मोटे शहर के रूप में विकसित था जो आधा किलोमीटर के फासले को समेटकर आजू-बाजू के गांव को अपने आगोश में लेकर समृद्ध शहर में विकसित कर मज़बूती प्रदान कर रहा था। रोज़गार के नये-नये द्बारा खुल गया था। और मेरे बहुत सारे मित्र जो नौकरी नहीं होने के कारण गांव में रह गए थे और गृहस्थी के कार्यों से जब अवकाश मिलता था बाकी के दिनों में जिनका रोड के किनारे जमीन था उस पर दो-चार दुकान का शक्ल देकर किराया पर लगा छोड़े थे। बैठोर के दिनों में एक दुकान अपने लिए रखे थे ताकि बाकी बेकार बचे समय का उपयोग कर सकें।
अभिवादन के दौर से गुजरने के पश्चात नाना-नानी ने उदास व निरीह स्वर में कहा- ‘अबकी बार रहोगे न।’
मैंने हां में उस समय सिर हिला दिया था। मामा-मामी भी साथ थे। इस बार और कहीं रिश्तेदारों को अपने आने की सूचना नहीं दी थी पिताजी तथा अन्य सदस्यों को पता चलने नहीं दिया कि मैं जमशेदपुर आया हूं। और इस बार गांव जाकर सबसे मिलने वाला हूं। इसलिए कहीं से मेरे बारे में कोई जानकारी चाहता तो कह दीजिए कि छुट्टी सप्ताह भर की है। कहीं आना जाना नहीं हो सकेगा। क्योंकि गर्मी के दिनों में अतिरिक्त छुट्टी मिलना असंभव सा लगता है। सबको ध्यान में रखकर चलना पड़ता है। वह अपने बड़े साहब के कथन को दोहरा देता। लेकिन इस बार धनगाई गांव बदलाव का कहानी कह रहा था। परिवर्तन का लहर सभी जगह पर उसके असलियत पर भौतिकवादी की परत जो चढ़ गई थी।
नाना गांव का मुख्य आकर्षण का केन्द्र मेरे लिए वह नींबू, अमरूद व पपीता का बाग था। जहां रात्रि के उत्तरार्द्ध से पौ फटने तक पक्षियों का कलरव शुरू हो जाता था। किंतु पौ फटने तक न तो पहले जैसा चिड़िया चुरूंग कि चहचहाहट थी और न वैसा शोरगुल।
मैं सुबह नित्य क्रिया से निवृत्त होकर दोनों हाथों में चबेना लेकर बगीचे की ओर बढ़ा तो बगीचा के नाम पर मात्र दो चार आम व शीशम के पेड़ों ने झुककर अपने उदासी का कहानी कह रहे थे। बगीचे में ऐसा कुछ नहीं रह गया था जिससे पक्षी अपना सुरक्षित बसेरा बनाए।
बगीचे में जैसे पहुंचा मेरी आवाज़ सुन दो चार पक्षी मेरे इर्द-गिर्द चक्कर काटने लगे थे। और अभिवादन कर मुझसे पूछ रहे हो- ‘इस बार तो बहुत दिनों बाद मिले हो शायद अगले बार आओगे तो कुछ नहीं मिलेगा। आधुनिकता के लहर में गांव के खूबसूरती को नष्ट करने का बेड़ा उठा लिया है।’ मुझे लगा मेरे अपने पहचान वाले जो है वह अब नगण्य मात्र ही रह गए हैं। इन्सान अपने सहूलियत के लिए दूसरे के घर उजाड़ने में तनिक भी कोताही नहीं बरतता। यह बगीचा कितना खूबसूरत था भांति-भांति के फलदार वृक्ष नींबू, अमरूद और गुलमोहर जैसे पौधों के अहमियत को नष्ट किया और जो आधा-अधूरा है एक तिहाई दूर के व्यापारियों दूर के व्यापारी के गोदाम का भेंट चढ गया। हालांकि अपने मित्रों से जो दूसरे जगह बसेरा ले लिए थे। कुछ पालतू होकर घरों का शोभा बढ़ा रहे थे। अब कम ही थे जो जो मेरे इर्द-गिर्द दाना चुगते कह रहे हो- ‘अगली बार आओगे तो हम लोग भी नहीं होंगे। कोई और बसेरा हो जाएगा कहीं और ठौर ठिकाना ले लेंगे। शायद न मिले हमलोग।’
अगले दिन अपने गांव प्रस्थान के उद्देश्य से जैसे निकला सामने टहनी विहीन पेड़ पर बैठे पक्षियों के कलरव से मेरे पांवों में ब्रेक लग गया। बैग को कंधे पर उठा बगीचे में जा रहा था। दोनों हाथों में चबेना भरा हुआ था। बैग को किनारे रख बगीचे के फर्श पर दानों को बिखेर दिया। पक्षी दाना चुगने लगे थे। एक हाथ का चबेना हाथ में था जिस पर दो-तीन पक्षी आराम से बैठे दाना चुग रहे थे। मानो मुझसे कह रहे हो- यह हमारी आखिरी मुलाकात है। मन में यह भाव आते ही अंतस का कोलाहल चीखने लगा था और हाथ में पड़े दाने को जमीन पर बिखेरकर शीघ्र ही रास्ता पकड़ लिया था, जहां पहले से ही पत्नी व पुत्र मेरा इंतजार कर रहे थे।
(समाप्त)