भारत सरकार की कृषि संबंधी योजनाओं पर नज़रसानी की ज़रूरत

देश में तैयार किए सामान और सेवाओं का निर्धारित मूल्य (जी.डी.पी.) में कृषि का योगदान 13.9 प्रतिशत है। सन् 1951 में यह 51.9 प्रतिशत होता था। फिर यह लगातार कम होता ही गया। इसका कम होना जहां देश में हो रहे औद्योगीकरण और शहरी रुझान के कारण भी था, परन्तु सत्य यह है कि कृषि का धंधा कोई लाभदायक धंधा नहीं रहा। छोटे खेतों के कारण उत्पादकता कम आती है और मुरब्बाबंदी हर राज्य में न होने के कारण सिंचाई और खादों, दवाइयों आदि का सीमित मात्रा में लाभदायक प्रयोग मुश्किल हो जाता है। चाहे भारत का सिंचाई अधीन रकबा चीन को छोड़कर विश्व में अन्य सभी राज्यों की अपेक्षा अधिक है, परन्तु उत्पादकता इस स्तर पर नहीं। भारत सरकार ने किसानों की सहायता और कृषि के विकास के लिए कई योजनाएं बनाकर जारी की हैं। इनमें कुछ योजनाएं तो जैसे कि राष्ट्रीय कृषि विकास योजना और कृषि टैक्नालॉजी तथा प्रसार सेवा सुधार संबंधी योजनाएं तो समूचे देश के लिए हैं और कुछ खास स्थानों, फसलों और राज्यों के ज़िलों के लिए हैं। जैसे कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, राष्ट्रीय बागवानी मिशन, कपास तकनीकी मिशन आदि। इन योजनाओं के अधीन किसानों को चुना जाता है। इन योजनाओं से चुने किसान फायदा उठा रहे हैं। भारत सरकार द्वारा जारी की गई भूमि स्वास्थ्य कार्ड योजना जिसका उद्देश्य कृषि में स्थायीत्व लाना और कृषि सामग्री का उचित प्रयोग करके उत्पादकता बढ़ाकर कृषि को लाभदायक धंधा बनाना है। कृषि विशेषज्ञ भूमि की उपजाऊ शक्ति की परख करके किसानों को यह कार्ड देते हैं, जिस पर वह अपनी सिफारिशें दर्ज कर देते हैं और किसानों को यह सिफारिशें अमल में लाने के लिए समझा देते हैं। ऐसा करने से कीमियाई खादों और कीड़ेमार दवाइयों का सूझबूझ से और योग्य प्रयोग किया जाता है, जिसके पश्चात् फसलों का झाड़ और गुणवत्ता बढ़ती है। देश भर में यह 2015 के बाद 14 करोड़ कार्ड किसानों को जारी किए जाने थे। इस संबंध में कुछ राज्य लक्ष्य प्राप्त करने के कगार पर तो पहुंच गए परन्तु कई स्थानों पर किसानों को व्यवहारिक तौर पर यह कार्ड योजना के अनुसार उपलब्ध नहीं हुए। भारत सरकार ने ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ भी बनाकर वर्ष 2016 में लांच की है। इस योजना के अधीन रबी, खरीफ की दोनों फसलें व्यापारिक तथा बागवानी आती हैं। प्रीमियम का कुछ हिस्सा किसानों के खातों से बैंक अदा कर देते हैं। शेष हिस्सा राज्य और केन्द्र सरकार देते हैं। इस योजना के अधीन युद्ध या देश की आन्तरिक गड़बड़ या चोरी आदि से होने वाले नुक्सान संबंधी फसलें नहीं आती। शेष लगभग सभी तरह के नुक्सान आते हैं परन्तु यह योजना चाहे पंजाब में लागू नहीं, क्योंकि पंजाब सरकार ने सहमति नहीं दी थी। अन्य राज्यों में भी किसानों को कोई विशेष लाभ नहीं पहुंचा रही। हरियाणा के कुछ किसानों ने बताया कि उनके खातों से प्रीमियम के पैसे निकालकर कम्पनी को दे दिए गए। जब वह बारिश से हुए नुक्सान की पूर्ति के लिए गए तो बैंक और कम्पनी दोनों ने यह नुक्सान पूरा करने से जवाब दे दिया। किसान जिन्होंने बैंकों से ऋण लिया हुआ है, प्रीमियम का खर्च देना एक बोझ समझते हैं, क्योंकि बहुत ही कम किसान हैं, जिनको फसलों के नुक्सान का मुआवज़ा कम्पनी से मिला हो। कुछ किसान नेताओं का कहना है कि इस योजना से किसानों की बजाय बीमा कम्पनियों को लाभ हुआ है। ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना’ के तहत सिंचाई अधीन रकबा बढ़ाना, पानी के उचित प्रयोग के लिए सुधार करना तथा पानी को व्यर्थ होने से बचाने के लिए और पानी की बचत करने की तकनीकें आती हैं। इसलिए राज्य सरकारों को पैसा दिया जाता है, जिसमें से 50 प्रतिशत पैसा सिंचाई से रहित रकबों और कम उत्पादन करने वाली ज़मीनों के सुधार आदि के लिए खर्च करना होता है। ‘राष्ट्रीय कृषि मंडी (ई नाम)’ योजना के अधीन कृषि उत्पादों के लिए देश में एक मंडी स्थापित करना है, ताकि सभी मंडियों में किसानों को एक ही कीमत मिले। इस योजना के अधीन कृषि उत्पादों का व्यापार भी लाभदायक हो जाने की सम्भावना है। परन्तु यह योजना आज तक किसानों के लिए लाभदायक नहीं बन सकी। दालों के उत्पादन को बढ़ाने संबंधी भी राष्ट्रीय अनाज सुरक्षा मिशन द्वारा जारी की गई योजना है, जिसके अधीन दालों की उत्पादकता, पौध सुरक्षा, प्रबंधन टैक्नालॉजी का प्रयोग करके बढ़ाना है। इस कार्यक्रम के अधीन चने, मांह, अरहर, मूंग-मसर आदि सभी दालें आती हैं। यह योजना आन्ध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, झारखंड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल राज्यों के लिए है जहां दालों का उत्पादन बढ़ाने का कार्यक्रम इस योजना के अधीन चल रहा है, परन्तु दालों के उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि नहीं हुई। भारत अभी भी दालें अन्य देशों से आयात कर रहा है। आई.सी.ए.आर. द्वारा आत्मा (कृषि टैक्नालॉजी प्रबंधन एजेंसी) योजना चलाई जा रही है। हर ज़िले में यह चालू है। इस योजना के अधीन कृषि, ज्ञान, विज्ञान किसानों तक ले जाना और खोज संस्थाओं, गैर-सरकारी संस्थाओं तथा कृषि विकास से जुड़ी एजेंसियों के बीच तालमेल बढ़ाना है। आत्मा एक रजिस्टर्ड एजेंसी हैं, जिसकी प्रबंधक कमेटी में गैर-सरकारी संस्थाओं और किसानों के प्रतिनिधि भी लिए जाते हैं। किसानों का ज्ञान बढ़ाने के लिए अलग-अलग प्रोजैक्ट और दौरे भी इसी योजना के अधीन प्रबंधन किए जाते हैं। एक और ‘मेरा गांव, मेरा गौरव’ योजना है, जिसके अधीन कृषि विज्ञान किसानों के घरों तक पहुंचाने का लक्ष्य है। यह योजना प्रधानमंत्री द्वारा वर्ष 2015 में लांच की गई थी। इस योजना के अधीन वैज्ञानिकों का किसानों के साथ तालमेल जोड़कर किसानों को पर्याप्त जानकारी मुहैय्या करवाई जाती है। इसके अलावा ‘किसान कॉल सैंटर योजना’ है, जिसके अधीन टोल फ्री नम्बर पर किसानों के सवालों का जवाब दिया जाता है और उनको पर्याप्त जानकारी विशेषज्ञों द्वारा मुहैय्या की जाती है। कृषि में युवाओं के महत्व को महसूस करते हुए आई.सी.ए.आर. ने ‘आर्या’ योजना जारी की है, जिसके तहत नौजवान किसानों को कृषि के कार्य पर रहने के लिए प्रेरित किया जाता है और उनकी आमदनी कृषि को स्थायीत्व बनाकर मजबूत की जाती है। यह योजना 25 राज्यों में चल रही है और हर राज्य में एक ज़िला इसके लिए चुना गया है। आई.सी.ए.आर. इस योजना के लिए फंड मुहैय्या करती है। किसानों को इन योजनाओं द्वारा बनता लाभ नहीं पहुंच रहा। इन योजनाओं का मूल्यांकन करके इन पर नज़रसानी की ज़रूरत है। 

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