मिलावट का बढ़ता कारोबार

आज बाज़ार से सामान खरीदने जाते वक्त यह ध्यान नहीं आता कि उसकी गुणवत्ता कैसी होगी? हकीकत तो यह है कि जब हम और आप खरीददारी करने जाते हैं तो हमें प्रोडक्ट का नाम याद हो न हो, पर इसे लगाकर दिखाने वाले अदाकार का नाम बाखूबी याद रहता है, इसलिए हम दुकानदार को बड़ी खुशी से कहते हैं कि वह क्रीम देना जिसकी ऐड फलां हीरोइन ने की है। मुझे तो इसके अलावा कोई क्रीम सूट ही नहीं करती। हद तो तब हो जाती है जब यह बड़ी-बड़ी कम्पनियां पैसे के बलबूते पर अपनी हानिकारक वस्तुएं हर पांच-सात मिनट बाद टीवी पर विज्ञापनों के जरिये हमारे समक्ष पेश करती रहती हैं और चाहते न चाहते हुए हम इसके मुरीद बन जाते हैं। खाने की वस्तुएं भी विज्ञापनों की महामारी का शिकार हो रही हैं। ये बड़ी कम्पनियां मुनाफे के नाम पर सिर्फ यहां तक सीमित नहीं रहतीं, बल्कि हमारे ही द्वारा घरेलू पैदा किया दूध हमीं से खरीदकर, उसकी क्रीम निकालकर, पैकेट बनाकर हमें ही महंगे दामों पर बेचने की डगर पर चल पड़ी हैं, जिसे पीकर बच्चे बीमार हो रहे हैं।  इतना ही नहीं, बाज़ार में खुले बड़े-बड़े शो रूमों, दुकानों में सजी रंग-बिरंगी मिठाइयों को हम बड़े चाव से खरीदते व खाते हैं, मगर क्या दुकानदार उनमें डाले गये हानिकारक रंग, चीनी व कैमिकल की जानकारी आपको देता है, जिसकी वजह से आप पेट की बीमारियों से ग्रस्त हो सकते हैं?  मिलावट व पैसे की भूख में अंधे इन व्यापारियों ने हमारी रोज़मर्रा की चीजों को भी नहीं छोड़ा है। आज कोई भी दाल बाज़ार से खरीद लाओ तो उसमें उसी रंग व आकार के पत्थर डाल दिए जाते हैं, जिससे अक्सर लोगों में पत्थरी की शिकायत सुनने को मिलती है। पिसा हुआ गेहूं का आटा भी मिलावट से अछूता नहीं। इसमें अखरोट, चावलों का आटा व मैदा मिलाया जाता है। कभी नकल को एक कला समझ कर सराहा जाता था पर आज तो नकल व नकली के व्यापारियों ने हमसे असल चीजों के रंग, रूप व स्वाद तक को छीन लिया है। आज पैसा फैंकों व नकली दूध, नकली लस्सी, दही, शक्कर, चावल, आटा, शहद, मक्खन व सब्ज़ियां व नकली फल भी आपको मिल जायेंगे। जिन्हें देखकर आप असल को भूल कर इन्हीं के स्वाद के अनुरूप ढल जायेंगे। मिलावट के इन चोरों ने हमारी दवाओं को भी अपने मोह पाश में फंसा लिया है। इसलिए आज रोग छोटा हो या बड़ा उसमें न ही आराम आता है और न ही चैन। 
मिलावट का कारोबार आज हमारे जीवन के हर पहलू से इस कद्र जुड़ चुका है कि उससे बाहर आना मुश्किल ही नहीं, असम्भव भी लगता है। पर हम कोशिश भी न करें तो यह गलत बात है। हमारी सेहत के साथ हर तरफ से खिलवाड़ करते इन कारिन्दों पर नकेल कसने का वक्त आ चुका है। आपको जहां भी गलत काम नज़र आए उसके विरुद्ध आवाज़ उठाइए। याद रखिये कि कोशिशें ही कामयाब होती हैं। इसलिए कोशिश कीजिये, धीरे-धीरे ही सही पर वक्त बदलेगा ज़रूर।