सांस की तकलीफ और दमे से बचाव मुश्किल नहीं

यदि आप अपने को सांस की बीमारियों से बचाना चाहते हैं तो घरों एवं दफ्तरों में एयर प्योरीफायर का इस्तेमाल अवश्य करें। इसके अतिरिक्त हर कमरे में एक्जास्ट फैन का इस्तेमाल भी आवश्यक है।सांस की बीमारियों से सबसे ज्यादा दमे के रोगी परेशान रहते हैं क्योंकि इसका पूरी तरह निदान नहीं किया जा सकता। दमे को नियंत्रण में जरूर रखा जा सकता है। दमा फेफड़ों के श्वासमार्ग की बीमारी है। यह किसी भी उम्र में हो सकता है। दमा की बीमारी छूत की बीमारी नहीं है। श्वासमार्ग के जरिए हवा फेफड़ों में पहुंचती है। ये श्वास नलियां किसी वृक्ष की शाखाओं जैसी संकरी और संकरी होती जाती हैं। ब्रांकियल अस्थमा (श्वसनी दमा) का अर्थ है कठिनाई और घबराहट के साथ बार-बार उठने वाला सांस का दौरा जो बहुत अधिक कफ और हवा की गति में रूकावट के कारण होता है। यह श्वसन-नलिकाओं के और हवा के छोटे मार्गों के सिकुड़ने का परिणाम है। श्वसनी दमा एलर्जी, श्वास-दूषण, भावात्मक तनाव या प्रबल व्यायाम से भी हो सकता है। आनुवंशिकता ऐसे दौरे प्राय: उत्पन्न कर सकती है। पराग आदि या ठंडी और नम हवा, धुआं और वायु-प्रदूषण, तम्बाकू का धुआं या बाइ-सल्फेट परिरक्षक के कारण अति संवेदन-शीलता ऐसा दौरा प्रेरित कर सकते हैं। दमा के सबसे आम लक्षण हैं छाती में कड़ापन, सांस लेने और उससे अधिक श्वास बाहर निकालने में खांसी की तकलीफ, शोर करती हुई श्वास क्रि या, घरघराहट, न रूकने वाली छींकें, घुटनभरी नाक और वायु-मार्गों में कफ बन जाना। दम घुटता हुआ अनुभव होता है और लेटने में दमे का आक्र मण बदतर होता है। अगर दमा की रोकथाम के उपाय जान लिए जाएं तो दमा के मरीज भी एक सामान्य और चुस्त जिंदगी जी सकते हैं। दमा का दौरा पड़ने के शुरूआती लक्षण इस प्रकार हैं: छाती में जकड़न, खांसी, छाती में खरखराहट। दमा के कुछ दौरे बहुत हल्के होते हैं और कुछ बहुत ही गंभीर किस्म के। दमा के मरीज अक्सर रात में सो नहीं पाते क्योंकि इन्हें जोरदार खांसी आती है या सांस लेने में तकलीफ होती है।अगर दमा की बीमारी नियंत्रण से बाहर हो जाए तो फेफड़ों के श्वास मार्ग के किनारे सूजकर मोटे हो जाते हैं और इस स्थिति में दमा का दौरा कभी भी पड़ सकता है। दमा के हमले के दौरान फेफड़ों में हवा का आना-जाना बहुत ही कम होता है। दमा का मरीज हवा की कमी के कारण खांसता है और खरखराहट की आवाज पैदा होती है। छाती में इससे हलकापन महसूस होता है। दमा का दौरा पड़ने पर फेफड़ों की श्वासनलियों के किनारे सूजकर और मोटे हो जाते हैं, श्वास नलियां सिकुड़ जाती हैं। श्वास नलियों में म्यूक्स (चिपचिपा पदार्थ) बनने लगता है। दमा का दौरा कई कारणों से पड़ सकता है। फर की खाल वाले पशुओं के कारण जैसे कुत्ता और बिल्ली, सिगरेट, के धुएं से, बिस्तर या तकिए में मौजूद धूल से, बिस्तर या तकिए में मौजूद धूल, से, झाडू लगाने या झटकने से उड़ने वाली धूल से, बहुत तीखी गंध या स्प्रे से, वृक्षों और फलों के पराग कण से, मौसम,सर्दी-जुकाम, दौड़ने, खेलने या बहुत मेहनत का काम करने से। एस्प्रीन का सेवन डाक्टर की सलाह के बगैर न करें। तीव्र या तीखी गंध को घर से बाहर रखें, तेज खुशबू वाले साबुन, शैम्पू या सैंट का उपयोग न करें। दमा के मरीज द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले कमरे में कुछ विशेष व्यवस्था करें। गलीचे, बोरी या रोएंदार कपड़े कमरे से हटा दें क्योंकि इनमें धूल और नमी जल्दी बैठती है। नर्म गद्दीदार कुर्सियां, तकिए और गद्दियां अलग कर दें। ये भी बहुत जल्दी धूल पकड़ती हैं। साफ ताजा हवा के लिए खिड़कियां हमेशा खुली रखें। जब दमा की औषधि श्वास द्वारा ली जाती है तो यह श्वास नलिकाओं से होकर फेफड़ों तक पहुंचती है, जहां इसकी जरूरत होती है। दमा के लिए अलग-अलग आकार के इन्हेलर आते हैं, कुछ स्प्रे के रूप में और कुछ पाउडर के रूप में उपलब्ध हैं।

 (स्वास्थ्य दर्पण)
-एस.के. पुरी