कश्मीर में सरकार के लिए चुनौतियां

छह महीने की नज़रबंदी के बाद जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता सईद अली शाह गिलानी एवं अब्दुल गनी बट्ट आदि एवं प्रदेश के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों फारुख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला एवं महबूबा मुफ्ती की नज़रबंदी की अवधि में और वृद्धि करने की घोषणा कर दी गई है। विगत लगभग 6 महीने से ये नेता नज़रबंद हैं। स्वाभाविक तौर पर विपक्षी दलों एवं लोकतंत्रवादी लोगों की ओर से इसकी आलोचना होगी। विगत 5 अगस्त, 2019 को केन्द्र सरकार की ओर से संसद में कानून पारित करवा कर धारा 370 को समाप्त करने एवं जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख को दो भिन्न-भिन्न केन्द्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने की घोषणा की गई थी। उस समय से अब तक चाहे आतंकवाद से संबद्ध इक्का-दुक्का घटनाएं तो घटित होती रही हैं। कहीं न कहीं जैश-ए-मोहम्मद और अन्य आतंकवादी संगठनों से संबद्ध आतंकवादियों के सुरक्षा बलों के साथ मुकाबले भी होते रहते हैं, परन्तु समूचे तौर पर यह प्रभाव बना है कि पिछले कुछ समय में जहां आतंकवाद की घटनाएं काफी सीमा तक कम हुई हैं, वहीं प्रशासन की ओर से ज़िंदगी को सामान्य बनाने का यत्न भी किया जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार पिछले समय में घाटी में आतंकवादी संगठनों में शामिल होने वाले युवाओं की संख्या भी काफी कम हुई है। पत्थरबाज़ी की घटनाएं तो एक प्रकार से बंद ही हो गई हैं। नि:संदेह संचार साधनों पर पाबंदियां लगी हुई हैं, परन्तु अब इन्हें भी धीरे-धीरे हटाया जा रहा है। घाटी में सुरक्षा बलों की संख्या में भी कमी की जा रही है, परन्तु इसी समय में घाटी में व्यवसायिक गतिविधियां भी बहुत कम हुई प्रतीत होती हैं। एक अनुमान के अनुसार इस समय के दौरान व्यापार में 18,000 करोड़ रुपए से भी अधिक का नुक्सान हुआ है। वैसे कश्मीर घाटी में अभी भी तनावपूर्ण चुप्पी व्याप्त है, परन्तु जम्मू और लद्दाख में प्रभाव इससे भिन्न दिखाई देता है। लद्दाख के लोगों की पिछले लम्बे समय से यह मांग थी कि इस क्षेत्र को केन्द्र अपने प्रशासन के अन्तर्गत ले ले, ताकि इसकी प्रत्येक पक्ष से उन्नति हो सके। जम्मू क्षेत्र के लोग चाहे अपने प्रदेश का दर्जा खोने की शिकायत तो कर रहे हैं, परन्तु वे आने वाले ऐसे समय की भी प्रतीक्षा कर रहे हैं, जब ज़िंदगी की गतिविधियां सामान्य हुई दिखाई देंगी। घाटी में आतंकवाद के समय उत्पन्न हुए भय के दृष्टिगत यहां से पलायन कर गए लाखों कश्मीरी पंडित इन नए परिवर्तनों से संतुष्ट दिखाई दे रहे हैं। उन्हें यह उम्मीद बनना शुरू हुई है कि वे पुन: अपनी बिछड़ी हुई धरती पर लौट सकेंगे। आगामी समय में इस समूचे क्षेत्र की मंदी आर्थिकता एवं बेरोज़गार युवाओं को काम पर लगाना सरकार की एक बड़ी चुनौती होगी। पिछले तीन दशकों से हो रही हिंसा के कारण इस क्षेत्र का आधारभूत ढांचा बड़ी सीमा तक बदतर हुआ दिखाई देता है। इसके साथ-साथ जन-जीवन को कैसे पटरी पर लाना है, कश्मीर में देश एवं विदेश के सैलानियों को आने के लिए कैसे उत्साहित करना है, इसके लिए भी माहौल तैयार करना एक बड़ा कार्य है। घाटी में पर्यटकों की आमद लोगों के लिए हमेशा प्रत्येक पक्ष से बड़ी राहत बनते आई है, जिसे पुन: पटरी पर लाना होगा। प्रशासन यह भी यत्न कह रहा है कि घाटी में पंचायत चुनाव भी करवाए जाएं, ताकि लोगों की दिलचस्पी राजनीतिक गतिविधियों में बढ़ सके। पिछले समय में इन चुनावों पर आतंकवादियों का भय छाया होता था, जिसके कारण इन चुनावों के बारे में लोगों में उत्साह दिखाई नहीं देता था। अब आतंकवादियों का बड़ी संख्या में सफाया होने के बाद ऐसा उत्साह पुन: सजीव होने की आशा की जा रही है। सीमा पार से चाहे पाकिस्तान ने कश्मीर के प्रति अपनी नीति में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं किया परन्तु वहां उत्पन्न हुए हालात के कारण यह अनुभव किया जा रहा है कि अंतत: पाकिस्तान को अपनी नीतियों में परिवर्तन लाना ही पड़ेगा। आगामी समय में यदि ऐसा होता है, तो यह दक्षिण एशिया के समूचे क्षेत्र के लिए अत्यधिक लाभकारी सिद्ध हो सकता है, क्योंकि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के भी समय-समय पर ऐसे अनेक बयान आते रहे हैं कि इस समय आवश्यकता लोगों को अत्यधिक गरीबी से बाहर निकालने तथा युवाओं को रोज़गार देने की और इस क्षेत्र की आर्थिकता में दृढ़ता लाने की है। पाकिस्तान की ओर से पहले से निर्मित माहौल में ऐसा होना सम्भव नहीं था, परन्तु अब ऐसा प्रतीत होने लगा है कि अपने अस्तित्व को बचाने के लिए पाकिस्तान को अपनी नीतियों में बड़ा परिवर्तन लाना ही पड़ेगा। हम आगामी समय में जम्मू-कश्मीर के हालात के बेहतर होने की कामना करते हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द