गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी की अनुसूया का चले जाना

पंजाबी साहित्य के महारथी गुरबख्श सिंह प्रीत लड़ी के बेटियों-बेटों में से सबसे छोटी अनुसूया का 84 वर्ष रंगारंग जीवन जीने के बाद 6 सितम्बर को वैंजुएला के मैरिडा शहर में निधन हो गया। रूस की पीप्लस फ्रैंडशिप यूनिवर्सिटी से अंग्रेज़ी की एम.ए. करते हुए उसका वैंजुएला निवासी रायोल जीसस लेपरियां से प्यार हो गया। अंत में1965 में दोनों वैंजुएला की मैरिडा यूनिवर्सिटी में अध्यापक नियुक्त हो गए। स्वयं अंग्रेज़ी पढ़ानी और पति ने फिज़िक्स। उनके घर दो बेटों और एक बेटी ने जन्म लिया। तीन बच्चों का जन्म स्थान भी प्रीत नगर ही है। जब बड़े बेटे का विवाह हुआ तो अनुसूया की बड़ी बहन उमा और भाई हृदयपाल ने उसके विवाह की रस्म यहां भी की। पूरा परिवार हर दूसरे तीसरे साल प्रीत नगर आता रहा है।  गत 5-7 वर्षों से वैंजुएला की अर्थ-व्यवस्था अच्छी न रहने के कारण वह प्रीत नगर नहीं आए परन्तु टैलीफोन पर सम्पर्क होता रहा। अंतिम वार्तालाप 23 मई, 2020 को उमा की मृत्यु के समय हुई थी। उमा अनुसूया की सबसे बड़ी बहन थी। 
वैंजुएला की आर्थिकता का मुख्य आधार वहां का तेल, मूंगे तथा अन्य खनिज पदार्थ हैं। एक दशक पहले अमरीका द्वारा तेल की नाकाबंदी करने के बाद यहां की अर्थ-व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई। परन्तु देश की ओर से आत्म-निर्भर होने की कशमकश के दौरान भी अनुसूया तथा रायोल सुखद जीवन व्यतीत करते रहे। मैरिडा शहर कोलम्बिया सीमा के निकट पड़ता है और अच्छी जलवायु तथा बनस्पति के लिए जाना जाता है। अनुसूया का जीवन साथी रायोल अनुसूया की तरह बड़ा सुंदर था। उसकी सौन्दर्य का राज़ हृदयपाल की पत्नी प्रवीन को तब पता चला, जब 1980 में प्रवीन मैरिडा गई थी और रायोल की मां उसे हवाई अड्डे पर लेने आई थी। वह अत्यंत खूबसूरत महिला थी। प्रवीन ने बताया कि डा. अनुसूया के ससुराल परिवार का रहन-सहन कई बातों में प्रीत नगरियों से मिलता-जुलता है। अनुसूया के मृत शरीर का  उनकी इच्छा के अनुसार दाह संस्कार किया गया और उसकी अस्तियां नज़दीकी नदी में जल-प्रवाह की गईं। वह सदा अपना पूरा नाम लिखती थीं : ‘अनुसूया सिंह’।  याद रहे कि अनुसूया की एक बहन उर्मिला ने जगजीत सिंह आनंद के साथ विवाह करवाया था और दूसरी प्रतिमा ने बंगाली पत्रकार पातरा के साथ। मैंने अनुसूया को देखा तो नहीं परन्तु गूगल पर उसका चेहरा बड़ा मनमोहक तथा आकर्षक है। नयन-नक्श पिता की तरह हैं। अपनी जवानी के समय शिव कुमार बटालवी का उसकी ओर आकर्षित हो जाना स्वभाविक था। उसके द्वारा उच्चशिक्षा प्राप्त करने के लिए रूस चले जाने के बाद शिव ने जो कविता लिखी, इसकी पुष्टि करती है। कविता का एक बंद अंतिका में दर्ज है।  
कर्म सिंह मान की कहानियों का सत्य
इन दिनों में अमरीका निवासी कर्म  सिंह मान का कहानी संग्रह ‘बोसकी दा पजामा’ पढ़ने को मिला। उसके सभी पात्र व्यावहारिक सच को समर्पित हुए हैं। सबसे पहली कहानी ‘दर्द विछोड़े का’ में पैंशन धारक नायक का अपनी पत्नी को ‘यदि मैं पहले मरा तो तुझे पैंशन मिलेगी और यदि तू पहले चली गई तो मुझे टैंशन’ कहना इसका प्रमाण है। वैसे सबसे अच्छी कहानी धुआं है। इसका नायक रघबीर सिंह पुलिस की नौकरी करता खाड़कू लड़कों की गोली का शिकार हो जाता है। पत्नी दलजीत सब कुछ सहन कर लेती है परन्तु जब वह अपने बेटे को प्रतिदिन गुरुद्वारा साहिब जाते देखती है तो उसके मन में यह भ्रम पैदा हो जाता है कि वह स्वयं को बड़ा होकर खाड़कुओं से बदला लेने के लिए तैयार कर रहा है। इसका परिणाम पूरे परिवार के लिए दुखद होगा। कर्म सिंह की अन्य कहानियां साफ और स्पष्ट हैं। चाहे भाषा एवं वाक्य रचना खटकती है, जो कि पंजाब से टूटने के कारण आ गई लगती है। यही हाल कहानी कला का है। प्रमुख कहानी ‘बोसकी का पजामा’ में कहानी का सच बोकसी के कपड़े के साथ नहीं जुड़ा हुआ, बल्कि पजामे की फांटा के साथ बंधा हुआ है। इस कहानी का नाम ‘फांटा वाला पजामा’ अधिक सही लगता था, परन्तु नाम में क्या रखा है? इससे कथा की केवल रवानी बढ़ती है, अर्थ नहीं बदलते। कर्म सिंह मान के अच्छे अर्थों वाली कहानियों का स्वागत है। 

अंतिका
(शिव कुमार बटालवी)
इक कुड़ी जीहदा नाम मोहब्बत 
गुम है... गुम है... गुम है...
साद मुरादी सोहणी फब्बत 
गुम है... गुम है... गुम है...
सूरत उस दी परियां वरगी 
सीरत दी ओह मुरीयम लगदी
हसदी है तां फुल झड़दे ने
तुरदी है तां गज़ल है लगदी।