समय की मांग है ‘ऑनलाइन वोटिंग’

ऑनलाइन वोटिंग की व्यवस्था वर्तमान समय की मांग है।  आधुनिक तकनीक और विकास की वजह से मतदान के दूसरे तरीके भी अब मौजूद हैं। वैसे इसे हैक किये जाने की आशंका से खारिज नहीं किया जा सकता है। वोटरों को सीधे आधारकार्ड से जोड़ कर मतदान की आधुनिक सुविधा प्रणाली विकसित की जा सकती है। आज का दौर आधुनिक है और हर मतदाता के हाथ में एंड्रायड मोबाइल की सुविधा उपलब्ध है। आयोग वोटिंग ऐप लांच कर नई वोटिंग प्रणाली का आ़गाज़ कर सकता है। आधार जैसी सुविधाओं का हम दूसरी सरकारी योजनाओं में उपयोग कर सकते हैं, फिर मतदान के लिए आधार प्रणाली का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जा सकता है। भारत में आज भी लाखों लोग चाह कर भी अपने मत का उपयोग नहीं कर सकते। देश के अधिकांश लोगों के पास आधार कार्ड उपलब्ध है। मतदान प्रणाली को सीधे अंगूठे से अटैच किया जाए। जिस तरह से दूसरी सरकारी योजनाओं में आधार का उपयोग किया जा रहा है, उसी तरह मतदान में भी इसका उपयोग होना चाहिए। इस व्यवस्था के तहत कोई व्यक्ति सीधे अपने अंगूठे का प्रयोग कर मतदान कर सकता है। मोबाइल ऐप के जरिए भी लोग अपने मताधिकार का प्रयोग बगैर मतदान केन्द्र तक पहुंचे कर सकते हैं। इससे चुनाव और सुरक्षा पर होने वाला करोड़ों रुपये का खर्च बचेगा। ईवीएम मशीनों के विवाद और इस्तेमाल के अलावा रख रखाव से निजात मिलेगी। मतदान की तारीख किसी विशेष इलाके के आधार पर निर्धारित करने के बजाय कम से कम 30 दिन तक निर्धारित की जाए। हालांकि यह तकनीक बेहद उलझाव भरी होगी क्योंकि मतदान विधान और लोकसभा के आधार पर किया जाएगा। उसी के आधार पर वोटिंग ऐप और दूसरी सुविधाएं लांच करनी पड़ेंगी। आनलाइन वोटिंग में अनेक तरह की समस्याएं भी आएंगी। इसमें काफी लम्बा वक्त भी लग सकता है। हैकरों की तरफ से इसे हैक किए जाने की कोशिश भी की जा सकती है लेकिन अगर आयोग चाहेगा तो यह कार्य बहुत कठिन नहीं होगा। तकनीकी सुविधाओं का इस्तेमाल कर इसे आसान बनाया जा सकता है। भारतीय निर्वाचन आयोग बेहद विश्वसनीय संस्था है। उसे अपना यह भरोसा कायम रखना होगा। हालांकि विपक्ष के आरोपों में बहुत अधिक गंभीरता नहीं दिखती है लेकिन अगर सवाल उठाया गया है तो उसका समाधान भी होना चाहिए। लोकतंत्र में सभी को अपनी बात रखने का अधिकार है। सत्ता और प्रतिपक्ष का अपना-अपना धर्म है। राजनीति से परे उठ कर सभी संस्थाओं को अपने दायित्वों का अनुपालन करना चाहिए जिससे लोकतंत्र की तंदुरुस्ती कायम रहे। चुनाव आयोग ने ईवीएम मशीन की शुचिता बनाए रखने के लिए वीवीपैट का इस्तेमाल भी शुरू कर दिया है लेकिन आपको याद होगा कि मध्य प्रदेश के भिंड में परीक्षण में इसकी हवा निकल गई थी। एक निर्दलीय उम्मीदवार को जाने वाला मत दूसरी पार्टी को चला गया था जिसके बाद आयोग की खूब किरकिरी हुई थी। वीवीपैट ईवीएम की वह व्यवस्था है जिसमें मतदाता को मतदान करने के बाद पता चल जाएगा कि उसका मत किस दल को गया। मतदान के बाद एक पर्ची निकलेगी और वह बताएगी कि आपका मत आपके चुने हुए उम्मीदवार के पक्ष में गया है या नहीं। हालांकि वह पर्ची मतदाता अपने साथ नहीं ले जा पाएगा लेकिन आयोग के दावों पर भी सवाल उठने लगे हैं। आयोग बार-बार यह कहता रहा है कि ईवीएम में किसी प्रकार का कोई तकनीकी बदलाव नहीं किया जा सकता। आयोग ईवीएम को पूरी तरह सुरक्षित मानता है। आयोग के विचार में ईवीएम चिप आधारित सिस्टम है। इसमें एक बार ही प्रोग्रामिंग की जा सकती है।  अयोग की तरफ से सर्वोच्च न्यायालय में भी हैक का दावा करने वालों को भी चुनौती दी गई थी लेकिन ऐसा दावा करने वाला कोई भी शख्स मशीन को हैक नहीं कर पाया। वहीं 2010 में अमरीका के मिशिगन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने ईवीएम को हैक करने का दावा किया था जिसमें बताया गया था कि एक मशीन के जरिए मोबाइल से कनेक्ट कर इसमें बदलाव किया जा सकता है। बिहार में राज्य विधानसभा के चुनाव होने हैं। चुनाव को लेकर सियासी दलों ने कमर कस ली है। कोरोना संक्र मण काल में गृहमंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री नितीश कुमार वर्चुअल चुनावी रैली कर चुके हैं। राजद और दूसरे दल भी चुनावी गणित को फिट करने में जुट गए हैं लेकिन ईवीएम को लेकर हमेशा से प्रश्न उठते रहते हैं। फिर प्रश्न उठता है कि चुनाव आयोग मताधिकार के दूसरे विकल्पों पर विचार क्यों नहीं करता है? देश में आनलाइन वोटिंग की मांग भी उठ रही है। यह विकल्प कम खर्चीला भी है। आज के दौर में सबकुछ ऑनलाइन हो गया है। फिर ऑनलाइन वोटिंग पर विचार क्यों नहीं किया जा रहा है? सरकार डिजिटलाइजेशन पर अधिक जोर दे रही है। उसे आयोग के सामने यह विकल्प रखना चाहिए।

 (युवराज)