रात में जानवर इस तरह देखते हैं साफ  

दुनिया भर में उल्लू रात में देखने के लिये मशहूर है। वह घनघोर अंधेरी रात में न देख पाए तो अपना शिकार ही न कर सके, ऐसे में तो उसके अस्तित्व पर ही संकट आ जायेगा। उसको यह विशेषता प्रकृति प्रदत्त है। जानवर रात में पूरी दक्षता के साथ शिकार करते हैं। बहुत से जानवरों में इसके लिये बड़ी-बड़ी आंखें होती हैं। यह भी देखा गया है कि रात्रिचर जानवरों में इसीलिये दिन में घूमने वालों से अधिक मात्रा में खास तरह के प्रोटीन रोडोस्पिन पाये जाते हैं। रात के अंधेरे में न सिर्फ  शिकार करना बल्कि शिकार होने से बचने में भी यह क्षमता सहायक होती है। दुश्मनों का शिकार करने, उनसे रक्षा करने का काम सेना का भी है। पर मनुष्यों को अगर रात में देखने की क्षमता हासिल करनी है तो तकनीकी सहायता लेनी होगी, हालांकि मनुष्य के प्रकृति प्रदत्त देखने की क्षमता अद्भुत है, पर इसे उस स्तर पर पहुंचाने के लिये अब कुछ नये उपाय करने होंगे या फिर तकनीक की सहायता लेनी होगी। जानवरों से ही प्रेरणा लेकर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान कई तरह के ऐसे तकनीकी आधारित उपकरण बनाये गये जिससे सैनिक रात में देख सकें और हमले या रक्षा कर सकें। बढ़िया नाइट विजन चश्मे, अंधेरी, बादलों भरी रात में से 200 यार्ड दूर खड़े व्यक्ति को देखा और पहचाना जा सकता है। गॉगल्स, स्कोप्स, कैमरा थरमल इमेजिंग और इमेजिंग टेकनीक जिससे तापमान से बनी छवि के जरिये चीजों को अंधेरे में देखा जा सकता है। आज भी जानवरों की क्षमता से प्रेरित तरह-तरह के नाइट विजन डिवाइस प्रचलित हैं और वे बखूबी काम आ रहे हैं।