भारत अब अमरीका की ज़रूरत बन चुका है 

दुनिया को दिशा देने वाले महाशक्ति देश संयुक्त राज्य अमरीका में नया निजाम आकार ले चुका है। डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बाइडन राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित हो चुके हैं। आज भी दुनिया का हर कोना अमरीकी नीतियों से प्रभावित होता है। साम्यवादी देश चीन कितनी भी तरक्की और ताकत हासिल कर ले लेकिन आज भी उसके राष्ट्रपति अमरीका सरीखी सैन्य क्षमता हासिल करने का भविष्य में लक्ष्य तय करने को विवश हैं। भारत अब अमरीका की ज़रूरत बन चुका है। मामला परस्पर हितों पर अटक गया है। तभी समाजवाद के मूल्यों को पुष्पित-पल्लवित करने वाली अमरीकी पार्टी डेमोक्रेट के बराक ओबामा हाें या धुर राष्ट्रवादी रिपब्लिकन के ट्रम्प, सभी को एशिया में भारत सरीखा कोई साझीदार देश नहीं दिख रहा है। विकास की दौड़ में कछुआ से खरहा बन चुके भारत का दुनिया में आज एक मुकाम है। यहां के बड़े बाज़ार और मध्य वर्ग ने हर देश को लालायित कर रखा है। अमरीका के सामने बढ़ती चीनी चुनौती भारत को विश्वस्त मित्र के रूप में देखने पर उसे विवश करती है। ऐसे में वैश्विक मंच पर भारत को नज़रअंदाज़ करना किसी भी देश तो क्या, महाशक्ति के लिए भी मुमकिन नहीं होगा। नवनिर्वाचित अमरीका राष्ट्रपति बाइडन भारत को भरोसेमंद दोस्त मानने की नीति को ज़रूर आगे बढ़ाएंगे। भारत और अमरीका की दोस्ती बरकरार रहे, इसके लिए ज़रूरी है कि दोनों देश के शीर्ष नेता एक-दूसरे को समझ कर दोस्ती को आगे बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास करें। अमरीका में बदलते निजाम के बीच हर किसी के जेहन में यही सवाल तैर रहा है कि नए राष्ट्रपति बाइडन ट्रम्प की तरह क्या चीन के खिलाफ भारत का खुलकर समर्थन करेंगे? पहली बात तो यह है कि अमरीका में दोनों दल इस बात का पुरज़ोर समर्थन करते हैं कि भारत के साथ उनके देश के आर्थिक व सामरिक संबंध मजबूत होने चाहिएं। ओबामा प्रशासन के दौरान बाइडन के उप-राष्ट्रपति रहते संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए समर्थन की घोषणा की थी। साथ ही उच्च स्तरीय प्रौद्योगिकी देने के लिए प्रमुख रक्षा भागीदार के रूप में नामित किया था। भारत इस समय विवादग्रस्त हिमालयी सीमांत पर चीन की आक्र मणकारी घुसपैठ का सामना कर रहा है। इस सामरिक संघर्ष में संयुक्त राज्य अमरीका ही सबसे भरोसेमंद सामरिक साझीदार नजर आता है। इसका कारण भारत के प्रति अमरीका का कोई स्वाभाविक स्नेह या पारम्परिक भाईचारा नहीं बल्कि दोनों देशों के राष्ट्रहितों का परस्पर जुड़ाव है। अमरीका एशिया में चीन के उदय का अर्थ और भारत के महत्व को अच्छी तरह समझता है। इसलिए बाइडन एशिया में अमरीका की जड़ों को पुनर्जीवित करने अथवा क्वाड  यानी क्वाड्रिलेट्रल सिक्योरिटी डायलॉग में नई ऊर्जा भरने का काम करेंगे। दोनों ही स्थितियों में भारत की भूमिका अहम होगी। बाइडन ने 2001 में अमरीकी सैनेट की विदेश संबंध समिति के अध्यक्ष के रूप में 2013 में भारत का दौरा किया था। इसी समिति के रैंकिंग सदस्य के रूप में 2008 में अमरीकी सैनेट के माध्यम से भारत-अमरीका असैन्य परमाणु सहयोग समझौते को देखने का काम किया। चीन के दक्षिण में चीनी सागर तथा प्रशांत क्षेत्र में नौसैनिक विस्तार को देखते हुए अमरीका को यह लगता रहा है कि चीन विश्व में सबसे ताकतवर शक्ति के रूप में खुद को प्रतिष्ठित करने के अभियान में जुटा है। शी जिनपिंग का मानना है कि आज अमरीका ट्रम्प की अदूरदर्शिता के कारण खस्ताहाल है और फिलहाल पुतिन भी यूक्र ेन, क्र ीमिया तथा मध्यपूर्व में उलझे हैं। यही मौका चीन के एक-धु्रवीय वर्चस्व को स्थापित करने का है। बाइडन और ट्रम्प का झुकाव दक्षिण एशिया नीति को लेकर एक जैसा है। दोनों पाकिस्तान के साथ काम करने वाले अपरिभाषित संबंधों के पक्षधर हैं। साथ ही दोनों दक्षिण एशिया को अमरीका-चीन प्रतिद्वंद्विता के चश्मे से देखते हैं। बीजिंग के साथ पाकिस्तान के करीबी संबंध बताते हैं कि इस्लामाबाद दक्षिण एशिया में अमरीकी लक्ष्यों की मदद करने में अब बाधा के रूप में देखा जाता है। न केवल भारत और पाकिस्तान बल्कि अफगानिस्तान भी एक महत्वपूर्ण कारक होने जा रहा है। भारत के साथ जिन मुद्दों पर अब तक अमरीका द्वारा आपसी सहयोग की शुरुआत की गई थी, उन्हें जारी रखने के साथ-साथ और मज़बूती दी जा सकती है। डिफैंस टेक्नोलॉजी एंड ट्रेड इनिशीएटिव (डीटीटीआई), भारत-अमरीका टू प्लस टू वार्ता तथा चार आधारभूत समझौतों को अमरीकी अर्थ-व्यवस्था व रणनीतिक संबंधों के मद्देनज़र जारी रखा जाएगा। पाकिस्तान और अमरीकी संबंधों को लेकर अमरीकी नीति इस बात पर काफी निर्भर करेगी कि पाकिस्तान किस तरह भारत के खिलाफ चीनी मुखरता का लाभ उठाना चाहता है और पाकिस्तान अपनी धरती से संचालित होने वाले भारत विरोधी आतंकवादी समूहों की गतिविधियों को रोकने के लिए कितना प्रयास करता है। यदि हम अमरीका की पाकिस्तान नीति को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखते हैं, तो पाकिस्तान के साथ बाइडन के संबंध इस बात पर निर्भर होंगे कि अफगानिस्तान में चीजें किस तरह से आगे बढ़ती हैं। जब तक अफगानिस्तान में शांति प्रक्रि या जारी है और पाकिस्तान इसमें लगा हुआ है, तब तक बाइडन इस्लामाबाद के साथ पर्याप्त जुड़ाव सुनिश्चित करना चाहेंगे हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि अफगानिस्तान में अमरीकी पदचिन्हों के धुंधले पड़ने के बाद पाकिस्तान के साथ अमरीकी संबंधों का क्या होगा। ट्रम्प प्रशासन के खर्च में कटौती, लोकलुभावनवाद व राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों का त्याग करते हुए अमरीका वैश्विक मामलों पर बल देगा और उन्हें अपनी प्राथमिकताओं के केंद्र में रखेगा। अमरीका के साथ संबंधों को प्रगाढ़ करने की चीन की चाल (मेजर पावर रिलेशन) भी आकार नहीं लेने जा रही है। जी-2 समझौते का चीन का सपना फिलहाल साकार नहीं होने जा रहा है।

(अदिति)