खुदरा ऋणों से गुलज़ार होते बाज़ार के साथ बढ़ती चुनौतियां

देश में कोरोना के बाद अब जिस तरह से बाजार में तेजी देखी जा रही है और जिस तरह से बैंकों से खुदरा ऋणों के वितरण में तेजी आई है, वह निश्चित रूप से उत्साहजनक है। इससे बाजार में नए जोश का संचार हुआ है तो अर्थ व्यवस्था को भी गति मिली है। इससे देश के आर्थिक क्षेत्र में उत्साह का माहा्रैल बना है। देखा जाए तो खुदरा ऋण क्षेत्र में मुख्यत: वाहन, आवास, उपभोक्ता व पर्सनल लोन सेगमेंट आता है। हालांकि बैंकों के कर्ज वितरण में बढ़ोतरी से भले ही शुभ संकेत माना जा रहा हो पर अनुत्पादक कार्यों के लिए ऋण वितरण में बढ़ोतरी बेहद चिंताजनक भी है। याद करें कुछ साल पहले अमरीका की सारी अर्थ व्यवस्था आवास ऋणों के चलते गंभीर संकट का सामना कर चुकी है। बाजार इसलिए उत्साहित है कि कोरोना के बाद बैंकों से ऋण की मांग बढ़ी है तो आसानी से उपलब्ध कर्जे के चलते बाजार गुलजार हुए हैं। वाहनों की रेकार्ड बिक्री हुई है और बदलाव का ट्रेंड यह देखा गया है कि अब लग्ज़ूरियस या यों कहें कि यूएसवी या एमएसवी गाड़ियां लोगों की पसंद बनती जा रही हैं। छोटी गाड़ियों या यों कहें कि मध्यम वर्ग की बजटीय चौपहिया वाहनों की मांग में कमी आई है। यह तो केवल उदाहरण मात्र है। बैंकों द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी की बावजूद लोग बैंकों से कर्जा लेकर वस्तुओं की खरीद से किसी तरह का परहेज नहीं कर रहे हैं। कहा जाए तो सही मायने में ‘ऋण कृत्वा, घृतम् पीवेत् ’ का युग अभी आया लगता है। बैंकों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार खुदरा कर्जों में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी जा रही है। आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत ने फिक्की और भारतीय बैंक संघ की संयुक्त बैठक को संबोधित करते हुए कहा भी है कि हालिया दिनों में हाई फ्रीक्वेंसी वाले संकेतकों के अनुसार निजी खपत, खासकर शहरी मांग में अच्छी खासी रही है। इससे साफ  संकेत है कि बैंक इसलिए उत्साहित हैं कि कर्ज  में सुधार का रुख आ रहा है पर बैंक इन ऋणों की वसूली को लेकर गंभीर चिंता भी है। 
बैंकाें से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण करें तो साफ  हो जाता है कि सितंबर, 21 की तुलना में सितंबर, 22 में चाहे उपभोक्ता सामान के लिए हो, फिक्स डिपॉजिट पर हो, शेयर बाण्ड पर हो, हाउसिंग सेक्टर में हो, शिक्षा क्षेत्र में हो, आभूषण ऋण हो, केडिट कार्ड बकाया हो या पर्सनल लोन हो, सभी सेक्टरों में ऋण वितरण में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। इसका सीधा सीधा असर बाजार पर तो पड़ता है पर यह भी साफ  हो जाना चाहिए कि कर्ज के बोझ तले दबे लोगों से लोन की ईएमआई प्राप्त करना जोखिमपूर्ण भी हो सकता है। दरअसल आज हर व्यक्ति अच्छी वस्तुएं और लग्ज़ूरियस वस्तुएं खरीदना चाहता हैं। यही कारण है कि अब गावों व छोटे कस्बों में भी एयर कण्डीशनर आम होता जा रहा है भले ही एक घर में एक ही हो। सरकारी कार्यालयों की खिड़कियों में जिस तरह से कूलरों की कतार दिखती थी वह भी अब लगभग समाप्ति की ओर है। कूलरों से अधिक संख्या में एसी दिखाई देने लगे हैं। यही हाल शहराें में घरों में देखने को मिल जाता है। एर्ण्डयड मोबाइल तो चार सदस्याें के परिवार में छह से सात तक मिल जाएं तो कोई बड़ी बात नहीं। यहां तक कि मजदूर तक के पास भी मोबाइल फोन मिल जाएगा। इसमें कोई बुराई भी नहीं  पर चिंता की बात  यह है कि व्यक्ति अब सुविधाभोगी अधिक होता जा रहा है। गरीब व मध्यम वर्ग अब सुविधाओं पर अधिक और खाने पीने पर कम देखने लगा है।  एक बात साफ  हो जानी चाहिए कि उधार या कर्ज कहीं से भी लिया जाएं वह तभी तक ठीक रहता है जब तक उसकी ईएमआई या किश्त का समय पर चुकारा होते रहे। एक किश्त भी चूंकी कि संकट का दौर शुरू हो जाता है। दूसरी यह कि पर्सनल लोन व इस तरह के अन्य ऋणोें की ब्याज व पेनल्टी की दरें भी अधिक होती हैं। एक बार पटरी से उतरते ही मुश्किलें शुरू हो जाती हैं। फिर उसे पटरी पर लाना जोखिम भरा हो जाता है।  सरकारी नौकरी वाला तो फिर भी इसे पटरी पर लाने में सफल हो सकता है पर निजी या असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले के लिए परेशानी अधिक हो जाती है। बैंकों के लिए भी इस तरह के ऋणों की वसूली थोड़ी मुश्किल भारी हो जाती है। 
हालांकि अर्थ व्यवस्था के लिए इसे शुभ संकेत माना जा सकता है। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि रहन सहन का स्तर बेहतर हो। लोगों के पास अपना मकान, अपनी गाड़ी, अपने सुविधाजनक संसाधन हों। बैंकों तक सहज पहुंच और ऋण सुविधा भी अच्छी बात है। अब ऋण लेने वालों और ऋणदाता संस्थाआें दोनों का ही दायित्व हो जाता है कि वे ऋणकी किश्तों की समय पर अदायगी से होने वाले फायदों को समझें। दोनों ही पक्षों का हित इससे जुड़ा है। समय पर ऋण चुकाने से डिफाल्टर नहीं होना पड़ेगा तो बैंकों को भी ऋणी को समय पर किश्त भरने के लिए मोटिवेट करना होगा। ऋण की किश्त की चूक गंभीर संकट का सबब बन सकती है। ऐसे में सतर्कता व जागरूकता की अधिक आवश्यकता है। अमरीका में हाउसिंग लोन की किश्तों का चुकारा नहीं होने से वहां के बैंक गंभीर संकट के दौर से गुजर चुके हैं। अन्य कई देशों में भी हालात ऐसे हो चुके हैं। हमें ऐसे हालात से दो-चार नहीं होना है।