किसानों की ओर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत

छोटे किसान और खेत मजदूर की तंगी वाली आर्थिकता की बात गत लम्बे समय से चलती रही है। पंजाब में ही नहीं देश भर में भी ऐसा ही हाल दिखाई दे रहा है। यही कारण है कि किसानों की आत्महत्याएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। पंजाब के किसान ने देश के अनाज भण्डार को भरने में अपना बड़ा योगदान डाला है। दशकों पूर्व आई हरित क्रान्ति का संस्थापक भी पंजाब ही था। उस समय देश की अनाज की ज़रूरत को पूरा करने में पंजाब ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। चाहे इसके पास देश की धरती का लगभग 2 प्रतिशत रकबा है, परन्तु इसके बावजूद पंजाब ने उत्तम कृषि की कहावत को सत्य कर दिखाया था। इसके बाद अनेक कारणों से पंजाब के छोटे किसान की आर्थिकता गिरावट की ओर जाती गई। धरती छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटी गई। थोड़ी भूमि वालों के लिए यह धंधा किसी पक्ष से भी लाभदायक नहीं रहा। समय की ज़रूरत यह थी कि कृषि से जुड़े या इससे संबंधित अन्य धंधों को अपनाया जाता। मुर्गी पालने तथा दूध का उत्पादन किसी सीमा तक किसान के लिए सहायक हुआ परन्तु यहां कृषि से संबंधित उद्योग के विकसित न होने के कारण कृषि आर्थिकता को ज्यादा प्रोत्साहन नहीं मिल सका। गेहूं, धान और कपास की फसलों के अलावा अन्य फसलें, सब्ज़ियों और फलों आदि के लिए पूरे मंडीकरण के प्रबंध नहीं किए जा सके। बाज़ार में इनके मूल्य के प्रति अनिश्चितता बनी रही। यदि किसी सब्ज़ी या फलों का उत्पादन अधिक हो जाता तो उसके मूल्य कम होने से उत्पादक का बड़ा नुक्सान हो जाता है। आज भी छोटा किसान ऐसी अनिश्चित स्थिति में विचरता नज़र आ रहा है। घरों-परिवारों और सामाजिक खर्चों को पूरा करने के लिए वह आढ़तियों या बैंकों की ओर देखता है। एक बार लिया ऋण यदि वह लौटाने से असमर्थ होता है तो ब्याज़ बढ़ता चला जाता है, जिससे उसकी परेशानियों में और भी वृद्धि हो जाती है। गत कुछ महीनों के दौरान पंजाब में किसानों द्वारा दर्जनों ही आत्महत्याएं किए जाने के समाचार आए हैं। चाहे इन आत्महत्याओं का ढंग-तरीका तो अलग-अलग है, परन्तु यहां तक पहुंचने के लिए किस्मत के मारे किसान की हालत लगभग एक जैसी ही है। इसी महीने एक दिन में पंजाब के पांच किसानों के आत्महत्या करने के समाचार आए। एक किसान ने ऋण से परेशान होकर रेलगाड़ी के नीचे आकर आत्महत्या की, उसकी भूमि डेढ़ एकड़ थी। एक अन्य किसान ने अपने घर में पंखे से फांसी लगाकर आत्महत्या की। उसकी भूमि तीन कनाल के लगभग थी और उस पर ऋण 3 लाख के लगभग था। उसी दिन एक किसान ने कोई ज़हरीली चीज़ पीकर मौत को गले लगाया। वह भी कम ज़मीन का मालिक था। उस पर 3 लाख बैंक सहित 6 लाख  का और ऋण था। एक अन्य किसान ने स्प्रे पीकर आत्महत्या की उसकी 2 एकड़ ज़मीन थी, उस पर स्टेट बैंक का, लैंड मार्गेज़ बैंक का और आढ़तिये का 6 लाख के लगभग ऋण था। रामपुराफूल के निकट एक किसान द्वारा ज़हरीली दवाई पीकर आत्महत्या की गई। उसकी भूमि दो एकड़ थी और उस पर 3 लाख रुपए का ऋण था। बठिंडा ज़िले के एक किसान ने ठेके पर ली भूमि में बीजी फसल से पड़े घाटे के कारण आत्महत्या कर ली। यह सिर्फ एक दिन के समाचार हैं। नित्य-दिन ऐसे समाचार मिलते रहते हैं, जो बेहद परेशान करने वाले और दिल को दहलाने वाले होते हैं। कांग्रेस की नई सरकार बनने से पहले मुख्यमंत्री ने किसानों के पूरे ऋण पर लकीर लगाने की बात बार-बार दोहराई थी। इस दिशा में सरकार ने कुछ कदम उठाये भी थे। अलग-अलग स्थानों पर समारोह करके किसानों को ऋणों में राहत देने के लिए चैक भी दिए गए परन्तु सरकार की ऐसी कवायद भी गम्भीर स्थिति को सुधार सकने में असफल रही प्रतीत होती है। गत समय के दौरान केन्द्र सरकार ने महाराष्ट्र के 14 से अधिक किसान आत्महत्या करने वाले ज़िलों को बड़ा आर्थिक पैकेज देने का ऐलान किया था। पंजाब के मुख्यमंत्री ने भी केन्द्र को पंजाब के ऋण में फंसे किसानों को राहत देने की अपील की है। ऐसा करके एक तरह से पंजाब सरकार ने अपना पल्ला झाड़ लिया प्रतीत होता है, क्योंकि आज हर कोई जानता है कि सरकार आर्थिक संकट से गुजर रही है। इस स्थिति को सुधारने के लिए प्रयास भी कर रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी बार-बार यह वायदा किया है कि आगामी वर्षों में किसान की आमदनी दोगुनी कर दी जाएगी। नि:संदेह आज कृषि आर्थिकता को प्रोत्साहन देने के लिए बड़े क्रांतिकारी कदमों की ज़रूरत है, जिनकी ओर तत्काल बढ़ना समय की बड़ी ज़रूरत है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द