रिकार्ड उत्पादन के बावजूद उत्पादकता का अन्तर कम करने की ज़रूरत

इस वर्ष गेहूं कुछ देरी से पकेगी। आम खेतों में खड़ी गेहूं की कटाई इसी सप्ताह कुछ दिनों में शुरू हो जाएगी। गत कुछ वर्षों में कटाई शीघ्र शुरू होती रही है। इस समय तो पूरे यौवन पर होती थी। ददहेड़े की उम्र रसीदा ‘सानो’ बाज़ीगर को देरी से कटाई होने ने वैसाखी की खुशियों की याद ला दी। जब पुराने समय में हरित क्रान्ति के समय या उससे पहले वैसाखी को ही गेहूं की कटाई होती थी और ‘सानो’ इस समय खुशी से फूली नहीं समाती थी कि घर दाने आयेंगे। उस समय कटाई हाथों से होती थी और सानो तब से ही गेहूं काटती आ रही है। चाहे अब गेहूं कम्बाइनों से समेटी जाती है परन्तु सानो और उसके संबंधियों को आज भी हाथों से काटने पर दिहाड़ी मिलती है, क्योंकि कुछ किसान तूड़ी की चाहत में आज भी गेहूं हाथों से कटवाते हैं। कटाई देरी से होने के बावजूद पंजाब के कृषि और किसान कल्याण विभाग के डायरैक्टर सुतन्त्र कुमार ऐरी के अनुसार इस वर्ष गेहूं का उत्पादन एक रिकार्ड होगा। विभाग द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार उत्पादन के 182 लाख टन तक जाने की सम्भावना है, जबकि गत वर्ष का उत्पादन 178.50 लाख टन था और अब तक का रिकार्ड 180 लाख टन का है। उत्पादन में यह वृद्धि गेहूं की काश्त निचले रकबे में कम होने के बावजूद होगी। इस वर्ष गेहूं की काश्त 35.02 लाख हैक्टेयर रकबे पर की गई है, जबकि गत वर्ष यह रकबा 35.12 लाख हैक्टेयर था। इस तरह रकबे में दस हज़ार हैक्टेयर की कमी आई है। डायरैक्टर ऐरी के अनुसार मौसम का अनुकूल रहना, ठण्ड का लम्बे समय तक पड़ना और अधिक झाड़ देने वाली एच.डी.-3086 और एच.डी.-2967 जैसी किस्मों की काश्त निचला विशाल रकबा होने के परिणामस्वरूप है। इस वर्ष गेहूं की फसल पर बीमारियों का हमला भी अपेक्षित कम हुआ है और फसल पीली कुंगी के हमले से बची रही है। पंजाब में ही रिकार्ड उत्पादन नहीं, आई.सी.ए.आर.-भारतीय गेहूं और जौ के खोज संस्थान के निर्देशक डा. ज्ञान इन्द्र प्रताप सिंह कहते हैं कि भारत में ही इस वर्ष गेहूं का रिकार्ड उत्पादन होने की सम्भावना है। लगाए गए एक अनुमान के अनुसार उत्पादन 100.05 मिलियन टन से लेकर 102 मिलियन टन तक होने की उम्मीद है। गत वर्ष का रिकार्ड 99.7 मिलियन टन का था। उत्पादकता 3371 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर थी, जबकि पंजाब की औसत उत्पादकता 5090 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर थी। जड़िया फार्म धर्मगढ़ (अमलोह), यंग फार्म रखड़ा, स्टेट अवार्डी कालेका फार्म  बिशनपुर छन्ना (पटियाला) और क्षेत्र के कुछ अन्य गांवों की फसल से अनुमान लगाकर डा. ज्ञान इन्द्र प्रताप सिंह कहते हैं कि पंजाब के गांवों में अधिक झाड़ देने वाली विकसित किस्मों के लह-लहाते खेत देखकर उत्पादन का भारत सरकार का अनुमान और ऊपर हो जाता है। उनके अनुसार उत्तरी भारत में विशेषकर पंजाब, हरियाणा राज्यों में तापमान का कम रहना, ठण्डा मौसम देर तक चलना, किसानों को नई तकनीक का तेज़ी से हो रहे ज्ञान और गेहूं की किस्मों में हो रही विभिन्नता आदि भरपूर फसल निकालने का विश्वास पैदा करती है। डा. ज्ञान इन्द्र प्रताप सिंह कहते हैं कि पंजाब के अलावा उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड और बिहार गेहूं पैदा करने वाले प्रमुख राज्य हैं। हरियाणा की उत्पादकता 4412 किलोग्राम दूसरे स्थान पर है। फिर यू.पी. की 3269 किलोग्राम जबकि भारत की औसत उत्पादकता 3371 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर है। गेहूं रबी की मुख्य फसल है। इसकी काश्त निचला 30 मिलियन हैक्टेयर रकबा है। डा. ज्ञान इन्द्र प्रताप सिंह के अनुसार गेहूं की काश्त निचला पांच मिलियन हैक्टेयर रकबा कम करने की ज़रूरत है। चाहे सरकार इस संबंध में फसली विभिन्नता के लिए योजनाबंदी में गत वर्षों के दौरान प्रयास करती रही है, परन्तु सफलता नहीं मिली। वर्ष 2016-17 में 30.8 मिलियन हैक्टेयर रकबा गेहूं की काश्त अधीन था और गत वर्ष 29.6 मिलियन हैक्टेयर था। इस तरह रकबा 30 मिलियन हैक्टेयर के आसपास घूमता रहा है। उन्होंने कहा कि लगता है कि चुनावों के बाद आने वाली सरकार एम.एस.पी. की सुविधा खत्म कर देगी। यह सुविधा मात्र 30 प्रतिशत को लाभ पहुंचा रही है।सरकार द्वारा ऐसा किए जाने के बाद (यदि एम.एस.पी. खत्म कर दी जाती है) गेहूं, धान की काश्त निचला रकबा कम होना ज़रूरी है। इसके बाद पंजाब, हरियाणा के किसानों के लिए विशेषकर जो गेहूं और धान के मंडीकरण की समस्या पैदा हो जाएगी, उसका हल किसानों के खातों में सीधी सहायता के तौर पर धनराशि का ट्रांसफर करना होगा। उन्होंने कहा कि एम.एस.पी. का लाभ पंजाब, हरियाणा के मुकाबले यू.पी., बिहार तथा अन्य राज्यों में लगभग नामात्र ही रहा है। बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और मध्यप्रदेश में गरीबी अधिक होने के कारण कम से कम आय सुनिश्चित बनाने की योजना के अधीन गरीबी स्तर की 20 प्रतिशत जनसंख्या को खासतौर पर फायदा पहुंचने की सम्भावना है। गत दस वर्षों में 29 करोड़ व्यक्ति गरीबी की सीमा से निकल गए। फिर भी बिहार जैसे राज्य में बहुमत अभी भी गरीबी की दलदल में फंसा हुआ है। उत्तर प्रदेश में तो इस वर्ष राज्य के उत्पादकों को गेहूं की एम.एस.पी. पर 50 रुपए प्रति क्विंटल का बोनस देने का भी ऐलान किया हुआ है। इसी तरह मध्यप्रदेश की सरकार ने भी ऐसा बोनस देना स्वीकार किया है। उन्होंने कहा कि गेहूं के क्षेत्र में खोज तो तेज़ी से की जा रही है परन्तु वह किसानों तक नहीं पहुंच रही। इसी कारण छोटे और मध्यम किसान जो आन्तरिक गांवों में रहते हैं, कम उत्पादकता प्राप्त कर रहे हैं। कृषि प्रसार सेवा ढांचे की नज़रसानी करके इसको नया रूप देने की ज़रूरत है। इससे जब नया ज्ञान और तकनीक इससे वंचित रहे किसानों तक पहुंचेंगी, उत्पादकता के अन्तर भी खत्म हो जायेंगे।

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