आम आदमी पार्टी ने चुनाव हारने का बनाया नया रिकार्ड

आम आदमी पार्टी चुनावों में हार के ऐसे कई रिकॉर्ड बना चुकी है जिन्हें शायद ही कोई पार्टी तोड़ पाएगी। अपने पहले ही लोकसभा चुनाव में यानी 2014 में पार्टी ने चार सौ से ज्यादा सीटों पर ज़मानत जब्त कराने का रिकॉर्ड बनाया था, लेकिन सबसे मज़ेदार बात यह है कि राष्ट्रीय पार्टी बनने के बाद चार राज्यों के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने जैसा प्रदर्शन किया है, वह भी रिकॉर्ड बनाने वाला है। किसी राष्ट्रीय पार्टी की ऐसी दुर्दशा इससे पहले शायद ही किसी चुनाव में हुई होगी। 
शायद आम आदमी पार्टी ने समझ लिया है कि वह राष्ट्रीय पार्टी हो गई है तो यह संवैधानिक बाध्यता है कि वह हर जगह चुनाव लड़े। इसीलिए उसने बड़ी संख्या में उम्मीदवार उतारे और हार का रिकॉर्ड बनाया। छत्तीसगढ़ में उसे महज 0.93 फीसदी वोट मिले, जो कि वहां नोटा को मिले 1.26 फीसदी और बसपा को मिले 2.05 फीसदी वोट से कम है। इसी तरह मध्य प्रदेश में भी आम आदमी पार्टी ने बड़ी ताकत झोंकी थी, लेकिन उसे कुल 0.54 फीसदी वोट मिले, जो कि नोटा को मिले 0.98 फीसदी वोट से कम है। मध्य प्रदेश में बसपा को आम आदमी पार्टी से करीब छह गुना ज्यादा 3.40 फीसदी वोट मिले। राजस्थान में आम आदमी पार्टी को 0.38 फीसदी वोट मिले जबकि नोटा को 0.96 और बसपा को 1.82 फीसदी वोट मिले। इतनी दुर्गति के बाद भी आम आदमी पार्टी का दावा है कि वह उत्तर भारत की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है।
 तीन क्षेत्रीय नेताओं का सूर्यास्त! 
भाजपा में माना जा रहा है कि चुनाव वाले तीन राज्यों में पार्टी के पुराने क्षत्रपों का सूर्य अस्त हो गया है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में 2003 में तीन क्षत्रप उभरे थे। उसके थोड़े दिन पहले ही गुजरात में एक मज़बूत क्षत्रप के तौर पर नरेंद्र मोदी स्थापित हुए थे। उसके थोड़े दिन बाद मध्य प्रदेश में उमा भारती व शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान में वसुंधरा राजे और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह नेता बने थे। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इन राज्यों का पहला चुनाव 2018 में हुआ था और भाजपा इन क्षत्रपों के नाम और काम पर चुनाव लड़ी थी और हार गई थी। इसीलिए इस बार तीनों क्षत्रपों को किनारे करके नरेंद्र मोदी के नाम पर पार्टी ने चुनाव लड़ा और ऐतिहासिक जीत हासिल की। इसीलिए माना जा रहा है कि राज्यों में अब पुराने क्षत्रपों को किनारे कर दिया जाएगा। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि पांच महीने बाद लोकसभा के चुनाव है, इसलिए मोदी फिलहाल कोई जोखिम नहीं लेना चाहेंगे और लोकसभा चुनाव के बाद ही बदलाव करेंगे। पक्के तौर पर कोई नहीं बता सकता है कि मोदी के मन में क्या है और वह किसे मुख्यमंत्री बनाएंगे लेकिन इतना तय हो गया कि जीत उनकी है, उनके नाम की है, उनके प्रचार की है। क्षत्रपों की भूमिका बहुत सीमित रही है। संभव था कि पार्टी उनके नाम पर चुनाव लड़ती तो ऐसे नतीजे नहीं आते। इसीलिए मोदी ने अपनी साख दांव पर लगाई। इसलिए वह जिसे चाहेंगे उसे मुख्यमंत्री बनाएंगे। कोई उनके फैसले पर सवाल नहीं उठा सकता।
 एक और मुख्यमंत्री पूर्व कांग्रेसी 
पूर्वोत्तर में कांग्रेस भले ही साफ  हो गई हो लेकिन इसके बावजूद समूचा पूर्वोत्तर कांग्रेस के रंग में रंगता जा रहा है। एक-एक करके सभी राज्यों में कांग्रेस के पूर्व नेता मुख्यमंत्री बनते जा रहे हैं। सबसे ताज़ा नाम मिज़ोरम के नए मुख्यमंत्री लालदुहोमा का है। उनकी पार्टी ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट ने राज्य की 40 में से 27 सीटें जीत कर दो-तिहाई बहुमत हासिल किया है। आईपीएस रहे लालदुहोमा राजनीति में आने से पहले इंदिरा गांधी की सुरक्षा के प्रमुख थे। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में वह पुलिस की नौकरी छोड़ कर कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़े और जीत गए। हालांकि चार साल बाद ही उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और स्वतंत्र रूप से राजनीति करने लगे। 
2019 में उन्होंने अपनी पार्टी बनाई और अब मुख्यमंत्री बन गए हैं। उनसे पहले त्रिपुरा में मानिक साहा मुख्यमंत्री बने। वह भी 2015 में कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में गए थे। पूर्वोत्तर के सबसे बड़े राज्य असम में भी कांग्रेस से भाजपा में गए हिमंत बिस्वा सरमा मुख्यमंत्री हैं। इसी तरह अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू भाजपा के मुख्यमंत्री है, जो पहले कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह भी कांग्रेस में थे और 2016 में भाजपा में शामिल हुए थे। नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो भी कांग्रेस के एस.सी. जमीर की सरकार मे मंत्री रहे थे। उन्होंने कोई दो दशक पहले कांग्रेस छोड़ी थी। अब समूचे पूर्वोत्तर में सिक्किम एकमात्र राज्य है, जहां के मुख्यमंत्री पहले कांग्रेस में नहीं रहे हैं। 
भाजपा में सांसदों की छंटनी शुरू 
पिछले कई महीनों से ऐसी खबरें आ रही थीं कि भाजपा बड़ी संख्या में सांसदों के टिकट काटेगी। अब उस दिशा में छंटनी का काम चुनावी राज्यों से शुरू हो गया है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा का चुनाव जीतने वाले 12 सांसदों का इस्तीफा हो गया है। इस्तीफा देने वालों में तीन केंद्रीय मंत्री भी शामिल हैं। भाजपा ने तेलंगाना सहित चार राज्यों में कुल 21 सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ाया था, जिनमें से 12 जीते और नौ हार गए। इस तरह फिलहाल इन चार राज्यों में मोटे तौर पर 21 सांसदों के टिकट कटना तय हो गया है। इनके अलावा और भी सांसदों के टिकट कट सकते हैं। 
भाजपा के जानकार सूत्रों कहना है कि परफारमेंस और उम्र के साथ-साथ यह भी देखा जा रहा है कि कोई नेता कितनी बार से लगातार जीत रहा है। लगातार कई बार से जीत रहे उम्रदराज सांसदों के टिकट भी काटे जा सकते हैं। अगले साल लोकसभा के साथ ही ओडिशा विधानसभा का चुनाव होना है। वहां भी आठ में से कुछ सांसदों को विधानसभा का चुनाव लड़ाया जा सकता है। उसके बाद तीन राज्यों—महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के विधानसभा चुनाव हैं। इन तीन राज्यों में भी कुछ सांसदों को विधानसभा का चुनाव लड़ाया जाएगा। एंटी इन्कम्बैंसी को कम करने और युवाओं को आगे बढ़ाने के नाम पर भाजपा बड़ी संख्या में सांसदों के टिकट काटेगी। 
 कांग्रेस का दूसरा मुख्यमंत्री भी बाहरी 
एक तरफ  जहां समूचे पूर्वोत्तर में कांग्रेस के पूर्व नेता मुख्यमंत्री बन रहे हैं तो दूसरी ओर दक्षिण भारत मे कांग्रेस को जो दूसरा मुख्यमंत्री बनाने का मौका मिला है, वह भी दूसरी पार्टी से आया नेता ही है। सात महीने पहले कांग्रेस ने कर्नाटक में सरकार बनाई थी। वहां सिद्धरमैया मुख्यमंत्री है। अब तेलंगाना में भी कांग्रेस की सरकार बन गई है। कर्नाटक में सिद्धरमैया दूसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं। वह पहले एच.डी. देवगौड़ा की पार्टी जनता दल सेक्यूलर में थे और 2005 में कांग्रेस में शामिल हुए थे। कांग्रेस ने 2013 में उन्हें मुख्यमंत्री बनाया था। अभी तेलंगाना में कांग्रेस ने रेवंत रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाया है। वह कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं और चुनाव में भी वह अघोषित रूप से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे। वह कामारेड्डी सीट पर मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के खिलाफ भी लड़े थे। हालांकि उस सीट पर चंद्रशेखर राव और रेवंत रेड्डी दोनों ही हार गए। हालांकि रेवंत रेड्डी अपनी पारम्परिक कोडंगल सीट से जीत गए। रेवंत रेड्डी ने अपना राजनीतिक सफर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से शुरू किया था। वह पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े रहे। बाद में वह तेलुगू देशम पार्टी में चले गए और महज छह साल पहले 2017 में कांग्रेस में शामिल हुए। सिर्फ छह साल के भीतर वह सांसद हुए, प्रदेश अध्यक्ष हुए और अब मुख्यमंत्री बन गए हैं।