अन्न की पवित्रता

बात उन दिनों की है जब फर्रूखाबाद में कुछ विशेष जाति के लोग रहते थे। ये सभी काम-धंधे कर अपना जीवन गुजर-बसर करते थे,  इनके अपने घर -द्वार होते थे । इनके हाथ का बना भोजन ब्राह्मण और वैश्य नहीं करते थे । एक दिन इन्हीं में से एक साधु थाली में कड़ी -भात परोसकर बड़ी श्रद्धा से स्वामी दयानंद सरस्वती के लिए लाया । स्वामी जी ने उसके भोजन को बड़ी प्रसन्नता से ग्रहण किया । यह देखकर ब्राह्मणों को बड़ा आश्चर्य हुआ और वे काफी कड़े स्वर में स्वामी जी से बोले -‘स्वामी जी आप भ्रष्ट हो गये । ’स्वामी जी ने हंसते हुए सहज भाव से कहा-‘अन्न दो प्रकार से दूषित होते हैं -दूसरों को कष्ट देकर प्राप्त करना या कोई मलिन वस्तु उसमें पड़ जाए। इन साधुओं का अन्न तो काफी कठिन परिश्रम से प्राप्त पैसों से प्राप्त किया गया है, इसलिए यह अन्न पवित्र है।’

 -पुष्पेश कुमार पुष्प