सुरक्षा कवच की तरह होते हैं पिता

डैडी, पिता, फादर, अब्बू जान और पापा न जाने हम कितने नामों से बुलाते हैं उस शख्सियत को स्पष्ट करने के लिए जिनकी हमारे जीवन में बहुत अहमियत है। पिता जो अपने बच्चों की खातिर सब कुछ कुर्बान कर देता है, ताकि उसके जिगर के टुकड़े, उसके बच्चे बिना किसी परेशानी के रह सकें। पिता का घर पर उपस्थित होना बच्चों के लिए पूरा दिन पिकनिक माने जैसा जाता है। तो भी वह (पिता) अपनी थकान को भूलकर बच्चों की तरह जीने लगता है। पिता एक सुरक्षा कवच की तरह अपने बच्चों की रक्षा करता है। चाहे बच्चा मुंह से कुछ न बोले, लेकिन दिल की बात को समझता है पिता। पिता यानि एक बाप अपनी सारी मेहनत लगाकर हर सम्भव से सम्भव कोशिश करके सुख उपलब्ध करवाता है अपने परिवार को। एक सन्तान के उसके पिता ही सबसे बड़े आदर्श होते हैं, जिनके पद-चिन्हों पर हर सन्तान चलना चाहती है। एक सन्तान की सफलता और उपलब्धि से सबसे ज्यादा खुशी उसके पिता को ही होती है। एक पिता सुख की सांस तब लेता है, जब उसकी गुड़िया ससुराल से खुशी-खुशी मायके आती है। पिता के होने पर कभी भी खुशी ढूंढने की ज़रूरत नहीं पड़ती, क्योंकि एक पिता अपने बच्चों को हर कदम पर खुश रखता है। इतनी अद्भुत, अनोखी, प्यारी शख्सियत को देखते हुए यही याद आता है कि ‘चाहे मंज़िल दूर है, सफर बहुत लम्बा है, छोटी-सी ज़िंदगी की फिक्र बहुत है, मार डालती ये दुनिया कब की हमें लेकिन ‘पापा’ के प्यार में असर बहुत है।’
ऐसे हुई फादर्स-डे की शुरुआत
फादर्स डे की शुरुआत या यूं कहें कि पहला फादर्स-डे 5 जुलाई, 1908 को फेयरमाऊंट वेस्ट की एक चर्च में मनाया गया। यह ग्रेस गोलगन द्वारा अपने पिता को समर्पित था, जिन्होंने अपने पिता को एक हादसे में खो दिया था। इस हादसे में 361 लोग मारे गए जिसमें 250 पिता थे, जोकि अपने पीछे हज़ारों बच्चों को रोते-बिलखते हुए छोड़ गए। ग्रेस ने चर्च के पादरी को कहा कि उन सब पिताओं की कुर्बानी को यादगार बनाने के लिए यह दिन उन्हें समर्पित होना चाहिए। पर यह विचार कई और उलझनों व कारणों की वजह से पूरा न हो सका। फिर 1910 में वाशिंगटन के एक शहर सोपकेन में सोनारा समाट डोड ने अपने पिता के सम्मान में पहला फादर्स डे 19 जून 1910 में मनाया। क्योंकि उसके पिता ने अकेले 6 बच्चों की परवरिश की थी, जिसके दौरान आई मुश्किलों को डोड ने खुद महसूस भी किया था।  डोड को यह विचार 1909 में चर्च में मनाए गए मदर्स डे के बाद आया कि पिता को भी मां जैसा सम्मान मिलना चाहिए। क्योंकि वो भी हमारे लिए उतना ही त्याग व समर्पण करते हैं। उसके पिता का जन्मदिन 5 जून को था। उस वक्त डोड के पास पर्याप्त वक्त व पैसे नहीं थे, इसलिए वह भी अपने विचार को उस दिन आकार नहीं दे पाई। इसलिए जून के तीसरे रविवार को इसे मनाया गया। बहुत से देशों ने इस विचार का स्वागत किया व जून के तीसरे रविवार को फादर्स-डे मनाना तय किया गया। फादर्स-डे पर सरकारी छुट्टी को लेकर कांग्रेस ने 1913 में एक बिल पेश किया। पर कई उतार-चढ़ाव के बाद 1957 में फादर्स को मदर्स जितनी अहमियत न देने पर चर्च के फादर द्वारा कांग्रेस पर सवाल उठाए गए कि हमने चालीस सालों तक मां-बाप में से पिता को हमेशा कम समझा है। फिर 1966 में राष्ट्रपति जोसन ने पहला सरकारी दस्तावेज जारी कर जून के तीसरे रविवार को फादर्स-डे घोषित किया।  फिर छह: सालों के बाद इस दिन यानि जून के तीसरे रविवार को राष्ट्रीय छुट्टी घोषित की गई, जिस पर राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने 1972 में हस्ताक्षर किए। अलग-अलग देशों में इसे भिन्न-भिन्न तारीखों पर मनाया जाने लगा। जैसे जून के तीसरे रविवार अर्जंटीना, कनाडा, चाइना, डेनमार्क, हांगकांग, हंगरी, इंडिया, आयरलैंड, जापान, मकाओ, मलेशिया, मैक्सिको में फादर्स-डे मनाया जाता है। इसी तरह हेती में जून के आखिरी रविवार, इंडोनेशिया में 12 नवम्बर,  केन्या व कोरिया में आठ मई, नेपाल में अगस्त, आस्ट्रेलिया में सितम्बर के पहले रविवार, बेलजियम में जून के दूसरे रविवार, ब्राज़ील में अगस्त के दूसरे रविवार, फिनलैंड में नवम्बर के दूसरे रविवार, इटली 19 मार्च, डेनमार्क में जून को मनाया जाता है।  पहले के जमाने में जहां एक ही छत के नीचे एक पिता की सभी सन्तानें रहती थीं और परिवार के सभी सदस्य मिल-जुल कर रहते थे, लेकिन आज के समय में लोगों की सोच बदलती जा रही है। अब समाज में इतना बदलाव आ गया है कि लोग अपने ही बीवी बच्चों के साथ रहना पसंद करते हैं। जीवन भर अपनी खुशियों को त्यागकर अपने बच्चों की देखभाल करने वाले मां-बाप को आज के बच्चे अपने परिवार से अलग कर देते हैं या उन्हें वृद्धाश्रम छोड़ देते हैं और या फिर दर-दर की ठोकरें खाने के लिए घर से निकाल देते हैं। आज पिता के इस खोये हुए सम्मान को दिलाने के लिए पिता दिवस मनाने की आवश्यकता महसूस होने लगी है।