प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ  सबल मुहिम की ज़रूरत

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से सिंगलयूज़ यानि एक बार प्रयोग में लाये जाने वाले प्लास्टिक का उपयोग बंद करने का आहवान किये जाने के बाद से देश में उसके खिलाफ   माहौल बनना शुरू हुआ है।  सिंगलयूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद करने के लिये मोदी सरकार ने 2 अक्तूबर से देशव्यापी जन-आन्दोलन शुरू करने की घोषणा कर दी है। आंकड़ों के अनुसार आज भारत में औसत व्यक्ति द्वारा प्रतिवर्ष 11 किलो प्लास्टिक की वस्तुओं का प्रयोग किया जा रहा है। हालांकि विश्व में यह 28 किलो प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष है। सिंगल यूज़ प्लास्टिक से क्या अभिप्राय है और अचानक इसके इस्तेमाल को रोकने की ज़रूरत सरकार को क्यों महसूस हुई, इसका जवाब है अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक भारत में 51 माइक्रोन से अधिक मानक वाले प्लास्टिक कैरी बैग के इस्तेमाल की छूट है, क्योंकि यह बायोडिग्रेडेबिल है। 
हालांकि भारत सरकार ने सिंगलयूज़ प्लास्टिक के बारे में अभी तक मानक तय नहीं किये हैं, लेकिन इतना तय है कि रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल हो रहा प्लास्टिक पर्यावरण के लिये अत्यधिक घातक है, इसलिये सरकार ने इन्हें रोकने की मुहिम, माकूल समय पर शुरु की है। 
दूसरा सवाल यह है कि सिंगल यूज़ प्लास्टिक की श्रेणी में थर्माकोल और पानी की बोतल के अलावा कौन-कौन से उत्पाद आते हैं। इसका जवाब है अभी अधिकारिक तौर पर यह तय नहीं किया गया है कि कौन से प्लास्टिक उत्पाद एकल प्रयोग के दायरे में हैं। फौरी तौर पर हम यही मान सकते हैं कि प्लास्टिक से बनी वे सभी वस्तुएं जिन्हें हम एक ही बार इस्तेमाल कर पाते हैं, सिंगलयूज़ प्लास्टिक हैं और इनका माइक्रोन स्तर 51 से बहुत अधिक होने के कारण ये पर्यावरण सहित समस्त जीव जगत की सेहत के लिये बेहद घातक हैं।  मेडिकल क्षेत्र में खासकर मरीज़ों को चढ़ाई जाने वाली दवा की बोतल, दवाओं के पैक और अन्य सर्जिकल उत्पाद सिंगल यूज़ प्लास्टिक के ही बने होते हैं। इस पर रोक लगाने के बाद चिकित्सा क्षेत्र पर क्या बुरा असर नहीं पड़ेगा? चिकित्सा क्षेत्र के लिये इसके क्या विकल्प हो सकते हैं।  चिकित्सा क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक का लगभग पूरी तरह से शोधन होता है। इसलिये वहां उतनी चिंता की बात नहीं है, जितनी अन्य क्षेत्रों से निकलने वाले प्लास्टिक से है। सरकार ने अब तक सिंगल यूज़ प्लास्टिक के विकल्प नहीं बताये हैं, खासकर पानी की बोतल का। क्या ऐसे में 2 अक्तूबर से सरकार जो जन-आन्दोलन शुरू कर रही है, वह कारगर तौर पर कामयाब हो पायेगा। एकल प्रयोग और बहु उपयोग का फर्क अभी तय नहीं हो पाया है। केन्द्र सरकार को इसे स्पष्ट करना है। जहां तक विकल्प का सवाल है, तो तकनीकी विशेषज्ञों से सरकार ने जल्द विकल्प बताने को कहा है। उद्योग जगत को भी अपनी शोध विकास इकाईयों के माध्यम से इस दिशा में तत्काल कारगर पहल शुरू करनी चाहिये। जन-आन्दोलन की मुहिम इस दिशा में मददगार साबित होगी। सरकार की पहल स्वागत योग्य है। सिंगल यूज़ प्लास्टिक का बहुत बड़ा बाज़ार है। ऐसे में पहले से ही कठिन दौर से गुज़र रही अर्थव्यवस्था पर सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर रोक से क्या आर्थिक संकट और अधिक नहीं बढ़ जाएगा? क्या अर्थव्यवस्था, समूची जैविक व्यवस्था से ज्यादा जरूरी है? आखिर अर्थव्यवस्था है किसके लिये,  इस चिंता को छोड़िए विकल्प मिल जायेंगे। पहले प्लास्टिक का संग्रहण बंद कर इसके पुन:प्रयोग की व्यवस्था बनाने पर जोर देने की जरूरत है। पहले कागज का लिफाफा चलता था और झोला चलता था, जूट का बैग चलता था। पहले मरीजों को चढ़ाई जाने वाली बोतलें कांच की होती थी, खाने वाली दवाएं प्लास्टिक की बेहद पतली छिल्ली युक्त कागज के पैक में होती थी और सिरींज सहित तमाम सर्जिकल सामान सिंगल यूज़ प्लास्टिक का नहीं था क्योंकि स्टरलाइज करके इसका बार-बार उपयोग होता था। यह सदियों पुरानी बात नहीं है, बल्कि महज कुछ साल पहले तक यह प्रक्रिया अपनायी जा रही थी। ये सब फिर से इस्तेमाल में आ जायेंगे। इसमें कोई परेशानी की बात नहीं है। प्लास्टिक के संग्रहण में सिंगल यूज़ प्लास्टिक की सबसे बड़ी हिस्सेदारी है और प्लास्टिक कचरे के लगातार ऊंचे होते ये पहाड़ समूची दुनिया के लिये सबसे बड़ी चुनौती हैं। इसलिये प्लास्टिक कचरे पर नियंत्रण करना ही एकमात्र विकल्प है।केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार देश में प्रतिवर्ष करीब 9,205 टन प्लास्टिक कचरा एकत्र करके रिसाइकिल यानी पुनर्चक्रित किया जाता है। यह कुल प्लास्टिक कचरे का लगभग 60 प्रतिशत है। जबकि, करीब 6,137 टन प्लास्टिक कचरे का एकत्रीकरण ही नहीं हो पाता है। भारतीय वैज्ञानिकों ने पिछले कुछ वर्षों में ऐसी हरित और पर्यावरण हितैषी प्रौद्योगिकीयों का विकास है, जो प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या को कम करने में मददगार साबित हो रही हैं। आईआईटी,  हैदराबाद के वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक अपशिष्टों के पुनर्चक्रण के लिए संतरे के छिलकों की मदद से एक प्रभावी प्रौद्योगिकी का विकास किया है। इसी प्रकार वैज्ञानिकों के एक समूह ने प्लास्टिक से थर्माकोल जैसा एक ऐसा पदार्थ बनाया है, जो पानी से तेल को सोख सकता है। इस विधि से तेल के फैलाव जैसी समस्या का समाधान किया जा सकेगा। पर्यावरण संरक्षण के लिए प्लास्टिक का पुनर्चक्रण करना दीर्घकालिक समाधान हो सकता है। इससे काफी हद तक प्लास्टिक की समस्या से निपट सकते हैं। हालांकि, सबसे अच्छी पहल यही होगी कि हम प्लास्टिक के उत्पादों से तौबा कर लें और उन्हें जीवनचर्या से दूर कर दें। ऐसा करके ही हम आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वच्छ पर्यावरण छोड़ पाएंगे। 

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