बरकरार है कश्मीर की चुनौती

जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की चुनौती का बेहतर ढंग से मुकाबला करने एवं इस प्रदेश को पुन: विकास के पथ पर लाने के वायदे के साथ लगभग तीन मास पूर्व 5 अगस्त को मोदी सरकार ने धारा 370 को हटाने एवं प्रदेश को दो केन्द्र शासित क्षेत्रों में बांटने का बड़ा फैसला किया था, परन्तु यदि प्रदेश की मौजूदा स्थिति की ओर देखें तो स्पष्ट होता है कि जिस वायदे के साथ उक्त अहम फैसला लिया गया था, वह प्रदेश की स्थिति में अभी तक कोई बड़ा सुधार लाने में सफल नहीं हो सका। 
87 दिन बीत चुके हैं, परन्तु जम्मू-कश्मीर में आम जन-जीवन अभी पूरी तरह से सामान्य नहीं हो सका। सरकार की ओर से चाहे समय-समय पर लोगों की नागरिक आज़ादी पर पहले लगाई गई पाबंदियां हटाने के दावे किये गये हैं तथा यह भी कहा गया है कि अब सब कुछ साधारण जैसा हो गया है, परन्तु प्रदेश से प्राप्त हो रही सूचनाएं इस बात की पुष्टि नहीं करतीं। दूसरी ओर आतंकवादी संगठनों ने भी अपनी कार्रवाइयां पुन: तेज कर दी हैं। कुलगाम के एक गांव में निर्माण कार्यों में लगे पश्चिम बंगाल के 5 श्रमिकों को कतार में खड़े करके गोलियों से भून दिया गया है। देश के भिन्न-भिन्न भागों में कश्मीर घाटी में आने वाले ट्रक ड्राइवरों को विशेष रूप से निशाना बनाया जा रहा है ताकि कश्मीर घाटी को वस्तुओं की ढुलाई आम जैसी न हो सके। अब तक के समाचारों के अनुसार पंजाब के एक व्यापारी एवं 5 ट्रक ड्राईवर मारे जा चुके हैं। ये भी समाचार मिले हैं कि यदि दुकानदार अथवा अन्य साधारण लोग अपना कारोबार पुन: शुरू करने की कोशिश करते हैं तो उन्हें आतंकवादियों की ओर से धमकियां दी जाती हैं। धारा 370 को हटाने से पूर्व केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में बड़े स्तर पर सुरक्षा बल तैनात करके एवं प्रदेश में अधिकतर स्थानों पर धारा 144 लगा कर एक प्रकार से कर्फ्यू जैसी स्थिति पैदा कर दी थी, ताकि लोगों के किसी भी समूह की ओर से केन्द्र सरकार के फैसलों का विरोध न किया जा सके। इसके बाद कश्मीर घाटी के आम लोगों ने स्वेच्छा से ही केन्द्र सरकार द्वारा धारा 370 को हटाने के फैसले के विरुद्ध रोष प्रकट करने के लिए अपने कारोबार बंद रखने एवं अपने बच्चों को शैक्षणिक संस्थानों में न भेजने का फैसला लिया, परन्तु अब यदि लम्बी अवधि बीत जाने के बाद लोगों के कुछ वर्ग अपना कारोबार पुन: शुरू करना भी चाहते हैं, तो आतंकवादी संगठन उन्हें ऐसा करने की इजाज़त नहीं देते। लोग एक प्रकार से सरकारी एवं ़गैर-सरकारी दबावों के बीच फंस गये हैं। जम्मू-कश्मीर के व्यापार चैम्बर के मुताबिक उत्पन्न हुई इस स्थिति  के कारण अब तक कारोबार में 10 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक का नुक्सान हो चुका है। यदि प्रदेश में ऐसी स्थिति बनी रहती है तो आगामी समय में यह नुकसान और बढ़ सकता है। इस समय के दौरान योरुप के कुछ संसद सदस्यों ने भी कश्मीर घाटी का दौरा किया है। कहा यह जा रहा है कि योरुपीय सांसदों का यह दौरा परोक्ष ढंग से भारत सरकार की ओर से प्रायोजित किया गया था। इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर घाटी में नागरिक स्वतंत्रता की बहाली के लिए बढ़ रहे दबाव को कम करना था, क्योंकि अनेक अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की ओर से यह मांग की जा रही थी कि विदेशी पत्रकारों एवं अन्य महानुभावों को प्रदेश का दौरा करने की इजाज़त दी जाए। योरुपीय सांसदों के इस दौरे के दौरान भी कश्मीर घाटी में पूर्ण हड़ताल रही। प्रशासन की छत्र-छाया में ही यह सारा दौरा सम्पन्न हुआ तथा प्रशासन की सहमति से ही ये सांसद कश्मीर घाटी में कुछ पंचों-सरपंचों एवं अन्य लोगों से मिले।
दूसरी तरफ कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने योरुपीय सांसदों को कश्मीर घाटी में ले जाये जाने के संबंध में केन्द्र सरकार की कटु आलोचना करते हुए कहा है कि जब विपक्षी दलों से सम्बद्ध सांसदों एवं अन्य नेताओं को कश्मीर में जाने की  आज्ञा नहीं दी जा रही, तो विदेशी नेताओं को ऐसी छूट क्यों दी गई है? विपक्ष ने यह भी आरोप लगाया है कि कश्मीर घाटी में गये अधिकतर योरुपीय सांसद दक्षिणपंथी विचारधारा से सम्बद्ध हैं। इसी काल के दौरान योरुपीय यूनियन ने एक बयान जारी करके कहा है कि कश्मीर में गये सांसदों का प्रतिनिधिमंडल योरुपीय यूनियन का प्रतिनिधित्व नहीं करता। इसके साथ ही योरुपीय यूनियन ने अपने अधिकृत बयान में इस बात पर बल दिया है कि कश्मीर घाटी में मानवाधिकारों एवं नागरिक स्वतंत्रता को बहाल किये जाने की आवश्यकता है। 
इन तमाम तथ्यों की रोशनी में हम समझते हैं कि जम्मू-कश्मीर की स्थिति को आम जैसा बनाने के लिए जहां केन्द्र सरकार को आतंकवादियों की गतिविधियों को रोकने के लिए स्वयं को पूरी तरह तैयार रखना पड़ेगा, वहीं दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर के भिन्न-भिन्न राजनीतिक प्रतिनिधियों के साथ भी इस संबंध में बातचीत शुरू करनी पड़ेगी। राष्ट्रीय स्तर पर भी अन्य विरोधी दलों को केन्द्र सरकार की ओर से अपने अब तक के पगों एवं आगामी समय में प्रदेश की स्थिति को सुधारने के लिए अपनाई जाने वाली रणनीति के संबंध में विश्वास में लिया जाना चाहिए। जम्मू-कश्मीर की समस्या बहुत पेचीदा मामला है तथा यह दशकों से लटकता चला आ रहा है। इस संबंध में फैसले बहुत सोच-विचार के बाद एवं आम सहमति बना कर ही लिये जाने चाहिएं। यदि केन्द्र सरकार की ओर से लिये जाने वाले एकपक्षीय फैसलों से जम्मू-कश्मीर की स्थिति और बिगड़ती है तो समूचे तौर पर इसका जम्मू-कश्मीर के लोगों को ही नहीं, अपितु पूरे देश को भारी नुकसान हो सकता है। इसलिए केन्द्र सरकार को इस संबंध में बहुत सोच-विचार कर फैसले लिये जाने चाहिएं तथा इस संबंध में राष्ट्रीय स्तर पर आम सहमति बनाने का गम्भीर यत्न किया जाना चाहिए। ऐसे सामूहिक यत्नों से ही हम जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की चुनौती का बेहतर ढंग के साथ मुकाबला करते हुए स्थितियों को सामान्य बनाने में सफल हो सकते हैं।