सर्वोच्च न्यायालय के अहम फैसले

14 नवम्बर का दिन सुप्रीम कोर्ट के पक्ष से अहम रहा है। इस दिन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तीन अहम फैसले राफेल, सबरीमाला मंदिर तथा राहुल गांधी द्वारा सुप्रीम कोर्ट की मानहानि संबंधी सुनाये गये हैं, जिनमें से 2 फैसले विशेष तौर पर महत्त्व रखते हैं। इस क्रम में पहला फैसला फ्रांस के साथ हुए राफेल लड़ाकू विमानों के समझौते के बारे में है। राफेल विमान खरीदने के संबंध में यह समझौता पूर्व लोकसभा चुनावों के दौरान एक ज्वलंत मुद्दा बना था। उस समय के कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार पर स्पष्ट रूप में आरोप लगाये थे कि इस समझौते में अनिल अम्बानी की एक फर्म को लाभ पहुंचाया गया है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि डा. मनमोहन सिंह की पूर्व सरकार के समय राफेल विमान खरीदने के संबंध में जो समझौता हुआ था उस समझौते को यदि व्यवहारिक रूप दिया जाता तो उससे भारत को राफेल विमानों की कम कीमत अदा करनी पड़ती। परन्तु नरेन्द्र मोदी की सरकार ने उस समझौते को एक तरफ करके फ्रांस की कम्पनी दसाल्ट एविएशन के साथ जो नया समझौता किया, उसके अनुसार भारत को राफेल विमान कहीं ज्यादा महंगे मूल्य पर खरीदने पड़ रहे हैं। राहुल गांधी ने अपनी चुनाव मुहिम का बड़ा हिस्सा इस मुद्दे को उभारने पर लगाया था और सीधे रूप में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चोर करार दिया था, परन्तु इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई याचिकाओं के बारे में फैसला सुनाते हुए 14 दिसम्बर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एक तरह से मोदी सरकार को क्लीन चिट दे दी थी। परन्तु सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के विरुद्ध पूर्व केन्द्रीय मंत्रियों यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी तथा प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण तथा कई अन्य गुटों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पुन: नज़रसानी याचिकाएं दायर करवाई गई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने ये याचिकाएं सुनवाई के लिए स्वीकार भी कर ली थीं। इससे उत्साहित होकर ही राहुल गांधी ने कई चुनाव रैलियों में यहां तक कह दिया था कि अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी मान लिया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चोर हैं।इस समूचे घटनाक्रम के संबंध में सुप्रीम कोर्ट का अब जो पुन: ताज़ा फैसला आया है उसमें प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की पूर्व सरकार को एक बार फिर क्लीन चिट दे दी गई है और सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले पर पुन: नज़रसानी करने के संबंध में सभी याचिकाओं को यह कहते हुए रद्द कर दिया है कि इनमें कोई दम नहीं है। हम समझते हैं कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व मोदी सरकार को इस संबंध में जो पुन: क्लीन चिट दी गई है, उससे यहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की स्थिति और मज़बूत हुई है, वहीं राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को इस पक्ष से बड़ी नमोशी का सामना करना पड़ा है। इसी कारण भारतीय जनता पार्टी ने और विशेष तौर पर कानून मंत्री रविशंकर ने कांग्रेस पार्टी तथा राहुल गांधी को माफी मांगने के लिए कहा है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी द्वारा सुप्रीम कोर्ट के हवाले से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को चोर कहने के मामले में उनके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट की मानहानि करने के आरोप में कार्रवाई करने की मांग करने वाली दायर करवाई गई याचिका को भी यह कहते हुए रद्द कर दिया कि राहुल गांधी इस संबंध में पहले ही माफी मांग चुके हैं, परन्तु साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उनको आगे से सतर्क रहने के लिए भी कहा है। इस संबंध में हमारी राय है कि राजनीतिक नेताओं को तथ्यों की गम्भीरता से जांच करने के बिना किसी भी विरोधी के बारे में गम्भीर आरोप लगाने से संकोच करना चाहिए।
सबरीमाला
सुप्रीम कोर्ट का दूसरा अहम फैसला केरल के प्रसिद्ध मंदिर अयप्पा में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश संबंधी आया है। सितम्बर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला देते हुए सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दी थी, परन्तु इस मुद्दे को लेकर केरल मेें पारम्परिक सोच वाले लोगों और प्रगतिशील सोच वाले लोगों के बीच कड़ा टकराव और तनाव पैदा हो गया था। पारम्परिक विचारों वाले अधिकतर  लोगों द्वारा इस मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए महिलाओं के दाखिल होने संबंधी सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये फैसले का विरोध किया जा रहा था, जबकि केरल सरकार और वहां के अन्य प्रगतिशील लोग सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पक्ष में खड़े थे। इस मुद्दे को लेकर हिंसक झड़पें भी हुई थीं। सुप्रीम कोर्ट के उपरोक्त फैसले के संबंध में पुन: नज़रसानी करने के बारे में 60 से अधिक याचिकाएं भी दायर हुई थीं। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे के और अधिक महत्त्व को स्वीकार करते हुए 7 जजों पर आधारित एक बड़ा बैंच बनाने का फैसला किया है, जोकि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के अलावा मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने के लिए महिलाओं पर रोक और बोरा भाईचारे में प्रचलित महिलाओं के खतने संबंधी परम्परा आदि मामलों पर विस्तार में सुनवाई करके अपना अंतिम फैसला देगा, परन्तु फिलहाल अभी सुप्रीम कोर्ट ने अपने 28 सितम्बर, 2018 के उस फैसले पर कोई पाबंदी नहीं लगाई, जिसमें उसने महिलाओं को मंदिर में दाखिल होकर पूजा-अर्चना करने की छूट दी थी। यहां यह भी वर्णनीय है कि उपरोक्त मामले की सुनवाई कर रहे 5 सदस्यीय बैंच में से 2 जजों ने अपना अल्प-संख्यक फैसला लिखते हुए यह कहा है कि सुप्रीम कोर्ट को अपने सितम्बर 2018 के फैसले पर कायम रहना चाहिए और महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में दाखिल होने की दी गई छूट बरकरार रखनी चाहिए। हमारी भी यह राय है कि किसी भी धर्म में धार्मिक स्थलों में महिलाओं के प्रवेश और पाठ-पूजा के मामले में कोई पक्षपात नहीं होना चाहिए। यह 21वीं सदी है। इसमें महिलाओं को हर पहलू से पुरुषों के समान अधिकार मिलने चाहिएं। अब देश के लोग दिलचस्पी से इस बात का इंतजार करेंगे कि आने वाले समय में सबरीमाला मंदिर तथा अन्य धार्मिक स्थलों पर अलग-अलग धार्मिक भाईचारों द्वारा लगाई गई रुकावटों संबंधी सुप्रीम कोर्ट कब और किस तरह का फैसला सुनाता है?