कोरोना संकट और हमारी चुनौतियां

इस वक्त हम एक ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जहां बस घर में बैठने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। पूरी दुनिया थम सी गयी है, किसी के कुछ समझ में आता इससे पहले ही कोरोना नाम के अति सूक्ष्म वायरस ने पूरी दुनिया की रफ्तार ही थाम कर रख दी है। चिकित्सा जगत भी इसके आगे बहुत कुछ नहीं कर पा रहा है, बस कोशिश में लगा है और पूरी उम्मीद है कि इस कोशिश में एक दिन हम कामयाब भी अवश्य होंगे परंतु जब तक इसका कोई कारगर इलाज नहीं आ जाता तब तक घर में बैठने के सिवा कोई और उपाय नजर नहीं आ रहा है। यूँ तो इस कोविड -19 ने दिसंबर 2019 को पहली दस्तक दी थी चीन के वुहान शहर में। इससे पहले कि इसकी गंभीरता समझ आती, इसने अपनी चपेट में कई लोगों को ले लिया। यहां तक कि कोरोना के बारे में सबसे पहले बताने वाला डॉक्टर भी इसकी जद में आ ही गया और उसकी मौत हो गयी। इस चिकित्सक ने इसकी गंभीरता के बारे में बताया तो परंतु इस जानकारी को उतनी गंभीरता से नहीं लिया गया और जिसका नतीजा आज सबके सामने है। एक केस आया इससे पहले कि कोई कुछ समझता कि एक के बाद एक कई मरीज आने लगे। चीन ने वुहान शहर को ही पूरे देश से अलग कर दिया। चीन के इन हालातों से भी दुनिया ने कुछ खास नहीं सीखा बल्कि इसे हल्के में ही ले गए। खासकर यूरोप के देश। इस वक्त कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित इटली, स्पेन, अमरीका और फ्रांस जैसे देश हैं। भारत में भी स्थिति काफी नाजुक है जिसके चलते पूरा देश इस वक्त लॉकडाऊन है। ऐसा नहीं कि कोविड-19 अचानक ही देश में आ गया। जनवरी के अंतिम सप्ताह में इसके भारत आने की शुरुआत हुई। तब से अब तक सैकड़ों मरीज अस्पतालों में आ चुके हैं और कई तलाशे जा रहे हैं। अब इस बीमारी से होने वाली मौतों का आंकड़ा भी डराने लगा है। मानव के बाल से लगभग 900 गुना सूक्ष्म इस वायरस के प्रभाव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अपने अस्तित्व में  आने के कुछ ही समय में इसने पूरी दुनिया को अपने आगे छोटा साबित कर दिया है। ऐसा नहीं कि विज्ञान जगत इसके आगे हार मानकर बैठ गया है, क्योंकि यह नया वायरस है तो इसकी प्रकृति के बारे में जानने में अवश्य समय लग रहा है परंतु इस अल्पावधि में विज्ञान इसके इलाज के करीब आता जा रहा है।  ऐसा कतई नहीं कि जो भी इस वायरस की चपेट में आ रहा है, उसकी मौत ही हो रही है।  अब तक लाखों लोग इसके इलाज से ठीक भी हो चुके हैं फिर भी हजारों मरने वालों की तादाद चिंतित अवश्य कर रही है। तेज बुखार, सूखी खांसी, सांस लेने में तकलीफ , डायरिया जैसे कुछ लक्षण हैं जिनके दिखते ही चिकित्सक से मरीज को मिलना ही चाहिए। अब ये निर्भर करता है कि कितना संक्रमण फैल चुका है मरीज के शरीर में, इसी के हिसाब से इलाज भी किया जा रहा है। दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि कई चिकित्सक इसकी चपेट में आकर अपनी जिंदगियां खत्म कर चुके हैं। इस बीमारी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन  ने इसे महामारी घोषित किया है। तमाम देशों द्वारा हर संभव प्रयास किये जा रहे हैं फिर भी हर कोशिश नाकाफी सिद्ध हो रही है। हालांकि ये नहीं है कि इस बीमारी की जद में आने वाला हर मरीज मर ही रहा है बल्कि इसकी कोई कारगर दवा न होने के कारण सामुदायिक स्तर पर न फैले इस वजह से लॉकडाऊन जैसे कठोर निर्णय लिए जा रहे हैं। हमारे देश में भी प्रधानमंत्री ने पूरे देश को 21 दिन के लिए पूरी तरह बंद करने का आदेश दे दिया है। हालांकि कुछ राज्यों जैसे पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र आदि ने पहले ही ये घोषणा कर दी थी।  जानकर पहले से ही पूर्णत: लॉकडाऊन को ही एकमात्र उपाय बता रहे थे। यह कदम पहले ही उठाया जाना चाहिए था ऐसा मानने वालों का भी एक वर्ग है। विपक्ष के नेता राहुल गांधी के इस संबंध में फरवरी से ही ट्वीट आने शुरू हो गए थे। लेकिन उनको गंभीरता से शायद ही किसी ने सुना होगा, राजस्थान सरकार ने सबसे पहले पूरी तरह राज्य को बंद करने का निर्णय लिया और कुछ महत्वपूर्ण कदम भी उठाए। रविवार को जनता कर्फ्यू के बाद से समाज इस बात को लेकर सतर्क भी था और तैयार भी। बहरहाल अब जब पूरा विश्व ही इस त्रासदी से गुजर रहा है तो भारत इससे अछूता नहीं है। लेकिन चीन और अमरीका जैसे देशों के मुकाबले भारत के हालात ज्यादा इसलिए भी चुनौतियों से भरे हुए हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था पहले ही मंदी जैसे हालातों से गुजर रही थी और भुखमरी, गरीबी, बेघरों की संख्या यहां ज्यादा है इसलिए सरकार के सामने अब यह एक चुनौती है कि वो इससे कैसे निकलती है।  केवल केंद्र ही नहीं बल्कि सभी राज्य सरकारों के सामने अभी हालात मुश्किल से भरे तो हैं पर असंभव जैसा कुछ भी नहीं। इस बीच महंगाई न बढ़े, जरूरत की सभी चीजें प्रत्येक नागरिक तक पंहुचे, दवा और एमरजेंसी जैसी सुविधाएं सबको मिल सकें यही सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। न केवल सरकारें बल्कि सभी नागरिकों का भी ये कर्तव्य है कि वो इन हालातों में अपनी सरकार का साथ दे, सभी मतभेद भुलाकर एक होने का यही समय है।