निष्प्राण हो रहे अर्थ-तन्त्र को जीवन-दान देने की दुविधा

दुनिया के साथ-साथ भारत में कोरोना वायरस से पैदा महामारी के संक्रमण से आये मरीज़ों और मौतों के आंकड़े निरन्तर बढ़ते जा रहे हैं। जिस समय भारत में कोरोना महामारी के फैलने की आशंका से संत्रस्त हो मोदी सरकार ने पहले एक दिन का जनता कर्फ्यू और उसके बाद पूर्ण बन्दी की घोषणा की थी, तब विश्व व्यापार संगठन ने मोदी सरकार के साहस की प्रशंसा करते हुए कहा था, कि 135 करोड़ की आबादी वाले देश में एकबारगी आर्थिक गतिविधियों को बंद कर देना एक बड़ा साहसिक फैसला था। उससे तीन महीने पहले से इस महामारी ने चीन के वुहान में अपना जलवा दिखाया था और उसके बाद अमरीका, ब्रिटेन और पश्चिम देशों में कोरोना वायरस का भयावह संक्रमण लाशों के अम्बार  लगा रहा था।ऐसे समय में बिना आर्थिक परिणाम की चिन्ता किये हुए भारत में पूर्ण बन्दी का पहला चरण लग गया, फिर दूसरा चरण घोषित हुआ, और अब तीसरा चरण चल रहा है। उम्मीद थी कि इससे सामाजिक अलगाव की रणनीति अपना कर कोरोना वायरस पर विजय प्राप्त कर ली जाएगी। तब तक देश में इसके प्रतिरोध के लिए उचित मैडीकल ढांचा खड़ा हो जाएगा या इस भयावह बीमारी के उन्मूलन के लिए कोई कारगर दवा ईजाद हो जाएगी।लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। देश-व्यापी लॉकडाऊन के कारण कोरोना वायरस पर विजय तो क्या प्राप्त करनी थी, हां, इसका संक्रमण कुछ देर के लिए अवश्य धीमा पड़ गया, लेकिन बिना दवा या उचित प्रतिरोध के अभाव से अब यह फिर तेज होता नज़र आ रहा है। चाहे सेहत मंत्री डा. हर्षवर्धन कहते हैं कि ‘टैस्ट बढ़ गये इसलिए मरीज़ों के आंकड़े बढ़ रहे हैं, लेकिन संक्रमण और मृत्यु दर नहीं बढ़ी। मरीज़ों के दुगना होने की अवधि बढ़ कर चार दिनों से ग्यारह दिन या औसत 9.9 दिन लग रहे हैं और सेहत लाभ की दर बढ़ कर तीस प्रतिशत हो गई है।’ लेकिन इन आंकड़ों से इस संकट से निकल जाने का कोई दिलासा नहीं मिलता, क्योंकि दुनिया भर के चिकित्सा वैज्ञानिकों की कोशिशों के बावजूद अभी तक इसका कोई सही उपचार, टीका या औषधि सामने नहीं आ सकी। जिन औषधियों या टीकों की खोज की सम्भावना घोषित हुई, उनको भी बाज़ार में आते अभी एक साल लगेगा। लेकिन दुनिया की अर्थ-व्यवस्था बुरी तरह से प्रताड़ित हो गई। भारत की अर्थ-व्यवस्था जो पहले ही मंदी, महंगाई और बेकारी के कुप्रभाव झेल रही थी, उसे तो कोरोना महामारी के लॉकडाऊन के इन तीन चरणों ने मृत प्राय: कर दिया है। महामारी की घोषणा से पहले भारत सात प्रतिशत आर्थिक विकास दर की आशा कर रहा था। महामारी और पूर्ण बन्दी की घोषणा हुई तो ‘फिच्च’, विश्व बैंक और एशिया विकास बैंक के आंकड़े एक निराशाजनक तस्वीर दिखाने लगे। भारत विकास दर निरन्तर गिरती हुई 1.8 प्रतिशत और एक प्रतिशत पर आ गई। अब ‘फिच्चे’ का सर्वेक्षण इसे ज़ीरो प्रतिशत दिखा रहा है। विश्व व्यापार संगठन का आकलन है कि कोरोना महामारी के मुकाबले के लिए भारत के लॉकडाऊन और उसकी अर्थ-व्यवस्था की गतिहीनता ने उसके अंजर-पंजर ढीले कर दिये हैं। अभी महामारी से छुटकारा पाने की कोई सम्भावना नज़र नहीं आती, बल्कि महामारी विशेषज्ञ यह कहते हैं कि इस महामारी के थोड़ा दबने के बाद देश को इसके एक और ज्वार का सामना करना पड़ेगा। सन् 2022 तक जब तक इसका उचित औषधि प्रतिकार पैदा नहीं होता, भारत और दुनिया में यह महामारी अपने मारक जलवे दिखाती रहेगी।जब कोरोना महामारी का मुकाबला भारत में शुरू हुआ था, तो लॉकबन्दी की घोषणा के साथ मोदी सरकार ने कहा था, ‘जान है जहान है’ इसके बाद दूसरे चरण का लॉकडाऊन लगाते हुए नारा बदल गया कि ‘जान भी जहान भी।’ अर्थात कोरोना संक्रमण में जानों को बचाते हुए अपने आर्थिक जहान को भी सुरक्षित रखना है।लॉकडाऊन के तीसरे चरण का उत्तरार्थ शुरू हो गया। अब देश की सरकार का सन्देश है, इस कोरोना के रहते हुए ‘इसके साथ-साथ जीना सीखना होगा।’विश्व स्वास्थ्य संगठन का ताज़ा आकलन कहता है कि कोरोना संक्रमण की महामारी ने भारत जैसे देशों पर तीन प्रभाव नज़र आएंगे। मौत के सैलाब का सामने करने के लिए मैडीकल व्यवस्था का भारी व्यय, लेकिन इसके साथ ही निष्प्राण अर्थ-व्यवस्था ने करोड़ों श्रमिकों के हाथ से रोज़ी-रोटी छीन ली। अब भारत जैसे ़गरीब देशों में कोरोना से मौत के भय से अधिक भूख से मरने का भय पैदा हो गया है। यह संकट तो बहुत चिरजीवी होगा, क्योंकि आर्थिक गतिविधियों के रुक जाने से दुनिया और भारत जो पहले ही मंदी से ग्रस्त हो रहा है, अब एक ऐसी महामंदी का सामना करेगा कि जो दुनिया में सन् 1928 से 1930 के महामंदी के सब रिकार्ड पछाड़ देगा।यह समय इस आर्थिक महा-संकट में किसी दुविधा में पड़ने का नहीं है। तभी कहा जा रहा है कि कोरोना महामारी को झेलते हुए जीना सीखना होगा। जीने का ढंग बदल कर, भीड़ तंत्र को नकार, सामाजिक अलगाव को अपना और मास्क तथा सैनिटाइज़र को अपनी ज़िन्दगी का एक हिस्सा बनाना होगा, लेकिन इसके साथ उद्यम, व्यवसाय, सेवा क्षेत्र और कृषि क्षेत्र को जीवनदान देना होगा। संकट का मुकाबला  दरवाज़े बंद कर मुंह छिपाने से नहीं होता। सामाजिक अलगाव के सभी नियमों का मुकाबला करते हुए जीवन रण में कूदने से होता है। इसीलिए आज कहा जा रहा है कि हमें कोरोना महामारी को झेलते हुए जीना सीखना होगा।