आखिर क्यों प्रसिद्ध है पाम गुड़ ?

तमिलनाडू के उडुंगडी थूथुकुडी ज़िले में तैयार होने वाला पाम गुड़ आजकल फिर सुर्खियों में है। इसकी मिठास और पौष्टिक तत्वों के कारण इसको बनानेवाली संस्था ने इसके लिए जी. आई. टैग की मांग की है। इस निवेदन में एक बार फिर इसकी मिठास की ओर ध्यान आकर्षित किया है। कभी मलेशिया,सिंगापुर, श्रीलंका और यू.के. में निर्यात किया जाता था। यह गुड़ आम तौर पर दक्षिण भारत में रसोई में प्रयोग किये जाने वाले पदार्थों के ज़रूरी भाग औरआयुर्वेदिक भाग के तौर पर प्रयोग किया जाता है। कभी समय था जब उडुंगडी गुड़ का कारोबार मदुरैई और तिरुनेलवेली के नज़दीक बाज़ार में लगभग500 दुकानों में किया जाता था। कोडेकनाल मदर टरेसा यूनिवर्सिटी (एम.टी.यू.) के बॉयो-टैक्नोलॉजी विभाग के एसोसिएट और प्रमुख ऊषा राज नैथिनी केअनुसार उडुंगडी पाम गुड़ इस क्षेत्र की विलक्षण धरती की उपज है। कम वर्षा होने के कारण इस क्षेत्र में लाल गहरी रेत में नमी की कमी होती है, जिसकेकारण पालमीर के वृक्षों की छाल अधिक चिपचिपी होती है। दूसरी तरफ समुद्र के नज़दीक बनाया जाता होने के कारण मिट्टी के बर्तनों को चूने का लेप किया जाता है, जिस कारण गुड़ का स्वाद नमकीन हो जाता है। जी.आई. टैग का निवेदन करने वाली अकादमिक टीम ने आर. श्रीनिवास, सचिव,तमिलनाडू राज्य विज्ञान और टैक्नोलॉजी तिरुनेलवेली ज़िले के पामीरा उत्पादक को-आप्रेटिव के साथ टीम के प्रमुख सदस्य हैं, जिन्होंने इस माह के शुरू मेंपारम्परिक तौर पर उत्पादकों के लिए जी.आई. प्रमाणीकरण के लिए यह निवेदन दिया था। जी.आई. टैग आवेदकों की ओर से दिखाये रिकार्डों के अनुसार
पुराने कायाल बंदरगाह के द्वारा एक पुर्तगाली व्यापारी की ओर से 7 मार्च 1526 को उडुंगडी पाम गुड़ के निर्यात का भी ज़िक्र किया गया है।
दूसरी तरफ अगर बात कारोबार की की जाए तो इस समय उडुंगडी  पाम गुड़ एक लघु उद्योग के रूप में लगभग 10 हज़ार परिवारों को रोज़गार दे रहाहै, जो पूरी तरह हस्त निर्मित कार्य पर निर्भर हैं। नारियल के वृक्ष जो चार वर्षों में फल देने लगते हैं के विपरीत पलमीरा को इस प्रतिक्रिया के लिए कमसे कम 15 वर्ष का समय लगता है। उडुंगडी स्थित 37 वर्ष से पलमीर के वृक्ष लगाने वाले किसान और गुड़ निर्माता विस्टन प्रभु एमेनूयल के अनुसार जोवृक्ष आज प्रयोग किये जा रहे हैं, वे सभी 20 वर्ष से अधिक पुराने हैं।जी.आई. टैग प्राप्त करना विस्टन जैसे लोगों के लिए सबसे अधिक मददगार होगा। जिन्होंने हाल ही में गन्ने की चीनी के क्रिस्टल मिलाकर गुड़ में बाज़ारमें लाने से पहले अपने पारिवारिक स्टोर के लिए अपनी वैबसाईट undargudkarupati.com स्थापित की है। विस्टन के अनुसार पाम गुड़ की कीमत380 से 400 रुपए प्रति किलोग्राम है, जबकि मिलावट किये गये गुड़ की कीमत 140 से 150 रुपए प्रति किलोग्राम के बीच है। टैग मिलने के बाद इसको
बेचने में आसानी होगी और साथ ही ऑनलाइन नये ग्राहकों को ढूंढने में भी सहायता मिलेगी। सबसे बड़ी बात मिलावटखोरी से बचाव हो सकेगा। विस्टन के अनुसार इस वर्ष तालाबन्दी ने उत्पादन को प्रभावित किया है। जिस कारण मज़दूरों की कमी रही, क्योंकि पाम के वृक्ष पर चढ़ना एक परम्परावादी प्रतिभा है, जो हर कोई नहीं कर सकता और हर किसी के पास नहीं है। इतना ही नहीं एक दिन में 30 से 40 मिट्टी के घड़े वृक्ष के शिखर पर रस के लिए लटकाने पड़ते हैं और दूसरे दिन सुबह इनको उतारने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती है। मज़दूर एक दिन में 500 से 1000 लीटर रस इकट्ठा कर सकता है। विस्टन का कहना है कि रस को खुले बर्तन में उबाला जाता है और सूखी पलमीर की शाखाओं को लकड़ी के तौर पर प्रयोग किया जाता है। इसके बाद यह गुड़ तैयार होता है। अब सभी के मन में एक प्रश्न यह भी उठता होगा कि आखिर जी.आई. टैग है क्या और उसका क्या लाभ होगा? इसका मतलब यह है कि जी.आई.Geographical indication  से अर्थात् भौगोलिक संकेत है। जिससे किसी पदार्थ को वहां की मान्यता मिलती है। यह एक तरह का ऐसा मार्का है जिसको और कोई इस्तेमाल नहीं कर सकता। यही कारण है कि उडुंगडी पाम गुड़ को और बेहतर बनाने के लिए इसकी टैग की मांग की गई है। तमिलनाडू  स्टेट कौंसिल फॉर साईंस एंड टैक्नोलॉजी के श्रीनिवासन का कहना है कि उडुंगडी पाम गुड़ को अन्य किस्मों के साथ मिला कर असली चीज़ कह कर बेचा
जा रहा है। इसके लिए यह टैग लगाने के बाद इसकी असली पहचान कायम रह सकेगी।