गुणों से भरपूर है अमरूद

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफ.ए.ओ.) ने फसली विभिन्नता व स्वास्थ्य के लिए फलों को बड़ा महत्त्व दिया है। इनमें आवश्यक विटामिन, खनिज व एंटीआक्सीडैंट उपलब्ध होते हैं। पौष्टिकता के पक्ष से जो आहार विशेषज्ञों ने खाने के लिए फलों की मात्रा बताई है, व्यक्ति को उस मात्रा में फल उपलब्ध नहीं होते। हालांकि भारत विश्व में फलों का दूसरा बड़ा उत्पादक है और अनाज से अधिक फल पैदा करता है। पंजाब में फलों की काश्त बढ़ाने की बड़ी गुंजाइश है, क्योंकि इसकी भूमि एवं जलवायु फलों के उत्पादन के अनुकूल है। 
इंडियन इंस्टीच्यूट आफ सबट्रोपीकल हार्टिकल्चर रहमान खेड़ा, लखनऊ (उत्तर प्रदेश) के अनुसार अमरूद खाने से कई बीमारियां ठीक हो जाती हैं। यह फल 80 रुपये किलो में उपलब्ध है। अमरूद ऐसा पेड़ है, जो वर्ष में दो बार फल देता है। एक बरसात में और एक सर्दियों में। सर्दियों का फल जो नवम्बर-दिसम्बर में आता है, आज-कल मंडी में भारी मात्रा में उपलब्ध है। पंजाब में गत वर्षों में अमरूद की काश्त के अधीन काफी रकबा बढ़ा है। पंजाब सफेदा, पंजाब किरण, पंजाब एप्ल, इलाहाबादी सफेदा, स्वेता, पंजाब पिंक तथा हिसार सफेदा आदि किस्में काश्त की जा रही हैं। प्रोसैसिंग के लिए पंजाब पिंक के अतिरिक्त हिसार सरेश तथा ललित सफेदा किस्में भी बाज़ार में उपलब्ध हैं। अमरूद में संतरे तथा नींबू जाति के सभी फलों से अधिक मात्रा में विटामिन ‘सी’ होता है। 
अमरूद में पौष्टिक तत्वों के दृष्टिगत इसकी काश्त के अधीन अधिक रकबा बढ़ाए जाने की ज़रूरत है। इस पक्ष में पंजाब सरकार ने पटियाला ज़िले में वजीदपुर में गुआवा एस्टेट स्थापित की है। इसमें किसानों को अमरूद के बाग लगाने संबंधी सुविधाओं, किस्मों तथा काश्त की तकनीक संबंधी जानकारी देने का प्रबंध किया गया है। किसानों को अलग-अलग किस्मों के पौधे भी उपलब्ध करवाने तथा नर्सरियां स्थापित करने की भी योजना थी, परन्तु इसके लिए पंजाब सरकार ने 10 करोड़ रुपये की व्यवस्था की थी, परन्तु पैसा अभी तक नहीं आया और यह एस्टेट अमरूद के उत्पादकों को सुविधाएं प्रदान करने संबंधी मुश्किलों का सामना कर रही है। बागबानी विभाग ने अमरूद के महत्त्व के दृष्टिगत तथा किसानों को इसके बाग लगाने के लिए उत्साहित करने संबंधी 15 दिसम्बर को पटियाला में अमरूद मेला करवाने का प्रबंध किया है। 
उत्पादकों का कहना है कि अमरूद के लिए मक्खी बड़ा हानिकारक कीड़ा है और इसकी वृद्धि तेज़ी से होती है। यह मक्खी नर्म छिलके पर अंडे देती है। अंडों से बच्चे निकलने के बाद फलों में छेद करके अंदर चले जाते हैं और नर्म गुद्दा खाते हैं। सुंडियां फलों के भीतर नज़र आती हैं और फल गल कर गिर जाता है। मक्खी का हमला बरसात ऋतु के फल पर होता है। पी.ए.यू. द्वारा जो 16 फ्लाई ट्रैप एकड़ में लगाने की सिफारिश की गई है, वह प्रत्येक उत्पादक की पहुंच में नहीं। पटियाला ज़िले में नाभा के निकट बीरडवाल गांव में एक उत्पादक ने 5 किल्ले में अमरूद का बाग लगाया है। वह गर्मियों का फल लेकर भी 100-150 रुपये प्रति किलो तक बेच रहा है। वह फल पर नान-वुवन लिफाफे लगा कर फल को बचाता है। उसने छत्तीसगढ़ की ‘वी.एन.आर.’ किस्म लगाई हुई है जिसका फल लम्बे समय तक सुरक्षित रहता है। यह किस्म लम्बे समय तक सुरक्षित रखी जा सकती है। उत्पादक मार्च माह में पौधों की कांट-छांट कर देता है और अमरूद के 5 किल्ले के बाग से भारी मुनाफा कमा रहा है। 
पंजाब सरकार द्वारा पंजाब लैंड फार्मर्स एक्ट में संशोधन करके जो अमरूद लगाने वाली भूमि को भी बाग का दर्जा दे  दिया गया है, इससे अमरूद के बाग लैंड सीलिंग के दायरे से बाहर हो जाने के कारण अमरूद के उत्पादकों में वृद्धि हो रही है। बागबानी विभाग के पूर्व डिप्टी डायरैक्टर (सेवानिवृत्त) डा. स्वर्ण सिंह मान जो अमरूद एस्टेट के प्रभारी रहे हैं, कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी घरेलू बगीची तथा प्रत्येक किसान को अपने ट्यूबवैल पर खेत में अमरूद के पौधे लगा लेने चाहिएं। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा सिफारिश की हुईं किस्मों में से या चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार द्वारा प्रमाणित किस्में जैसे हिसार सफेदा आदि में से किसी भी किस्म का चयन करके लगा लेनी चाहिए। ये पौधे अगस्त से अक्तूबर तथा फरवरी से मार्च माह के दौरान लगाए जा सकते हैं। पौधों की खरीद पी.ए.यू. लुधियाना, पंजाब बागबानी विभाग या नैशनल बागबानी बोर्ड या प्रमाणित नर्सरियों से ही करनी चाहिए। फसली विभिन्नता के लिए अमरूद की काश्त लाभदायक है। मंडी में अब यह अच्छे दाम पर बिकता है और किसानों को लाभकारी मूल्य मिल रहा है।