सड़क दुर्घटनाओं पर नियंत्रण करने की ज़रूरत

पूरी दुनिया में लगभग 12.5 लाख के करीब लोग हर वर्ष सड़क दुर्घटनाओं में अपनी ज़ान गवा लेते हैं। यदि बात भारत की करें तो दुनिया की सबसे ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं भारत में होती हैं। भारत में हर वर्ष लगभग 5 लाख के करीब सड़क दुर्घटनाएं होती हैं ज़िनमें 2 लाख लोग हर वर्ष सड़कों पर मरते, 4.5 लाख बुरी तरह घायल होकर लम्बा समय दिव्यांगों ज़ैसी ज़िंदगी व्यतीत करते हैं। करीब 3 लाख वाहन चालकों को ज़ेल तथा 10 लाख चालकों को ज़ुर्माना होता है। हमारे देश में लगभग हर 3.5 से 4 मिनट की दर से एक व्यक्ति सड़क पर अपनी जान गंवा लेता है। वर्ष 2015 में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या कुल 501423 थी, जिनमें से मरने वालों की संख्या यातायात राज्य मंत्रालय नई दिल्ली के अनुसार 146135 के करीब थी, ज़िसका सीधा मतलब 400 व्यक्ति प्रति दिन की मौत तथा 1400 दुर्घटनाएं प्रतिदिन हुईं। इसके अतिरिक्त 17666 उत्तर प्रदेश, 15642 तामिलनाडु, 13212 महाराष्ट्र, 10856 कर्नाटका, 10510 राज़स्थान, 9314 मध्य प्रदेश, 8297 आंध्रा प्रदेश, 8119 गुज़रात, 7110 तेलंगाना, 6234 पश्चिमी बंगाल, 5421 बिहार, 4893 पंज़ाब, 4879 हरियाणा आदि के करीब सड़क दुर्घटनाओं में हुई मौतों की संख्या है। दुर्घटनाओं के लिए कुछ हद तक विद्यार्थियों के अभिभावक भी ज़िम्मेवार हैं ज़ो कि अपने 18 वर्ष से छोटी आयु के तथा अशिक्षिक बच्चों को वाहन खरीद कर देते हैं तथा चलाने की आज्ञा देते हैं ज़ो बड़ी लापरवाही से वाहन चलाते हैं तथा दुर्घटनाओं का शिकार बनते हैं। देश के अंदर बढ़ रही दुर्घटनाओं का मुख्य कारण है कि 18 वर्ष से कम आयु के नाबालिग वाहन चालक, आम लोगों, पैदल चलते लोगों, रिक्शा, रेहड़ी, ट्रैक्टर ट्राली, आटोज़,  बाइकों, लेडीज़ स्कूटरियों आदि के चालकों को ट्रैफिक नियमों की ज़ानकारी ही नहीं होती। बड़ी गाड़ियों के चालक, अनेक सरकारी तथा नेताओं की गाड़ियों वाले नियमों की कोई प्रवाह नहीं करते। इसके अतिरिक्त सड़क दुर्घटनाओं के और मुख्य कारण निम्नलिखित हैं। गाड़ी के कारण होने वाली दुर्घटनाएं : गाड़ी के डिज़ाइन की कमियों, ब्रेक फेल होना, स्टेरिंग फेल होना, टायर फट ज़ाना, रेस पैडल का ज़ाम हो ज़ाना, गाड़ी स्लिप हो ज़ाना, वील अलाइनमैंट का सही न होना, सड़क टूटी होना, आवारा जानवर का सड़क के ऊपर आ जाना, बिना सूचना पर चिन्हों के सड़कों, तंग सड़कों, लाल बत्ती की उल्लंघना करना आदि। ड्राइवरों की लापरवाही : ज़ानकारी या ट्रेनिंग की कमी, नशा करके गाड़ी चलाना, ओवर स्पीड, ध्यान भटकना, गलत दिशा में गाड़ी चलाना, मानसिक या शारीरिक थकावट, मोबाइल फोन का प्रयोग, ओवरलोड, गलत स्थान पर पार्क करना, प्रैशर हार्न का प्रयोग, आई वीम आदि। इन अनदेखियों से बचना बहुत ज़रूरी है। खराब मौसम, धुंध, बारिश, बर्फ, अंधेरी, पराली का धुंआ आदि भी दुर्घटना के मुख्य कारण हैं।  
सीट बैल्ट या हैल्मेट का प्रयोग न करना : आम तौर पर चार पहिया वाहन में सीट बैल्ट का प्रयोग नहीं किया ज़ाता ज़िस कारण चालक के घायल होने या मरने की संभावना बढ़ ज़ाती है इस कारण हमें सीट बैल्ट का प्रयोग करना चाहिए। दोपहिया वाहन चलाते समय हैल्मेट का प्रयोग करना चाहिए। भारत में हर वर्ष सड़क दुर्घटना में हुई कुल मौतों का लगभग 26 प्रतिशत हिस्सा दोपहिया वाहन चालकों का होता है। ज़िनमें से 70 प्रतिशत मौत का कारण हैल्मेट ना डालना है। इसलिए हमें हैल्मेट का प्रयोग करना चाहिए। अक्तूबर 2017 के बाद सरकार द्वारा दोपहिया वाहन की इंज़न कपैस्टी 125 सी.सी. या उससे ज्यादा की गई है। उनमें ए.बी.एस. ब्रेक प्रणाली लगाने का सुझाव भी है। दोपहिया वाहन चलाते समय प्रोपर फुट रैस्ट लगे होने चाहिएं। दोनों साइडों के शीशे व रिफ्लैक्टर भी लगा होना चाहिए। भारतीय सड़क पर मनुष्य की क्या दुर्दशा है इसका अंदाज़ा रोज़ाना के समाचार पत्रों में छपे समाचारों से लगाया जा सकता है। गत दिनों धुंध के कारण भुच्चो (बठिंडा) पुल पर हुई दर्दनाक दुर्घटना में कई कीमती ज़ानें चली गई तथा पिछले वर्ष फाज़िल्का के नज़दीक सड़क दुर्घटना में मरे अध्यापकों ने पूरे पंजाब में ही नहीं बल्कि दुनिया को शोक में डुबो दिया था। क्या कसूर था उन बेचारों का जो इस दुर्घटना का शिकार हो गए। हम अपने बहुत प्यारे परिवारिक सदस्य, नेता, अभिनेता, गायक, खिलाड़ी, अधिकारी आदि को सड़कों पर दुर्घटनाओं से गंवा चुके हैं।  
भारत में राष्ट्रीय मार्ग कुल मार्ग का 2 प्रतिशत ही है पर 40 प्रतिशत यातायात इन राष्ट्रीय मार्गों पर ही दौड़ता है। देश में घटित कुल दुर्घटनाओं में 19.2 प्रतिशत ट्रक व लारियां, 9.4 प्रतिशत बसें, 5.7 प्रतिशत टैम्पों से छोटी गाड़ियां, 6.7 प्रतिशत जीपें, 10.1 प्रतिशत कारें, 4.8 प्रतिशत तीन पहिया वाहन, 2.2 प्रतिशत साइकिल, 10.3 प्रतिशत और वाहन व 23.2 प्रतिशत दोपहिया वाहन दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं।
आम तौर पर यह माना ज़ाता है कि सड़क दुर्घटनाओं का खतरा देर रात या सुबह सबसे ज्यादा होता है पर यह धारना के विपरीत सरकारी आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2015 में देश में बाद दोपहर 3 बज़े से 6 बज़े के बीच सबसे ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। सड़की यातायात व राज्य मार्ग मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2015 में जो 501423 सड़क दुर्घटनाएं हुईं ज़िनमें 146135 व्यक्तियों की जान गई। इनमें से सबसे ज्यादा 87819 सड़क दुर्घटना दोपहर 3 बजे से शाम 6 बजे बीच हुईं। सड़क सुरक्षा बिल 2016 : भारत सरकार द्वारा मार्च 2016 में लोकसभा में रोड सेफ्टी बिल 2016 पास किया गया तथा अप्रैल 2016 में इस बिल में मोटर वाहन एक्ट के कई कानूनों में संशोधन किया गया। नए बिल में पुराने जुर्मानों को 20 गुणा बढ़ाया गया है। उदाहरण के तौर पर यदि आप ऐसा वाहन चला रहे हो जो आपके नाम के नीचे दज़र् नहीं है तथा आप से कोई दुर्घटना हो जाती है तो आप तीन वर्षों के लिए जेल जा सकते हैं। इसके बिना और भी कई ज़ुर्माने बढ़ाए गए हैं। हर गाड़ी में फर्स्ट एड किट भी ज़रूरी होनी चाहिए ताकि जो अचानक रास्ते कोई चोट लगने पर रोगी को निशुल्क सहायता दी जा सके। इन दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सरकार को सख्त कदम उठाने चाहिएं तथा बढ़िया सड़कें बनानी चाहिएं ताकि कीमती ज़ानें बचाई ज़ा सकें।  
ड्राइवरों को ट्रैफिक चिन्ह जोकि चार तरह के हैं आदेशात्मक चिन्ह, चेतावनी चिन्ह, सूचनात्मक चिन्ह, ज़रूरी चिन्ह इनकी अच्छी तरह जानकारी होनी चाहिए। इस समय सरकार द्वारा पूरे पंजाब में केवल माहुआणा (श्री मुक्तसर) साहिब में ही पूरे पंज़ाब का सरकारी ड्राइविंग स्कूल(स्टेट इंस्टीच्यूट आफ आटोमेटिव एंड ड्राइविंग स्किल्ज) चल रहा है, जहां एल.टी.वी. तथा एच.टी.वी. ड्राइविंग लाइसैंस बनाने के लिए दो दिनों की ट्रेनिंग दी ज़ाती है ज़ो कि पंज़ाब के हर एल.टी.वी. तथा एच.टी.वी. ड्राईविंग लाइसैंस के लिए ज़रूरी है पूरे पंज़ाब के ड्राइवर वहां पर आते हैं। जोकि अच्छा प्रयास है पर ज़रूरत को मुख्य रखते हुए ड्राईविंग नियमों के लिए हर ज़िले में ज्यादा से ज्यादा ट्रेनिंग स्कूल, कालेज़, संस्थाएं आदि खोलने चाहिएं है ताकि जो दूर दूर से आने वाले लोगों को नज़दीक सुविधा मिल सके। नियमित तौर पर स्कूलों, कालेज़ों, टैक्सी स्टैंडों, गावों के स्थानों आदि में ट्रैफिक नियमों संबंधी सैमीनार ज्यादा से ज्यादा लगाने चाहिए ताकि ज़ो लोग सड़की नियमों से पूरी तरह जानकार हो सके तथा सड़क दुर्घटनाएं कम हो सके।  स्कूलों व कालेज़ों के विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में ड्राइविंग विषय ज़रूर होना चाहिए। इनके साथ सबकी प्रैक्टीकल कक्षाएं भी ज़रूर लगानी चाहिए ताकि ड्राइविंग लाइसैंस प्राप्त करने से पहले ड्राइवर पूरी तरह नियमों को सीख सकें जैसा कि विदेशों में ट्रैफिक के सख्त नियमों के कारण दुर्घटनाएं कम होती हैं तथा लाइसैंस प्राप्त करने के लिए ड्राइविंग की पूरी ज़ानकारी होनी ज़रूरी है। इस तरह के नियम भारत में भी सख्ती से लागू होने चाहिएं। लाइसैंस जारी करते समय सिफारिश या रिश्वतखोरी पूरी तरह बंद होनी चाहिए। इस भ्रष्टाचार पर काबू पाने के लिए सरकार को सख्त कदम उठाने चाहिएं।

जैतो, कम्प्यूटर अध्यापक
सरकारी सीनियर सैकेंडरी स्कूल, 
रोड़ीकपूरा (फरीदकोट)
मो. 98550-31081