‘चिन्ता चिता समान रे, बन्धु’

चिन्ता न करें, इस देश की समस्याओं को हल करने का एक नया तरीका तलाश लिया गया है। अंग्रेज़ जब भारत छोड़ कर गये थे, तो लगभग पौन सदी पहले जो देश आज़ाद कहलाता हुआ हमारे राष्ट्र निर्माताओं को नवनिर्माण के लिए मिला था, उससे पास अपने सांस्कृतिक गौरव के सिवा तब अभिमान करने के लिए सम्भवत: कुछ भी नहीं था। उस समय भारत के सीने पर एक लकीर खींच दी गई। करोड़ों लोगों को घर बार जमा जत्था छोड़ कर अपने पूर्वजों की धरती से निष्काकित हो नई धरती, नई मिट्टी को गले लगाना पड़ा था या उसे चन्दन समझ माथे पर लगाना पड़ा था। 
तब देश के दो टुकड़े हो गए, अब टुकड़े-टुकड़े हो रहे हैं। तब आर्यवर्त्त बना, भारत, पाकिस्तान बना। जो लोग पीछे रह गए थे, वे विदेशी हो गए, शत्रु बने, युद्धों में उलझे और अब सरहदों का अतिक्रमण कर आतंकी हो सबका जीवन दूभर कर रहे हैं। तब दुनिया का सबसे बड़ा निष्क्रमण जो पाकिस्तान से भारत में हुआ। अपने देश में आ सिर छिपाने का आसरा तलाशने वाले शरणार्थी कहलाए लेकिन अपना राज्य, अपना लोकतंत्र आज़ादी से सिर ऊंचा करके जीने की तमन्ना आज भी नहीं मिली। गर्व के न जाने कितने नये धरातल तब उभर आए थे। आज़ाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। दुनिया का सबसे बड़ा समाजवादी देश बनेगा। अमीर और गरीब में कोई अन्तर नहीं रहेगा। ठीक है दो सौ बरस की गुलामी के कारण बहुत पिछड़ गया था अपना देश। इसे योजनाबद्ध आर्थिक विकास की पटरी पर कुछ इस प्रकार सरपट भगाया जाएगा कि सदियों की भूख, बेकारी, बीमारी और दरिद्रता दूर हो जाएगी। विश्व की चुनिन्दा महाशक्तियों में एक बनेगा हमारा भारत। वह दिन भी आएगा, जब यह भारत सांस्कृतिक समृद्धि ही नहीं, भौतिक प्रगति की दृष्टि से भी दुनिया का नम्बर एक राष्ट्र बनेगा। बरस दर बरस गुज़रे योजना आयोग का स्पूतनिक इंजन सपनों से पल्ललित विकास की गाड़ी को बारह पांच वर्षीय आर्थिक विकास योजनाओं के नाम से देश की सरपट भगाने की घोषणाओं के साथ भगाता चला गया, लेकिन सपनों के कांच टूटते गये। जब छ: वर्ष पहले अच्छे दिन आने का कल्पतरु लेकर नये मसीहा देश की गद्दियों पर आसीन हुए तो पता चला कि परिवार नियोजन और जनसंख्या नियंत्रण कर लेने का दावा करने वाला देश 33 करोड़ से एक सौ तैतीस करोड़ हो चुका था और अभी इस संख्या के नियंत्रित होने की कोई उम्मीद नहीं थी। देश के मसीहाओं ने अपने परिवार नियोजन कार्यक्रमों की असफलता को स्वीकार करने के स्थान पर इस बीच इसे दुनिया की सबसे बड़ी कार्यशील युवा शक्ति वाला देश कह कर सबका दिल बहलाना चाहा। लेकिन यह कैसी कार्यशील जनता थी कि जिसके पास कोई काम नहीं था? आबादी के लिहाज से हम चीन को पछाड़ दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बनने जा रहे हैं, लेकिन किसी ने भी इन चिल्लाहट भरी विजय घोषणाओं के बीच यह नहीं बताया कि यह देश दुनिया की सबसे अधिक बेकार शक्ति का देश भी बनता जा रहा है। 
इस बीच दिल को बहलाने के लिए उपलब्धि और संतोष का एहसास प्राप्त करने के  लिए हमने ऐसे नये-नये तरीके ईजाद कर लिए हैं कि आम लोगों को भी बारात जीमने का एहसास होने लगा है। बारह पंच वर्षीय योजनाओं ने सामाजिक और अर्थिक कायाकल्प के स्थान पर देश को आर्थिक मंदी का उपहार दे दिया, तो हमने योजना आयोग विकास का स्पूतनिक इंजन के स्थान पर सफेद हाथी कह कर नकार दिया। इसी सफेद हाथी से छुटकारा पा कर नीति आयोग बनाया जो अभी तक अपने लिए किसी नयी आर्थिक नीति की तलाश कर रहा है। पंचवर्षीय योजनाओं की रेलगाड़ी भारत की अधबनी अधूरी विकास यात्रा के किसी वीरान स्टेशन पर शंटिंग कर रही है और अभी तक अपने लिए किसी सही विकास अवधि की तलाश कर रही है। 
फिर कोरोना महामारी का प्रकोप एक अचीन्हे, अनजान अभिशाप के रूप में देश पर उतर आया लेकिन उसका मुकाबला नकाबों, दस्तानों और सामाजिक अन्तर को कवज बता कर खूबी के साथ देश वासियों ने सरकारी पथनिर्देश के साथ किया है, सरकारी प्रकोष्ठ बताते हैं। बन्दिशों और आपसी दूरी रखने के ऐसे महामन्त्र मिले कि बिना दवाई मिले ही देश भर में कोरोना का प्रकोप थकता नज़र आने लगा है लेकिन सुनो, फिर भी राहत की सांस नहीं लेनी है। ‘सावधानी हटी, दुर्घटना घटी’ का मूलमंत्र सब को मिल गया है क्योंकि लौटती लहरों के तूफान का आतंक, कोरोना की दूसरी लहर का भय अभी जन-जन अपने अन्त: स्थल में व्याप्त रखे,  ‘जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं’ मन में धारण किये रहे, देश के कर्णधारों का सन्देश है। 
तो फिर विकट समस्याओं का समाधान कहां हुआ, सहमे हुए लोग पूछते हैं? लेकिन सपनों की बांसुरी बजाने वाले कहते हैं समाधान होगा, होगा, ज़रूर होगा। इसी बीच इस महामारी के साथ ज़िन्दा रहना सीखिए। सब कुछ वैसे ही चलने दीजिए-भूख, बेकारी और बीमारी। देखते नहीं, आंकड़ों का प्रतिशत कम हो रहा है। आपने एक भारत विभाजन की बात कही है। यहां तो दुर्दिन बार-बार लोगों को जड़ों से उखाड़ कर परदेस से स्वदेश, और शहर से गांव भेजते हैं, लौटाते हैं। इस विकट महामारी और लाकडाऊन की अकृपा ने नये सत्य उद्घाटित कर दिये। अमीर और अमीर हो गए, और गरीब? आएगी, उनकी बारी भी आएगी। यह समाजवाद के लक्ष्य को समर्पित देश है। रास्ता बदल गया तो क्या हुआ? अब निजीकरण और कार्पोरेट आर्थिक क्रांति से विकास में तेज़ी आएगी। इस तेज़ी से गरीबों का भाग्य बदलेगा इन्तज़ार करें। फिलहाल तो उनका भाग्य बदलने का प्रयास कोरोना का मुफ्त टीका बांट देने की घोषणाओं से हो रहा है। इन घोषणाओं के बल पर चुनाव होने दीजिए, फिर भारत को डिज़ीटल और ऑनलाइन कर देने की घोषणा से शिक्षा के  द्वार भी खुलेंगे। धीरे-धीरे सब सामान्य हो जाएगा, सब ठीक हो जाएगा, आप लोग तो व्यर्थ चिन्ता कर रहे हैं। बन्धु।