मुंह की लार बताती है बीमारियों का राज़

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए संतुलित भोजन की आवश्यकता होती है। भोजन में अन्य तत्वों के साथ-साथ संतुलित कार्बोहाइडे्रट, वसा, प्रोटीन आदि तत्वों की विशेष आवश्यकता होती है लेकिन जब शरीर को ये सभी तत्व संतुलित रूप से नहीं मिलते तो शरीर रोगग्रस्त होने लगता है। मीठे पदार्थों तथा कार्बोहाइडे्रट को पचाने के लिए शरीर के अन्दर क्लोम ग्रंथि अर्थात् पेन्क्रि याज होती है जो इंसुलिन नामक रस छोड़ती है। यह रस भोजन से मिली हुई मिठास को ग्लूकोज में परिवर्तित करता है। वही ग्लूकोज रक्त के माध्यम से सारे शरीर में जाता है और प्रत्येक कोशिका उसको ग्रहण कर लेती है जिससे शरीर को शक्ति मिलती है।लार जिसे सामान्यत: थूक कहा जाता है, भोजन को पचाने में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। मनुष्य के मुख में लार का स्राव तीन मुख्य ग्रंथियों-पेरोटिड्स, सबमेक्सीलरी एवं सबलिन्गुअल द्वारा होती है। इन सभी ग्रंथियों के स्राव मिलकर मुख में लार उत्पादन करते है।मनुष्य में प्रतिदिन एक लिटर से लेकर डेढ़ लिटर तक लार का स्राव होता है। मुख में लार का स्राव निद्रावस्था में घटकर लगभग 25 मिली. प्रति मिनट रह जाता है। लार में लगभग 99.42 प्रतिशत पानी तथा 58 प्रतिशत ठोस पदार्थ होता है। ठोस पदार्थों में लगभग दो तिहाई भाग कार्बनिक पदार्थ जैसे एमाइलेज तथा म्युसिन होते हैं। शेष एक तिहाई भाग अकार्बनिक आयन जैसे-एमजी, के, सीए, सीआई, एचसीओ 3 आदि होते हैं।तीनों ग्रंथियों से निकलने वाले स्राव एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। पेरोटिड्स ग्रंथि से होने वाले स्राव में म्युसिन कम तथा एमइलेज नामक एंजाइम की बहुलता होती है। मनुष्य के शरीर के भीतर दो प्रकार के एमाइलेज पाये जाते हैं जिन्हें एल्फा एवं बीटा के नामों से जाना जाता है। लार में केवल एल्फा एमाइलेज ही पाया जाता है। एमाइलेज स्टार्च अणुओं को तोड़कर उसे छोटे डाइसेकेराउड्स में परिवर्तित करता है जो पाचन में सहायक होता है। लार का तरल पदार्थ ही दांतों को हाईजोनिक बनाए रखता है। लार में पाया जाने वाला लाइसोजाइम नामक एंजाइम कई बैक्टीरिया का उपघटन करके उनका नाश करता है। लार स्राव का संचालन किसी हार्मोन के तहत नहीं होता। साधारणतया मनुष्य की लार हल्की अम्लीय प्रकृति की होती है।शरीर में जब जल की मात्रा पर्याप्त नहीं होती है तब लार की मात्रा में भी कमी होने लगती है और मुख सूखने लगता है। मुख सूखने का तात्पर्य यह होता है कि शरीर में जल की मात्रा कम हो रही है और शरीर को जल की आवश्यकता है।लार परीक्षण से अनेक बीमारियों का पता चल जाता है। कभी-कभी लार में मरकरी का अधिक उत्पादन होने से मुख के म्यूकस मेम्ब्रेन में इन्फेक्शन हो जाता है और मुख का प्राकृतिक स्वाद बिगड़कर मुख कैंसर की संभावना को बढ़ा डालता है। पायरिया के कारण स्वस्थ दांत भी जिनमें कीड़ा आदि नहीं लगा होता, कमजोर होकर गिरने लगते हैं और एक-एक करके निकल जाते हैं। ऐसा दांतों में मैल जमने, भोजन के अंश जमे रहने तथा विटामिन-सी की कमी आदि के कारण होता है। दांतों में मैलों के जमे रहने के कारण से मुख में लार बनना कम हो जाता है और मुख की अनेक बीमारियां शुरू हो जाती हैं।

(स्वास्थ्य दर्पण)