पद का मान-सम्मान

18वीं लोकसभा में श्री ओम बिरला ने दूसरी बार स्पीकर चुने जाने के बाद अपना पद ग्रहण कर लिया है। पिछली सरकार के समय भी इस पद पर रहते हुए उन्होंने अपने कामकाज को बेहतर ढंग से निभाया था। चाहे कभी-कभार उन्होंने संसद की मर्यादा के दृष्टिगत कड़े कदम भी उठाए थे, जिस कारण उनकी आलोचना भी होती रही थी। इस बार  लोकसभा का परिदृश्य पिछली बार से अलग दिखाई देता है। इस बार जहां कांग्रेस को अधिक सीटें मिली हैं, वहीं विपक्षी दलों का गठबंधन भी प्रभावशाली बना दिखाई देता है। चाहे नरेन्द्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं परन्तु इस बार सदन में भाजपा की बहुसंख्या न होने के कारण उन्होंने अपने बड़े सहयोगी दलों के साथ एक स्वर बना कर ही चलना होगा।
विपक्षी दलों में पैदा हुए नये हौसले के कारण उन्होंने श्री ओम बिरला की पिछली भूमिका पर प्रश्न-चिन्ह लगाते हुए अपनी ओर से केरल से कांग्रेस की ओर से चुने गये लोकसभा सांसद के. सुरेश को इस पद के लिए खड़ा तो ज़रूर किया था, परन्तु संख्या अपने पक्ष में न होने के कारण उन्होंने संसद में वोट डालने पर ज़ोर नहीं दिया था। इस तरह ज़ुबानी बहु-सम्मति के आधार पर श्री ओम बिरला पुन: स्पीकर चुने गए हैं। देश के लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसा तीसरा बार हुआ है, जब इस पद के लिए मतदान की नौबत आई है। देश में नया संविधान लागू होने के उपरांत लोकसभा के पहले स्पीकर गणेश वासुदेव मावलंकर थे। इस क्रम में स. हुक्म सिंह तथा स. गुरदयाल सिंह ढिल्लों भी आते हैं, जिन्होंने बेहद सूझ एवं संतुलन से अपना काम किया था। नि:संदेह देश के संसदीय इतिहास में इस पद पर विराजमान रही इन शख्सियतों का नाम प्रभावशाली ढंग से दर्ज हुआ है। श्री बलराम जाखड़ भी इस पद पर लगभग 10 वर्ष बने रहे थे। वह भी लगातार दो बार लोकसभा के स्पीकर रहे थे। इसी क्रम में ही वामपंथी नेता सोमनाथ चैटर्जी का नाम भी लिया जाता है, जिन्होंने पांच वर्ष तक बखूबी इस पद पर काम किया था। इस पद के साथ न्याय करते समय उनके वामपंथी पार्टियों के साथ मतभेद भी बने रहे थे परन्तु उन्होंने अपने इस पद के मान-सम्मान को हमेशा बनाये रखा था।
प्रधानमंत्री सहित विपक्ष के नेता राहुल गांधी तथा अन्य राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने अपने विचार व्यक्त करते हुए श्री ओम बिरला से इस बार यह अपेक्षा ज़रूर रखी है, कि वह बिना भेदभाव के सभी को व्यवस्था अनुसार बोलने तथा काम करने का अवसर ज़रूर देंगे। आज जिस तरह के राजनीतिक तनाव से देश गुज़र रहा है तथा जिस तरह का माहौल बनाया जा चुका है, उसका प्रभाव तथा अक्स संसद पर भी स्पष्ट रूप में पैदा होता दिखाई देता है। इसलिए सदन की बहस के दौरान अक्सर तनाव पैदा हो जाता है। ऐसी स्थिति को बखूबी सम्भाल सकना भी परिपक्व स्पीकर का ही फज़र् होता है। लोकसभा के हुए चुनावों के दौरान भी तथा संसद में भी कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दलों की ओर से भाजपा सरकार पर संविधान बदलने का इरादा रखने के आरोप लगाये जाते रहे हैं जिसके जवाब में  प्रधानमंत्री मोदी तथा सरकारी पक्ष की ओर से कांग्रेस पर 49 वर्ष पूर्व श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा आपात्काल लगाये जाने तथा संविधान को ताक पर रखे जाने संबंधी बयान दिये जा रहे हैं। हम हमेशा से ही 1975 में श्री इन्दिरा गांधी  द्वारा लगाये गये आपात्काल के खिलाफ रहे हैं। इस संबंध में बात करना भाजपा तथा अन्य दलों का अधिकार ज़रूर है, परन्तु स्पीकर के पद पर बैठे व्यक्ति की ओर से लोकसभा में स्वयं प्रस्ताव पेश करके इस राजनीतिक बहस का हिस्सा बनना शोभा नहीं देता। ऐसा करके स्पीकर श्री ओम बिरला ने पहले ही सत्तारूढ़ पार्टी की ओर झुकाव होने का प्रभाव दे दिया है। श्री बिरला को किसी तरह का भी एकपक्षीय प्रभाव नहीं देना चाहिए। ऐसी ही उनसे विपक्ष के नेताओं की ओर से आशा की जा रही है। आगामी समय में ऐसे संतुलित दृष्टिकोण से ही वह अपने पद के मान-सम्मान को बनाये रख सकते हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द