कांग्रेस के लिए चुनौतियां

देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस के नई दिल्ली में शुरू हुए दो दिवसीय अधिवेशन का कई पक्षों से बड़ा महत्व कहा जा सकता है। देश की आज़ादी में कांग्रेस की अहम भूमिका रही है। इसने महात्मा गांधी तथा पंडित जवाहर लाल नेहरू जैसे बड़े नेता दिए हैं। 132 वर्ष पुरानी इस पार्टी का यह अधिवेशन सात वर्ष के अन्तराल के बाद हो रहा है। एक समय था जब इस पार्टी की देश भर में तूती बोलती थी। देश की आज़ादी के बाद जहां अधिकतर समय इस पार्टी ने केन्द्र में सत्ता संभाले रखी वहीं बहुत सारे राज्यों में भी इसकी सरकारें कायम हुईं। समय बीतने से जहां स्थानीय स्तर पर कई प्रांतीय पार्टियां बहुत लोकप्रिय हुईं और उनको लोगों का बड़ा समर्थन मिला, वहीं कांग्रेस का तेज मद्धम पड़ता गया। समय-समय पर यह बड़े विवादों में भी घिरती रही। इस पर एक ही परिवार के काबिज़ रहने का दोष भी लगता रहा है। अंतत: वास्तविकता को भांपते हुए इस बड़ी पार्टी को समय-समय पर अन्य बहुत सारी पार्टियों के साथ समझौते भी 
करने पड़े। केन्द्र में भी इसका बहुमत कम होने के कारण इसने बहुत सारी पार्टियों को मिलाकर सरकार बनाने की नीति धारण की। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार से पहले दस वर्ष संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने केन्द्र में सरकार चलाई। चाहे इसके प्रधानमंत्री कांग्रेस की ओर से बनाए गए डा. मनमोहन सिंह ही थे, परन्तु वह अपनी पार्टी का पूर्ण बहुमत न होने के कारण बड़ी सीमाओं में घिरे रहे। उनको बहुत सारे समझौते भी करने पड़े, जो पार्टी की नीतियों से मेल नहीं खाते थे। इस सरकार में बहुत बड़े घोटाले भी हुए, जिनके लिए प्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस नहीं अपितु उसके कई सहयोगी ज़िम्मेदार थे, परन्तु बड़ी पार्टी होने के नाते और इसका प्रधानमंत्री होने के कारण इन घोटालों की आलोचना भी इस पार्टी के हिस्से आती रही। अंतत: इसका हाल यह हुआ कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनावों में बड़ी सफलता हासिल करके अपनी सरकार बना ली चाहे उसने बहुत सारी अपनी सहयोगी पार्टियों को भी साथ मिलाये रखा और इस तरह इस पार्टी की सरकार को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार के नाम से जाना गया। चार वर्ष तक नरेन्द्र मोदी ने केन्द्र में सरकार चलाई, परन्तु यह सारा समय कांग्रेसी नेताओं ने बेहद बेचैनी से बिताया। इस समय के दौरान वह इस तरह का प्रभाव देते रहे जैसे उनको सत्ता प्राप्त करने के बिना किसी तरह का चैन नहीं आयेगा। राजनीतिक तौर पर यह पार्टी आज बेहद कमज़ोर हो चुकी है। एक-दो राज्यों को छोड़कर इसकी कहीं भी सरकार नहीं है। लोकसभा में भी इसके सदस्यों की संख्या उंगलियों पर गिने-जाने के समान है। ऐसी स्थिति में राहुल गांधी को गत वर्ष कांग्रेस की बागडोर सौंपी गई थी। सोनिया गांधी का सुपुत्र होने के कारण वह दशकों से किसी न किसी तरह इस पार्टी का केन्द्र बने रहे थे। सोनिया गांधी ने बहुत चालाकी से राहुल को राजनीति की सीढ़ियों पर चढ़ाया और समय आने पर पार्टी की बागडोर उनको सौंप दी। इस तरह से नेहरू गांधी-परिवार का यह युवा नेता पार्टी की राजनीति में उच्च पद तक पहुंच गया। इस अमल ने इस विश्वास को और भी मज़बूत किया है कि इस पार्टी का एक परिवार के बिना गुजारा नहीं है। इस अधिवेशन का इसलिए भी महत्व है कि इस वर्ष राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ तथा कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने हैं, और आगामी वर्ष में लोकसभा के लिए आम चुनाव हो रहे हैं। यह सभी चुनाव पार्टी के सामने बड़ी चुनौती हैं। चाहे इस अधिवेशन में पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और मौजूदा अध्यक्ष राहुल गांधी ने बहुत विश्वास से यह दावा किया है कि आगामी आम चुनावों में उनकी पार्टी को बड़ा समर्थन मिलेगा, परन्तु साथ ही यह भी प्रभाव दिया गया है कि भाजपा को हराने के लिए अन्य पार्टियों के साथ भी भागीदारी की जानी ज़रूरी है। यह प्रभाव शायद इसलिए दिया गया है कि क्योंकि कांग्रेस के लिए स्वयं केन्द्र में सत्ता की सीढ़ी चढ़ सकना बेहद मुश्किल प्रतीत होता है। चाहे राहुल गांधी को पार्टी की बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी गई, परन्तु आज तक इस युवा नेता ने बहुत गम्भीर और परिपक्व होने का प्रमाण नहीं दिया। न ही आम लोगों का उन पर बड़े स्तर पर विश्वास बन सका है। एक वर्ष के समय के दौरान बड़ी उपलब्धियां कर सकना एक चमत्कार ही होगा। चाहे गत समय के दौरान श्री मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार की साख कम हुई दिखाई देती है। सैद्धांतिक तौर पर कांग्रेस ने बहुत साफ, मज़बूत और पारम्परिक स्टैंड भी लिया है, क्योंकि मोदी सरकार पर एकतरफा और साम्प्रदायिक होने का जो आरोप लगता रहा है, उससे अब तक प्रधानमंत्री तथा भाजपा छुटकारा नहीं पा सकी, इसने उसके सिंहासन को एक बार तो डगमगा दिया है। परन्तु हमारे अब तक के प्रभाव के अनुसार कांग्रेस के लिए नरेन्द्र मोदी और भाजपा का मुकाबला कर सकना अभी बहुत ही मुश्किल कार्य होगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द