सैर कर दुनिया की गाफि ल ज़िंदगानी फिर कहां

संसार की रचना करने वाले ने यही सोचकर पृथ्वी हो या समुद्र, आकाश हो या पर्यावरण इन सब को विविध रंगों से सजाया होगा कि मनुष्य इनकी छवि को निहांरता रहे और आनंद का अनुभव करे। जंगल, पहाड़, नदियां अपने अनेक स्वरूपों में न केवल हमें आकर्षित करती हैं बल्कि उनमें रहने और बसने के लिए भी निमंत्रित करती हैं। इसी के साथ यह भी कि हम उनका संरक्षण और पालन-पोषण भी करें। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर एक सैलानी छिपा होता है। जब भी मौका मिलता है उसे अपने सैलानीपन का बोध होते ही निकल पड़ता है, खुली सड़क पर अपना सीना ताने। उसे नहीं पता कि मंजिल कहां है और कहां रुकना है। यह सब तो बस ऊपरवाले के भरोसे छोड़ दीजिए और दुनिया की सैर कीजिए। अपने काम के सिलसिले में या जब भी काम से जरा सी फु र्सत मिलते ही घुमक्कड होने का अहसास मन पर छा जाता है। अपने देश को पूरा देखने के लिए कई जन्म चाहिए फिर भी कोशिश रहती है कि जितना हो सके उसके प्राकृतिक सौंदर्य का लुत्फ  उठाया जाए और अनंतकाल से निर्मित हो रही विरासत को निहारा जाए। विदेश की चर्चा या वहां जाने से पहले अपने यहां की बात करना ज़रूरी हो जाता है क्योंकि हम किसी से कम नहीं। उत्तर पूर्वी राज्यों में सुंदरता और रोमांच-रहस्य का अनोखा मिश्रण है। वहां के वन और पवित्र वनस्थली तथा गुफाएं न केवल अद्भुत हैं बल्कि भयमिश्रित आश्चर्य का भी संगम हैं। प्राकृतिक सम्पदा यहां हज़ारों साल लग गए कुदरत को एक करिश्मा तैयार करने में। घास, मास, फर्न जहां पेड़-पौधों का अध्ययन करने वालों के लिए अद्भुत खजाना है वहां सैलानियों के लिए मनमोहक दृश्य हैं। यहां से एक पत्ता भी बाहर ले जाने की मनाही है। कहीं इतना अंधेरा कि हाथ को हाथ न दिखाई दे तो कहीं पेड़ों से छनकर आती रोशनी। गीलापन लिए दीवारें किसी चित्रकला से कम नहीं और छत से टपकती जल की बूंदें विभोर करने के लिए काफी। एक गुफा का जिक्र और करते हैं और यह है न्यूजीलैण्ड के ऑकलैण्ड में वेटोमो गुफा। यहां  हज़ारों साल से बन रही लाईम की चट्टानें हैं छत से लटकी हुई। इन्हें छूने की मनाही है। छत पर चमकते जुगनुओं की रोशनी अद्भुत और इंसान ने इस दृश्य को दिखाने के लिए की अद्भुत कारीगरी। सीढ़ियां बनी हैं और सबसे कमाल की चीज़ कि नीचे जैसे कि मानो पाताल में पानी पर नाव की सैर। कैसे किया होगा यह सब बहुत काबिले तारीफ  और अंधेरे से गुजरते हुए जो बाहर रोशनी में आए तो आश्चर्य चकित हो गए। रास्ते भर बस इतनी टिमटिमाती रोशनी की अंधेरे में आगे बढ़ सकें वरना घुप्प अंधेरा और ऊपर सितारों की तरह चमकते जुगनुओं का झिलमिलाता प्रकाश। कैसे बनाया होगा यह रास्ता और झील में चलने लायक नाव, सोचकर और जानकर तो इसमें लगे कारीगरों का मन ही मन शुक्रिया अदा किया। बाहर आते ही लगा कि एक रहस्यमय यात्रा से लौट आए। सामने ही बढ़िया रेस्तरां जहां स्वादिष्ट भोजन से मन तृप्त हो गया। सोच में आ गयीं अपने देश की गुफाएं  एक तो उन तक पहुंचना ही मुश्किल और खाने-पीने की तो छोड़िए, शौचालय तक खोजना आसान नहीं। अगर हमारा पर्यटन विभाग सचेत हो जाए और बुनियादी सुविधाएं प्रदान कर दे तो हमारे देश में ऐसी गुफाएं कई हैं जो रहस्य रोमांच के लिए मशहूर हैं और देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए जबरदस्त आकर्षण हो सकती हैं। रोजगार और आमदनी का जरिया सरकार के लिए भी और जो इन स्थानों पर यह सब सुविधाएं दे सकें उनके लिए भी, बस सोच बदले सरकार और व्यापारी कि अतिथि देव भव भावना साकार हो जाए। चेरापूंजी के जल प्रपात और काजीरंगा का अभयारण्य दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर कर देता है और हम आंखें फाड़े कुदरत के करिश्मे देखते रहते हैं। ऐसा ही एक जल प्रपात क्वींस टाऊन के पास जहां जाने के लिए शानदार क्रूज की सुविधा। झरना ऐसा कि बस निगाह न हटे और उसकी बौछार से डेक पर बैठे यात्री उससे अपने को बचाएं या तेज़ हवा के थपेड़ों से खुद का संतुलन बनाए रखें। हमारा पिछड़ापन अपने देश में इस जैसे अनेक झरने हैं लेकिन उन तक जाना आसान नहीं लेकिन पहुंच गए तो सारी थकान दूर हो जाए। क्यों नहीं सरकार और पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोग इन तक पहुंचने की व्यवस्था करते, यह न तब समझ में आया जब किसी तरह वहां पहुंचे और न अब जब लगभग तीस हज़ार किलोमीटर दूर अंटार्कटिका महाद्वीप में बसे इस देश में जिसकी कुल आबादी लगभग छयालिस लाख है। हमारे देश में सैर सपाटे के लिए आने जाने वाले देशी-विदेशी सैलानी इतने हैं कि आवश्यक बुनियादी सुविधाएं मिल जायें तो पर्यटन केवल शौक नहीं बल्कि एक फ लता-फू लता उद्योग बन जाए। 
अपने देश में कुछेक जगहों को छोड़कर जहां पहुंचने के लिए बढ़िया लग्ज़री बसें हैं बाकी सब जगह ऐसी बसें हैं जिन्हें खटारा ही कह सकते हैं। विदेशों में बसें ऐसी कि उन में बैठकर जाने का मजा ही कुछ और है। प्राकृतिक दृश्य देखने का भरपूर आनंद जबकि अपने यहां की बसों में खुद को रास्ते भर संभाल लिया तो गनीमत है, कुदरत के नजारे देखने की बात बहुत दूर की है। बसों में नेटवर्क बढ़िया आता है और फोन चार्ज करने की सहूलियत भी रहती है। यह सोचकर मन को दु:ख तो होता ही है कि हमसे बहुत कम आकार और आबादी वाले देशों में सौंदर्य और देखने-दिखाने लायक उतनी जगह नहीं हैं जितनी हमारे यहां हैं। तो फिर कमी कहां है और गलती कहां हो रही है कि हम सैलानियों को बुला नहीं पा रहें। ज्यादा कुछ नहीं करना, सड़कें और आवागमन तथा संचार साधन ठीक ठाक हो जायें, साफ-सफाई और सुरक्षा का बंदोबस्त हो जाए, बस इतना ही काफी है। कितनी गम्भीरता ऐसा लगता है कि विदेशों विशेषकर यूरोप के देशों और आस्ट्रेलिया महाद्वीप में पर्यटन को जितनी गम्भीरता से लिया गया उससे यहां घूमने जाने से लेकर वहीं बस जाने की इच्छा हो जाना स्वाभाविक है। इसका कारण इन देशों में उपलब्ध वे सुविधाएं हैं जिनके बारे में हमारे देश में केवल कल्पना ही की जा सकती है। इसी वजह से हम अपने देश को इन देशों से बीसियों साल पीछे मानते हैं। इन देशों की दुकानों पर चीनी और पाकिस्तानी मेक का सामान धड़ल्ले से बिकता है। उस पर यह भी लिखा होता है कि इस चीज़ का डिजाइन उनका है पर उसका निर्माण चीन में हुआ है। पर्यटन स्थलों के बाहर दुकानों की बिक्री का अन्दाजा इस बात से लग सकता है कि सैलानी कुछ न कुछ खरीदता ही है क्योंकि अपने देश जाकर दोस्तों-रिश्तेदारों को विदेशी उपहार देने पर जो गर्व का अहसास होता है उसका आनंद ही अलग है। इसकी तुलना में हमारे देश में आए विदेशियों के लिए खरीदारी करने से लेकर खाने-पीने तक की गिनी-चुनी चीजें ही हैं। जरा सोचिए अगर यह सब सुविधाएं हम प्रदान कर दें तो रोजगार के साधन भी बढ़ेंगे और विदेशी मुद्रा की कमाई देश को अलग से होगी।