कनाडा के चुनावों में ट्रूडो की जीत

भारत के बाद यदि पंजाबियों की किसी अन्य देश की राजनीति में विशेष दिलचस्पी होती है, तो वह कनाडा। इसका कारण यह है कि बड़ी संख्या में पंजाबी उस देश में बसे हुए हैं और बड़ी संख्या में पंजाब से छात्र भी बेहतर शिक्षा और रोज़गार की तलाश में लगातार कनाडा जा रहे हैं। इस कारण पंजाबियों की वहां की राजनीति में भी विशेष दिलचस्पी रहती है। नि:सन्देह कनाडा की राजनीति के क्षेत्र में भी पंजाबियों ने बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी की पूर्व सरकार में पांच पंजाबी कैबिनेट मंत्रियों के तौर पर शामिल थे। इसी कारण 21 अक्तूबर, 2019 को कनाडा के होने वाले चुनावों की ओर भी देश-विदेश के पंजाबी टिकटिकी लगा कर बैठे हुए थे। 
अब इन चुनावों के परिणाम सामने आ चुके हैं। लिबरल पार्टी को कुल 338 सीटों में से 157 सीटें मिली हैं। मुख्य विरोधी कंजरवेटिव पार्टी को 121, ब्लॉक क्यूबिक को 32 तथा न्यू डैमोक्रेटिक पार्टी को 24 तथा ग्रीन पार्टी को 3 सीटें प्राप्त हुई हैं। इससे पहले 2015 के चुनावों में लिबरल पार्टी ने 184 सीटों पर जीत हासिल की थी। सरकार बनाने के लिए 170 सीटों की ज़रूरत है, परन्तु लिबरल पार्टी की 13 सीटें कम हैं। परन्तु फिर भी चुनाव परिणामों से यह स्पष्ट है कि एक बार फिर जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी कनाडा में सरकार बनाने जा रही है। चाहे पूर्व चुनावों के मुकाबले इस पार्टी को अपने तौर पर बहुमत हासिल नहीं हुआ। नई सरकार बनाने और महत्त्वपूर्ण बिल पास करवाने के लिए उसको विरोधी पार्टियों में से किसी पार्टी का समर्थन लेना पड़ेगा। ज्यादा सम्भावना यह है कि वह नई सरकार बनाने के लिए न्यू डैमोक्रेटिक पार्टी जिसके प्रमुख जगमीत सिंह हैं, से समर्थन हासिल करेगी। इस संबंध में न्यू डैमोक्रेटिक पार्टी ने पहले ऐलान भी किया था कि वह यदि ज़रूरत पड़ी तो सरकार बनाने के लिए लिबरल पार्टी को समर्थन देगी। 
इन चुनावों में जस्टिन ट्रूडो और उनकी लिबरल पार्टी का विरोधी कंजरवेटिव पार्टी और न्यू डैमोक्रेटिक पार्टी से कड़ा मुकाबला था। 2015 के चुनावों में जस्टिन ट्रूडो एक साफ छवि वाले राजनीतिज्ञ के तौर पर चुनाव मैदान में थे, परन्तु 2019 के चुनाव होने तक उनकी छवि पर कई तरह के द़ाग लग चुके थे। उन पर एक कम्पनी के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई रुकवाने का आरोप लगा था। इसके अलावा उनके द्वारा अपने चेहरे को काला और भूरा करने संबंधी तस्वीरें भी सामने आई थी। इन तस्वीरों से उनकी धर्म-निरपेक्ष और प्रगतिशील सोच पर भी प्रश्न उठे थे। उनके द्वारा कार्पोरेट कम्पनियों पर पर्यावरण सुरक्षा के लिए कार्बन टैक्स लगाने का भी कुछ सीमा तक विरोध हुआ था। कंजरवेटिव पार्टी को इस बार काफी आशाएं थी कि वह नई सरकार बनाने में सफल होगी, परन्तु उसकी यह आशाएं पूरी नहीं हो सकीं। कनाडा एक ऐसा देश है जहां चीन, भारत सहित दुनिया के अन्य बहुत सारे देशों से आकर प्रवासी बसे हुए हैं और उस देश में प्रवासियों को हर तरह का मान-सम्मान भी मिलता है। जस्टिन ट्रूडो को विशेष तौर पर प्रवासियों में लोकप्रियता हासिल है। इसके परिणाम स्वरूप उनको एक बार फिर सफलता हासिल हुई है। कनाडा के चुनावों में सेवा सिंह ठीकरीवाला के पौत्र जगमीत सिंह भी उभर कर सामने आये हैं। वह इस समय न्यू डैमोक्रेटिक पार्टी के प्रमुख हैं और उनकी पार्टी ने 24 सीटें जीती हैं। 2015 के चुनावों में इस पार्टी ने 44 सीटें जीती थी। चाहे इस पार्टी को पहले की अपेक्षा कम सीटें मिली हैं, परन्तु चुनावों के संबंध में हुई सभी सांझी बहसों में जगमीत सिंह को लोगों ने विशेष तौर पर पसंद किया है। लिबरल पार्टी को आम तौर पर बहुमत न मिलने के कारण भी कनाडा की राजनीति में जगमीत सिंह का महत्त्व और अधिक बढ़ गया है। 2015 के चुनावों में भी पंजाबियों ने कनाडा के फैडरल चुनावों में बड़ी उपलब्धियां हासिल की थी। इन चुनावों में भी क्रमवार लिबरल, कंजरवेटिव तथा न्यू डैमोक्रेटिक पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे पंजाबियों को बड़ी सफलता हासिल हुई है। यह पंक्तियां लिखे जाने तक 18 पंजाबियों ने चुनाव जीत लिया है और चुनाव जीतने वाले सबसे ज्यादा पंजाबी लिबरल पार्टी से संबंधित हैं। जीतने वाले प्रसिद्ध पंजाबी नेताओं में हरजीत सिंह सज्जन, नवदीप सिंह बैंस, मनिन्द्र सिद्धू, सोनिया सिद्धू, राज सैनी, जगमीत सिंह, टिम उप्पल, जैक सहोता, कमल खैहरा, रूबी सहोता, गगन सकंद, अंजू ढिल्लों, श्रीमती बरदीश चग्गर, अनिता आनंद, सुख धालीवाल, रणदीप सिंह सराये, बॉब सरोया, जसराज हल्लन आदि शामिल हैं।
कनाडा में जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी की इस जीत पर पंजाबियों द्वारा खास तौर पर खुशी मनाई जा रही है। क्योंकि जस्टिन ट्रूडो के पंजाबियों और खास तौर पर सिख समुदाय के साथ गहरे संबंध हैं। इसी कारण वह भारत को भी विशेष प्राथमिकता देते हैं और कुछ वर्ष पूर्व वह भारत के 10 दिवसीय दौरे पर आये थे और पंजाबियों द्वारा उनका भव्य स्वागत किया गया था। यह अलग बात है कि अपनी महत्त्वकांक्षाओं के कारण तत्कालीन मोदी सरकार का रवैया जस्टिन ट्रूडो के प्रति काफी ठंडा रहा था। परन्तु हमें उम्मीद है कि जस्टिन ट्रूडो के पुन: प्रधानमंत्री बनने के बाद कनाडा और भारत के रिश्ते और बेहतर होंगे तथा नई सरकार में पहले की तरह पंजाबियों का भी पर्याप्त नेतृत्व रहेगा और उनका मान-सम्मान भी वहां पहले जैसा ही बना रहेगा।