कर्त्तव्य से विमुखता

आज इन्सान इन्सानियत व कर्त्तव्य से विमुख हो चुका है। सिर्फ मैं की भावना ही प्रबल है। दूसरे के बारे में न सोचने की ज़रूरत है और न चाह। मिली सुविधाओं का दुरुपयोग करना तो वो जैसे अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। बिजली विभाग में कार्यरत कई कर्मचारियों को देखा है कि जिनको फिक्स रेट पर बिजली उपलब्ध होती है, वो उसका दुरुपयोग करते हैं। यदि अपने पैसे पर खर्च करें तो दर्द हो। सड़कों पर सरकारी कार्यालयों में दिन-रात जलती लाइटें क्या दर्शाती है? क्या ये एक अच्छे नागरिक की पहचान है। विवेक को जगा इन्सान बनें वरना हालात बद से बदतर होते जायेंगे।

—अलका मित्तल